शनिवार, 27 जून 2009

चंबल में घडियालों का जन्म

इटावा। वन्य जीव प्रेमियों के लिए चंबल सेंचुरी क्षेत्र से एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। किसी अज्ञात बीमारी के चलते बड़ी संख्या में हुई डायनाशोर प्रजाति के विलुप्तप्राय घडि़यालों के कुनबे में सैकड़ों की संख्या में इजाफा हो गया। अपने प्रजनन काल में घडि़यालों के बच्चे जिस बड़ी संख्या में चंबल सेंचुरी क्षेत्र में नजर आ रहे हैं वहीं चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों की अनदेखी से घडि़यालों के इन नवजात बच्चों को बचा पानी काफी कठिन प्रतीत हो रहा है।दिसंबर]-2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों की संख्या में डायनाशोर प्रजाति के इन घडि़यालों की मौत ने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडि़याल किसी किताब का हिस्सा न बनकर रह जाएं। घडि़यालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस,अमेरिका सहित तमाम देश के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडि़यालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले।घडि़यालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर क्लोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण की बजह से घडि़यालों की मौत को कारण माना। वहीं दबी जुबां से घडि़यालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडि़यालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घडि़यालों की मौत की बजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घडि़यालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।घडि़यालों के अस्तित्व पर संकट के प्रति चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारी लगातार अनदेखी करते रहे हैं। घडि़यालों की मौत की खबर भी इन अधिकारियों को हरकत में नहीं ला सकी और अब जबकि घडि़यालों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इटावा जनपद से गुजरने वाली चंबल में बड़ी संख्या में घडि़यालों के बच्चों ने जन्म लिया है तो अभी तक इनकी सुरक्षा के लिए सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों ने कोई उपाय नहीं किए हैं।उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को जोड़ने वाली चंबल नदी में घडि़यालों के बच्चों को नदी के किनारे बालू पर रेंगते हुए और नदी में अठखेलियां करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में घडि़यालों के प्रजनन के बारे में जानकर अंतर्राष्ट्रीय वन्य जीव प्रेमियों में उत्साह है तो वहीं इनकी सुरक्षा को लेकर चिंता भी जताई जा रही है। वन्य जीव प्रेमियों को आशंका है कि आने वाले दिनों में मानसून में चंबल के बढ़ते वेग में कहीं यह बच्चे बह कर मर न जाएं परंतु इसके बावजूद भी चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों को इससे कोई सरोकार नहीं रह गया है।नेचर कंजर्वेसन सोसायटी फाWर नेचर के सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चौहान बताते हैं कि पंद्रह जून तक घडि़यालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ&दस दिन पूर्व तक रहता है। घडि़यालों के प्रजनन का यह दौर ही घडि़यालों के बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घडि़यालों के बच्चे नदी के वेग में बहकर मर जाते हैं। इन बच्चों को बचाने के बारे में वह उपाय बताते हैं कि यदि इन बच्चों को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में संरक्षित कर तीन साल तक बचा लिया जाए तो इन बच्चों को फिर खतरे से टाला जा सकता है। वे कहते हैं कि महज दस फीसदी ही बच्चे बच पाते हैं जबकि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।वहीं डा.चौहान यह जानकर चौंकते हैं कि घडि़यालों के बच्चों की संख्या हजारों में है। वह संभावना जताते हैं कि विगत दिनों इस प्रजाति को बचाने के लिए 840 बच्चों को नदी के ऊपरी हिस्से में छोड़ा गया था] कहीं ऐसा न हो कि यह वही बच्चे नीचे उतर आए हों परंतु नदी के तट पर जिस प्रकार से टूटे हुए अंडे नजर आते हैं उससे साफ है कि इन बच्चों ने अभी हाल ही में जन्म लिया है।देश मे दो घाटियां है,एक कश्मीर घाटी एवं एक चंबल घाटी। कश्मीर घाटी जहाW आतंकवादियों के आंतक से ग्रस्त है। वहीं चंबल घाटी को खूंखार डकैतों की शरण स्थली के रूप मे दुनिया भर मे ख्याति हासिल है। इसी चंबल घाटी मे खूबसूरत नदी बहती है चंबल। जिसमें मगर, घडि़याल, कछुये, डाल्फिन समेत तमाम प्रजातियों के वन्यजीव स्वच्छंद विचरण करते है। इतना ही नहीं चंबल की खूबसूरती में चार-चांद लगाने के लिये हजारों की संख्या मे प्रवासी पक्षी भी आते है] लेकिन पिछले दिनो से दुर्भल घडि़यालों की मौत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब डाल्फिन एवं मगर तक आ पहुंचा है। खूंखार डकैतों के खात्मे के बाद चंबल घाटी के वन्यजीवों पर जो संकट आया है। ऐसा लगता है कि खूंखार डकैतों के खात्मे के बाद सक्रिय अधिकारियों ने चंबल की खूबसूरती को दाग लगा दिया है।राजस्थान से प्रवाहित चंबल मध्य प्रदेश होते हुये उत्तर प्रदेश के इटावा के पंचनंदा तक इतनी खूबसूरत है जहां एक साथ मगर, डाल्फिन और घडि़याल रहते है और यहां हजारों की तादात मे घडि़याल मर रहे है तो कहीं ऐसा न हो कि चंबल की आने वाले दिनों मे खूबसूरती समाप्त हो जायें।चंबल की खूबसूरती इसलिये भी बढ़ जाती है क्योकि यहां की रीजनल डायवर्सिटी अपने आप में खूबसूरत है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुन्दरता के कारण हजारो विदेषी पक्षी आते है। जिनकी 200 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती है। जिस समय इस नदी को सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया था। पिछले साल जनवरी मे एक तेंदुआं भी करंट की चपेट में आकर मौत के मुंह में समा गया। इटावा मे पिछले साल दिसम्बर के पहले सप्ताह मे चंबल नदी मे घडि़यालों के मरने की खबरो ने सनसनी फैला दी। लेकिन वन अधिकारियों ने इससे साफ इंकार किया कि किसी घडि़याल की मौत नहीं हुई] लेकिन वन पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कन्जरवेशन आफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान ने इन मृत घडि़यालों को खोज ही नही निकाला बfल्क वन अधिकारियों की उस करतूत को भी उजागर कर दिया जो उन्होने बेजुबान घडि़याल की मौत के बाद किया था। पिछली गणना के मुताबिक चंबल मे 856 घडि़याल रिकार्ड किये गये थे लेकिन अब घडि़यालों की मौत के बाद इनकी संख्या को लेकर तरह&तरह की बाते उठने लगी है। उत्तर प्रदेश के वन्य मंत्री फतेहबहादुर सिंह ने घडि़यालों की मौत के बाद अधिकारियों को सतर्क किया और खुद भी चंबल का दौरा कर यह माना कि चंबल मे प्रदूषित पानी यमुना नदी के जरिए पहुंच रहा है। भरेह जिस स्थान से चंबल मे प्रदूषित पानी के पहुंचने की बात फतेहबहादुर सिंह की तरफ से कही जा रही है, यह समझ नहीं आ रहा है कि उनका यह कथन कितना सटीक और सही है। अगर दुर्लभ घडि़यालों, डाल्फिन एवं मगरों की मौत की बात करें तो कही न कही चंबल मे अधिकारियों का साम्राज्य हावी है और उन्हीं की यह करतूत है जो चंबल मे वन्यजीवो पर संकट आ खड़ा हुआ है। कुल मिलाकर कह सकते है कि चंबल के वन्य जीवों पर इन दिनों प्राकृतिक संकट आ खड़ा हुआ है जो कब दूर होगा कुछ कहा नहीं जा सकता।

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इटावा में बदहाल नर्सों की जिंदगी

इटावा। स्वास्थ्य सुविधाओं की रीढ़ समझी जाने वाली नर्स भला दूसरे मरीजों का उपचार क्या कर सकेंगीं जब प्रशिक्षण के दौरान ही उन्हें खुद के स्वास्थ्य पर संकट के बादल नजर आएं। असुरक्षित माहौल में रह कर सड़ा-गला भोजन खाने के बाद भी यदि उनका लगातार शोषण होता रहे तो भला प्रशिक्षणोपरांत इन नर्सों से क्या अपेक्षा की जाएगी। जनपद के एकमात्र एएनएम ट्रेनिंग सेंटर की बदहाली व असुरक्षित माहौल तथा सड़े-गले भोजन करने वाली यह प्रशिक्षु नर्सें लगातार अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतित रहतीं हैं परंतु स्वास्थ्य सुविधाओं की रखवाले माने जाने वाले मुख्य चिकित्सा अधिकारी को शायद इनकी असुविधाओं से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है।पोस्टमार्टम गृह से सटे इस एएनएम प्रशिक्षण केंद्र की क्षमता जहां महज तीस प्रशिक्षार्थियों के प्रशिक्षण की है वहीं वर्तमान में यहां साठ प्रशिक्षु नर्सें रह रहीं हैं। इन प्रशिक्षु नर्सों की हिफाजत के प्रति स्वास्थ्य विभाग किस कदर गंभीर है इसकी बानगी इसी से समझी जा सकती है कि इन प्रशिक्षुओं की सुरक्षा के लिए यहां गार्ड तक मौजूद नहीं है। इतना ही नहीं यहां बिजली चले जाने पर कोई व्यवस्था नहीं है और शाम आठ बजे के बाद इन प्रशिक्षु नर्सों को वहीं बंधकों की भांति कैद कर दिया जाता है। यदि इसी मध्य किसी प्रशिक्षु को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या आती है तो उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।क्षमता से अधिक रहने वाली इन प्रशिक्षु नर्सों की समस्या तब और बढ़ जाती है जब विद्युत कटौती के शेड्यूल में विद्युतपूर्ति बाधित हो जाती है। भीषण गर्मी में एक-एक कमरे में पंद्रह प्रशिक्षु भला कैसे रह पातीं होगीं, सहज ही समझा जा सकता है। इसके अलावा इन प्रशिक्षु नर्सों को मिलने वाली खाद्य सामग्री में सामने दिख रहे कीड़ों के बावजूद भी उस दूषित भोजन को खाना मजबूरी है क्योंकि इनके पास इससे बचने का कोई विकल्प नहीं है। प्रशिक्षु नर्स बतातीं हैं कि चावल, आटा व सब्जियां सभी कुछ सड़ी हुई दी जातीं हैं। ऐसे में जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति खुद ही सचेत नहीं रह पाते हैं तो भला दूसरों को क्या स्वास्थ्य के प्रति सचेत कर सकेंगें।इन प्रशिक्षुओं को चिकित्सालय तक पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने किसी वाहन तक की व्यवस्था नहीं की गई है। परिणाम स्वरूप इस भीषण गर्मी के माहौल में इन्हें पैदल ही जिला चिकित्सालय तक जाना पड़ता है। इस संबंध में जब भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी से शिकायत करने की कोशिश की गई तो धमका कर चुप करा दिया जाता है। इतना ही नहीं इस प्रशिक्षण केंद्र में किसी वार्डन तक की व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं इस प्रशिक्षण केंद्र की बदहाली की दास्तां इसी से समझी जा सकती है कि बचा-खुचा खाद्य पदार्थ प्रशिक्षण केंद्र के पीछे ही फेंक दिया जाता है जिससे माहमारी फैलने की आशंका इन प्रशिक्षु नर्सों को लगातार सालती रहती है।प्रशिक्षु नर्सों के प्रति स्वास्थ्य विभाग का रवैया कितना संवेदनशील है यह इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि बाथरूम चाWक हो जाने के बाद इन प्रशिक्षु नर्सों को खुले में स्नानादि करने को मजबूर होना पड़ता है। बहरहाल इन प्रशिक्षु नर्सों मे स्वास्थ्य विभाग के रवैये के प्रति गहरा आक्रोश व्याप्त हैं परंतु उनकी समस्याओं के निवारण के प्रति स्वास्थ्य विभाग कतई गंभीर नहीं हैं।

इटावा की बैंकों में नकली नोट

इटावा। स्टेट बैंक भरथना से रिजर्व बैंक को नकली नोट भेजे जाने पर स्टेट बैंक के मैनेजर के खिलाफ घोखाधड़ी का मुकदमा भरथना थाने मे दर्ज किया गया। पुलिस के एक प्रवक्ता के मुताबिक रिजर्व बैंक के मैनेजर ने इटावा के भरथना थाने जो मामला दर्ज कराया है। उसके मुताबिक 28.11.08 को स्टेट बैंक भरथना के मैनेजर ने रिजर्व बैंक को 500 के 6 नकली नोट यानि 3000 रूपए भेज दिये जिनको पड़ताल के नकली पाये जाने पर पुलिस कार्यवाही के लिये मामला दर्ज कराया है, इस मामले के दर्ज होने से बैंक कर्मियों में हडकम्प मच गया है। पाकिस्तान से आईएसआई के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था पर हमला बोलने के उद्देश्य से भेजे जा रहे जाली नोट के कारोबारियों में इटावा की बैंकों के कर्मचारियों की संलिप्तता भी है। इटावा की भारतीय स्टेट बैंक एवं सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा रिजर्व बैंक को भेजे गए जाली नोटों ने रिजर्व बैंक प्रशासन की नींद उड़ा दी। अब रिजर्व बैंक के निर्देश पर दोनों बैंकों के कर्मचारियों के विरुद्व भरथना और इटावा कोतवाली में मुकदमा दर्ज करा दिया गया है।इटावा की बैंकों से मिले जाली नोटों की यह घटना नई नहीं है परंतु न जाने क्यों कि उन बैंक कर्मचारियों का अभी तक बैंक प्रशासन अथवा पुलिस प्रशासन खुलासा नहीं कर पा रहा है जो बैंक की शाख को तो बट्टा लगा ही रहे हैं साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। अभी तक पांच सौ एवं एक हजार के जाली नोटों के प्रचलन की ही बातें होती थी परंतु भारतीय स्टेट बैंक द्वारा रिजर्व बैंक को भेजे गए सौ-सौ के नोटों के बंडलों में 24 जाली नोट देख रिजर्व बैंक में हड़कंप मच गया। वहीं सेंट्रल बैंक द्वारा भेजे गए पचास-पचास के नोटों के बंडलों में भी चार नोट जाली पाए गए हैं। इस मामले में बैंकों के शाखा प्रबंधकों ने अपने ही कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा कायम करा दिया है।भारतीय स्टेट बैंक में पहले भी कई बार जाली नोट पाए गए। रिजर्व बैंक ने पहले भी उन कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा कायम कराया परंतु कानून के हाथ जाली नोटों के कारोबारियों तक नहीं पहुंच सके। पूर्व में स्टेट बैंक की मुख्य शाखा के अलावा भर्थना एवं जसवंतनगर की शाखा में भी जाली नोटों के मामले सामने आए और पुलिस तक मामला पहुंचा भी मगर आज तक न तो जाली नोटों के कारोबारियों को खोजा जा सका और न ही उन बैंक कर्मचारियों को चिन्हित किया जा सके जो देश की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।जाली नोटों के प्रति रिजर्व बैंक के गंभीर होने के बाद भी बैंक प्रशासन इसके प्रति गंभीर नहीं है। बैंक प्रशासन ने इसे आम औपचारिकता कहकर इस मामले को मामूली बनाने का प्रयास किया है। बैंक प्रबंधक का कहना है कि इतने नोटों में कुछ जाली नोट आ जाएं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि जाली नोटों की बैंकों से हो रही बरामदगी के बाद आम उपभोक्ता भला बैंक द्वारा जारी किए नोटों पर कैसे भरोसा कर सकेगा। जबकि इससे पूर्व भी तमाम बैंक उपभोक्ताओं ने काउंटर पर जाली नोट का दावा किया परंतु या तो बैंक कर्मियों ने उस नोट को बदल दिया अथवा उस नोट को काउंटर से न दिए जाने का दावा कर अपना पल्ला झाड़ दिया।