18 जनवरी 2009 को मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह दिल्ली में राजूभईया उर्फ राजवीर के आवास में गए और मुझे फोन आया कि वहां मेरा इंतजार हो रहा है. मैं वहां गया और मैनें कारण पूछा तो दोनों व्यक्तियों ने कहा कि आप सपा में शामिल हो जाए.उस वक्त मैनें सपा में शामिल होने से इंकार कर दिया तब अमर मुलायम ने कहा कि जब आप नहीं शामिल होने चाहते तो राजबीर को सपा में शामिल करा दीजिए. हम नहीं होते तो मुलायम 14 सीटों पर सिमट रहें थे हमनें सपा को 23 सीटें दिलाई थी. हमनें सपा को 9 सीटों का फायदा कराया था। मुलायम सिंह के लिए तब कल्याण सिंह बहुत अच्छे थे लेकिन अब कल्याण सिंह मुलायम के लिए अच्चे नहीं है.गौरतलब है कि षनिवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि कल्याण सिंह कभी भी सपा के हिस्सा नहीं थे और मैं यह कहना चाहता हूं कि उन्हें कभी भी पार्टी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। और आज कल्याण ने कुछ इस तरह से मुलायम सिंह यादव को अपना दिया जवाब.मुलायम और अमर सिंह हाथ जोड़कर भी बुलाएगें तो भी सपा में शामिल नहीं होउंगा. मुलायम चुनावों में मिली हार के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है और हार का सहीं मुल्याकंन नहीं कर पा रहें है.सही कौन है और कौन बोल रहा है झूठ ? इसका आंकलन तो आदमी कर ही चुका है लेकिन यहां पर इस बात का जिक्र करना बेहद दिलचस्प होगा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कल्याण के लिये संसदीय चुनाव में एटा में उनके लिये अपना प्रत्याषी ना उतरते हुये उन्हें निर्दलीय सांसद बनवा दिया.अब आई बारी उप चुनाव की. जिसमें कल्याण सिंह हैलीकाप्टर से चुनाव मैदान में उतरे.आखिर कल्याण सिंह को चुनाव में प्रचार करने के लिये किसने कहा था ?इस सवाल का जबाब जाहिर है सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से बेहतर आखिर कौन दे सकता है. क्या ऐसा संभव है कि किसी दल के मुखिया की सहमति से कोई भी उनके दल के प्रत्याषी के लिये प्रचार करने के लिये आ जाये ? दूसरे आगरा में हुये सपा अधिवेषन की बात ऐसे में अधूरी क्यों रह जाये ? तो बात उसकी भी जरूरी है ताकि पता तो असल में चल ही जाये.कल्याण सिंह की बात को अगर माना जाये तो मुलायम के राज्यसभा सदस्य भाई डा.रामगोपाल यादव ने उन्हें बाकायदा लंबा चैडा खत भेज कर बुलावा भेजा था तब में आया था.जब कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कल्याण को बुलाया नहीं गया था,वो खुद ही आये थे ऐसे में जाहिर है कि आप समझा गये होगें कि सच कौन बोल रहा है और झूठ का लबादा कौन ओढे हुये है ?
रविवार, 15 नवंबर 2009
कौन है सच्चा कौन है झूठा
18 जनवरी 2009 को मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह दिल्ली में राजूभईया उर्फ राजवीर के आवास में गए और मुझे फोन आया कि वहां मेरा इंतजार हो रहा है. मैं वहां गया और मैनें कारण पूछा तो दोनों व्यक्तियों ने कहा कि आप सपा में शामिल हो जाए.उस वक्त मैनें सपा में शामिल होने से इंकार कर दिया तब अमर मुलायम ने कहा कि जब आप नहीं शामिल होने चाहते तो राजबीर को सपा में शामिल करा दीजिए. हम नहीं होते तो मुलायम 14 सीटों पर सिमट रहें थे हमनें सपा को 23 सीटें दिलाई थी. हमनें सपा को 9 सीटों का फायदा कराया था। मुलायम सिंह के लिए तब कल्याण सिंह बहुत अच्छे थे लेकिन अब कल्याण सिंह मुलायम के लिए अच्चे नहीं है.गौरतलब है कि षनिवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि कल्याण सिंह कभी भी सपा के हिस्सा नहीं थे और मैं यह कहना चाहता हूं कि उन्हें कभी भी पार्टी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। और आज कल्याण ने कुछ इस तरह से मुलायम सिंह यादव को अपना दिया जवाब.मुलायम और अमर सिंह हाथ जोड़कर भी बुलाएगें तो भी सपा में शामिल नहीं होउंगा. मुलायम चुनावों में मिली हार के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है और हार का सहीं मुल्याकंन नहीं कर पा रहें है.सही कौन है और कौन बोल रहा है झूठ ? इसका आंकलन तो आदमी कर ही चुका है लेकिन यहां पर इस बात का जिक्र करना बेहद दिलचस्प होगा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कल्याण के लिये संसदीय चुनाव में एटा में उनके लिये अपना प्रत्याषी ना उतरते हुये उन्हें निर्दलीय सांसद बनवा दिया.अब आई बारी उप चुनाव की. जिसमें कल्याण सिंह हैलीकाप्टर से चुनाव मैदान में उतरे.आखिर कल्याण सिंह को चुनाव में प्रचार करने के लिये किसने कहा था ?इस सवाल का जबाब जाहिर है सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से बेहतर आखिर कौन दे सकता है. क्या ऐसा संभव है कि किसी दल के मुखिया की सहमति से कोई भी उनके दल के प्रत्याषी के लिये प्रचार करने के लिये आ जाये ? दूसरे आगरा में हुये सपा अधिवेषन की बात ऐसे में अधूरी क्यों रह जाये ? तो बात उसकी भी जरूरी है ताकि पता तो असल में चल ही जाये.कल्याण सिंह की बात को अगर माना जाये तो मुलायम के राज्यसभा सदस्य भाई डा.रामगोपाल यादव ने उन्हें बाकायदा लंबा चैडा खत भेज कर बुलावा भेजा था तब में आया था.जब कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कल्याण को बुलाया नहीं गया था,वो खुद ही आये थे ऐसे में जाहिर है कि आप समझा गये होगें कि सच कौन बोल रहा है और झूठ का लबादा कौन ओढे हुये है ?
शनिवार, 8 अगस्त 2009
आरएसएस वाले क्या सच से रूबरू हो गये ?
अगर ड्रेस कोड की बात करें तो किसी संगठन को बल या गति देने के लिए ड्रेस कोड लागु किया जाता है,अब उस ड्रेस कोड को बदलने की कबायत की जा रही है इसी ड्रेस कोड जरिये देश में लाखों की तादात में स्वंयसेवक बना लिए गए है,और अब उसे बदलने की क्या जरूरत आन पड़ी है .जी हां बिलकुल सही समझे हम उसी बात को कह रहे है जो आप समझ रहे है,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बदल रहा है और जल्द ही आप संघ नेताओं को पारंपरिक हाफ खाकी नेकर की बजाय पतलून में देखें तो चौंकियेगा मत। दरअसल संघ के भीतर नए जमाने के साथ खुद को बदलने को लेकर गहरा मंथन चल रहा है। इसी का नतीजा है कि लीक से हटकर संघ के ड्रेस कोड को बदलने की चर्चा जोरों पर है। खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि सबकी सहमति जिस दिन बन जाएगी उस दिन बदलने में हमको कोई दिक्कत नहीं है। गणवेश में हाफ पैंट भले हो लेकिन शाखा में तो स्वयंसेवक धोती, लुंगी, फुल पैंट, पजामा सबकुछ पहनकर आते हैं।दरअसल 1925 में हेडगेवार ने आरएसएस का गठन किया तब से ही संघ के स्वंयसेवक खाकी निकर में दिखते आये हैं। कई बार इसे लेकर बहस भी हुई लेकिन संघ की ड्रेस आज भी वही है। 21वीं सदी की हकीकत का सामना कर रहा संघ अब ज्यादा देर करना नहीं चाहता। उसकी ये चिंता इसलिये भी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में संघ की शाखाओं में कमी आयी है। नये जमाने से कदमताल कर रहा युवा संघ के निकर में शाखाओं में जाना नहीं चाहता।इतना ही नहीं, आरएसएस के अंदर अब ये सोच भी सामने आ रही है कि उनके प्रचारकों को दाम्पत्य जीवन में आने से नहीं रोका जाये। पहले इन मामलों में संघ बहुत कट्टर माना जाता था। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संकेत दिया कि प्रचारकों की शादी को लेकर संघ अपने नियमों में ढ़ील देने पर विचार कर रहा है।भागवत कहते हैं कि प्रचारक कम चाहिए संघ में व्यवस्थापन कार्य में समय देने वाले ज्यादा चाहिए इसलिए सारा विचार करके हम लोगों ने तय किया है कि जिसका ऐसा मन बनता है जब तक ऐसा मन बनता है तब तक प्रचार करे बाकि इच्छा है उसे तो जाकर करे हमको भी दिक्कत नहीं है।दरअसल आरएसएस धीरे-धीरे इस सच का सामना कर रहा है कि उसे अपने अंदर कुछ मूलभूत बदलाव करने होंगे। हिन्दुत्व के नाम पर उसकी छवि अभी तक एक ऐसे संगठन की बन कर रह गयी है जिसकी विचारधारा बहुत हद तक मुस्लिम विरोध पर टिकी है। इस चक्कर में एक उदारवादी हिन्दू आरएसएस से जुड़ने को तैयार नहीं है और मुस्लिम समुदाय के अंदर तो अब तक ये संगठन पैठ ही नहीं बना पाया है। इन्क्लूसिव पॉलिटिक्स के इस दौर में संघ का समय के साथ बदलना उसकी जरूरत भी है और मजबूरी भी। ऐसे में संघ खुद को ऐसे बदलना चाहता है कि जो लोगों खासतौर से युवाओं में उत्साह जगाए।एक समय था जब संघ के शिवरों में सेकडों की तादात में संघ प्रेमी जुड़ते रहे थे लेकिन लम्बे समय से भीड़ नहीं दिख रही है इससे भी संघ चिंतित है,असल में संघ के प्रमुख अगुयाकारों को यह लगने लगा है की संघ से बड़ी तादात में लोगो को जोड़ने के लिए कुछ ना कुछ वो सब करना पडेगा जिससे युवा संघ से जुड़े लेकिन देखने में आ रहा है संघ में काम करने वाले पहले अपने किसी स्वयंसेवक के घर पर रुकते थे और वही पर खाना खाया करते थे,इतना ही नहीं जब यह प्रचारक या अन्य लोग जब उस स्वयंसेवक के घर से बाहर यानी नए पड़ाव के लिए रवाना होते है,तो वो स्वयंसेवक उन महाशय को टिकट से लेकर अन्य बंदोवस्त भी कर देता है ऐसे में खर्चा ना होना तो आम बात हो गयी है,मुझे अच्छे से याद है हमारे एक मित्र है जो लम्बे समय तक संघ में प्रचारक रहे है,अभी हाल में है वे संघ से विदा लेकर शादी कर लिए है इनके जैसे ना जाने कितने प्रचारक है जो संघ की मूलधारा से वापस लौट कर परिवारिकमोह में जा चुके है ,वो बताते है की खुद का खर्चा के नाम पर कुछ भी जाया नहीं होता है,वे बताते रहे है उनके समय में ऐसे भी प्रचारक हुए है जीके पास १०० रूपये का नोट २ साल तक खर्च ही नहीं हुआ,असल में संघ जैसे संगठन के नियम बड़े ही सक्त है ऐसे में हर कोई संघ से जुदा नहीं रहा सकता ,अगर किसी का पिता संघ से जुदा हुआ रहा तो ये उम्मीद ना करे की उसका बेटा भी संघ से जुडेगा ही,ऐसे में तो यही समझ में आ रहा है की संघ जो कुछ बदलाव करने जा रहा है उसके पीछे संघ का घटता प्रभाव समझ में आ रहा है,करीब ५० वर्ष की उम्र में शादी करने वाले उस प्रचारक ने टीचर से शादी रचाई है,वो कहते है की संघ को उन्होने अपने जीवन के ५० साल दिए है लेकिन मिला क्या सिर्फ चंद रुपए अगर टीचर से शादी ना करते तो खाने के लाले पड जाते ,ऐसे में संघ में बदलने में तो बहुत कुछ है लेकिन कितना कुछ बदल कर एक बार फिर से संघ जोश में आ पायेगा इसमें संदेह लग रहा है.
रविवार, 2 अगस्त 2009
प्यार के पुजारी या प्यार के पापी है हम ?
रविवार, 19 जुलाई 2009
ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?
शनिवार, 18 जुलाई 2009
अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में दलित वोट को हथियाने को लेकर बीएसपी और कांग्रेस के बीच जारी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है,उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी का मुरादाबाद में दिया गया भाषण एक नए विवाद को जन्म दे गया है.इसी के चलते राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर दलित उत्तपीडन के तहत ना सिर्फ मुकदमा दर्ज करवाया बल्कि उन्हें जेल में भी डलवाने में कोई कसर नहीं छोडी,बात करते है दलित वोट के कब्जे कि शुरुआत की,तो इटावा के इकदिल इलाके के अमीनाबाद गाँव में १२ मार्च २००८ में चम्बल घाटी के डाकू नादिया और उसके साथियों ने दलित परिवार के पांच लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी,इस हत्या कांड के बाद कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गाधी ने इस प्रभावित गाँव का दौरा करने का मन बनाया वैसे ही एक दिन पहले १५ मार्च को मायावती आ धमकी इस गाँव में,देर शाम को आई मायावती पुलिस घेरे में रह कर पडितो के परिजनों से मिली और अँधेरा होने से पहले चली गयी लेकिन उसके बाद १६ मार्च को आये राहुल गाँधी ने कई घंटों तक पीडतों के परिजनों से बात कि और उसके बाद जाते जाते राहुल गाँधी गाँव के खेत में एक आलू खोदते बच्चे को कंधे पर उठा कर घुमा दिए,जिससे गाँव में तो राहुल के दलित प्रेम की चर्चा हुई, देश भर में जब इन तस्वीरों को न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया गया तो उन तस्वीरों की जमकर तारीफ हुयी और राहुल ने इस कांड के दौरे के बाद दलितों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए दलितों के दरबाजे दरबाजे दस्तक देना शुरु कर दी, बस इसी सब के बाद खिसहाट उजागर हो गयी, जब मायावती की और से कहा गया कि राहुल का दलित प्रेम नाटक है,और दलितों के घर जाने के बाद राहुल को नहलाया जाता है,यह विचार क्या उजागर करते है,आसानी से समझा जा सकता है,अगर कोई दलित बीएसपी के साथ है तो कांग्रेस को क्या आपत्ति लेकिन जैसा देखा जा रहा है लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी मुखिया खासे गुस्से में दिख रही है,इसी वजह से ऐसी शब्दावली आम आदमी को सुनने को मिल रही है,जिन्हें कभी राजनीत में कोड़ समझा जा रहा था,कुछ भी कहे दलित वोट को कब्जाने की कांग्रेस और बीएसपी की जुगत राजनीत की कौन से दिशा तय करेगी, यह समझ से परे है,यहाँ अब इस तरह के हालत बन गए है कि दलित वोट को कब्जाने के जुगत में उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा की ओर मुखातिब होता चला जा रहा है.बीएसपी जंहा दलित को अपना परम्परागत वोट बैंक समझता है वही कांग्रेस भी दलितों को अपनी और खीचने कि कोशिश में है,कुल मिला कर लड़ाई को रोका जाना जरुरी है .
गुरुवार, 16 जुलाई 2009
सच का सामना है या फिर बबाले जान ?
शुक्रवार, 10 जुलाई 2009
बुधवार, 8 जुलाई 2009
सरेआम लाशे बहाने के लिए जिम्मेदार कौन
मंगलवार, 30 जून 2009
सैफई में हवाई प्रशिक्षण का रोमांच
चम्बल से शहर की तरफ हिरन
रविवार, 28 जून 2009
शनिवार, 27 जून 2009
चंबल में घडियालों का जन्म
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