मंगलवार, 6 जुलाई 2010

गिद्ध के बाद अब सारस पर संकट

सारस पक्षी पर आया संकट एक तरह से गिद्ध पर आये संकट से किसी मायने मे कम नही लग रहा है. इस बात को वन अधिकारियों के अलावा पर्यावरणीय संस्था से जुड़े हुए लोग भी मानने लगे है.सारस पक्षी की गणना को लेकर कई लोग सवाल उठाने लगे है कि जब सारस के संरक्षण की हकीकत मे जरूरत थी उस वक्त वन अमले ने कोई काम नही किया अब लकीर पीट कर दिखवा करने की कोशिश की जा रही है.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 20 जून से पूरे राज्य मे सारस पक्षी की गणना कर रही है. गणना में सारस पक्षी के लिये किस तरह के नतीजे निकालेगे यह तो गणना के बाद ही पता चलेगा लेकिन अभी सारस की गणना से ही पक्षी प्रेमी उत्साहित है. इस गणना मे राज्य के वन विभाग के अलावा पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्थाओ से भी मदद ली जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार ने सारस को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया है.
1999 में हुई गणना के मुताबिक वर्तमान में सारसों की संख्या महज दुनिया में सारसों की संख्या महज आठ हजार रह गई है. सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया जाना भी सारस को बचाने की एक पहल माना जाता रहा है. उत्तर प्रदेश का इटावा जिला सारस पक्षी के सबसे बड़े आशियाने के तौर पर देश दुनिया के मानचित्र पर काबिज है.इटावा मे करीब 3000 की तादात सारस की हमेशा देखी जा रही है लेकिन इस बार सारस पक्षी गिद्धों की माफिक गायब होता हुआ दिख रहा है तभी तो सारस की गणना करके उसे बचाने की दिशा तय की जा रही है. इंसानी करतूत के चलते माना जा रहा है कि सारस के वास स्थल को खासा नुकसान पहुंच रहा है,तालाब पोखर आदि सबके सब सूखते चले जा रहे है जिसको लेकर सारस पक्षी की संख्या घटती हुई दिख रही है. सारस पक्षी के लिये दुनिया का एक मात्र स्थल होने के बावजूद इटावा को पूरी तरह से सरकारी तौर पर उपेक्षित रखा गया है,जब कि सर्वोच्च न्यायालय के सारस संरक्शण के आदेषों को बलाये ताक रख कर आजतक ना तो केन्द्र सरकार और ना ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई ठोस कार्य योजना अमल में नहीं लाई गई है.जब कि सारस पक्षी को उत्तर प्रदेशश सरकार ने राज्य पक्षी का दर्जा देकर महज खाना पूरी कर रखी है.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में इटावा के सभी तालाबों,झाबरों को ऊसर सुघार योजना के तहत समाप्त किया जा रहा था तब इलाहबाद उच्च न्यायालय में बाइल्ड ट्रस्ट आफॅ इडिण्या ने एक याचिका दायर कर इस परियोजना से तालाबों को होने वाले नुकसानों को रोकने की पहल की. सैफई में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिये सारसों पर गोली तक से मारने के दृष्यों को कैमरों में कैद कर लिये जाने के बाद देश दुनिया के सारस विषेशज्ञों ने मुलायम सिंह यादव को आडे हाथों ले लिया था. बाद में मुलायम सिंह यादव ने विकास की बात कह कर खफा सारस विषेशज्ञों को मना लिया था.2005 साल में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में इटावा में सैफई हवाई पट्टी के विस्तारी करण के लिये सैफई के पास एक विषाल झाबर को समाप्त करने को लेकर सोसायटी फॉर कन्जरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान की शिकायत पर राज्य सरकार ने 10 करोड़ की राशि सारस संरक्षण के लिये जारी कर सारस संरक्षण समिति गठित तो जरूर कर दी गई लेकिन इस समिति ने सारस के संरक्षण के लिये क्या काम किया इसका कोई रिकार्ड नहीं है? इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में अपना हलफनामा दाखिल कर वादा किया कि तालाबों के संरक्षण किया जायेगा लेकिन आज तक किसी भी तालाब का संरक्षण नहीं किया गया,बताया गया है कि सारसों के संरक्षण के नाम पर प्रतिवर्ष लखनऊ में एक बैठक कर ली जाती है,वो भी सिर्फ कागजों में अमर प्रेम का प्रतीक सारस पक्षी ने दुनिया भर में इटावा जिले की पहचान करा रखी हैं. इटावा जिले के खेतों में घूमते देखे जाते सारस आम बात हैं. वर्ष 1999 में संपादित सारस गणना के मुताबिक पूरी दुनिया में सारस पक्षी के करीब 8 हजार सदस्यों के जीवित होने का अनुमान लगाया गया. इनमें 200 नेपाल, 4 पाकिस्तान तथा बंग्लादेश में देखे गये 2 सारस पक्षियों के अतिरिक्त शेष सभी भारत में ही रहते हैं. करीब 5 हजार अकेले उत्तर प्रदेश में स्वच्छंद रूप से ताल तलैयों के किनारे तथा घान के खेतों वास करते हुए देखे जाते रहे हैं लेकिन सूखे की वजह से ये अब ना तो पहले की तरह खेतो में देखे जा रहे हैं और तो और इनके अण्डे भी पहले की तरह नजर नहीं आ रहे हैं. दुनिया में सबसे उंचा सारस उडने वाला पक्षी किसानों का मित्र हैं. करीब 12 किलो वजन वाले सारस की लम्बाई 1.6 मीटर तथा जीवनकाल 35 से 80 वर्ष तक होता है. सारस वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनूसूची में दर्ज हैं. सारसों की 1999 से गणना काम इटावा और आसपास के इलाकों सोसायटी फॉर कंजरवेषन ऑफ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था की ओर किया जा रहा हैं. यह पहला मौका हैं जब सूखे की वजह से सारस पक्षी का प्रजनन प्रभावित होता नजर आ रहा है, कुल मिला कर कह सकते हैं कि सूखे ने जहां आम आदमी का जीना मुष्किल कर दिया हैं वहीं पक्षियों के लिये भी खतरा पैदा कर दिया हैं.
देश में सारस की 6 प्रजातियां है.इनमें से 3 प्रजातियां इंडियन सारस क्रेन,डिमोसिल क्रेन व कामन क्रेन है, दुनिया भर में सारस पक्षियों की अनुमानित संख्या 8 हजार है,इनमें अकेले इटावा में 2500 और मैनपुरी में करीब 1000 सारस है अनूकूल भौगोलिक परिस्थितियां सारसों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है,दोनों जिलो में अनकूल पानी के जल क्षेत्र,धान के खेत, दलदल, तालाब, झील व अन्य जल स्त्रोत पाये जाते है.दल-दली क्षेत्रों में पाई जाने वाली घास के टयूबर्स, कृषि खाद्यान्न, छोटी मछलियां, कीड़े-मकोड़े, छोटे सांप, घोघें, सीपी आदि भोजन के तौर पर सारसों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. उल्लेखनीय है कि अग्रेंज कलक्टर ए.ओ.हृयूम के समय में इस क्षेत्र में साइबेरियन क्रेन भी आता था,जिसको देखने के लिये अब भरतपुर पक्षी विहार जाना पडता था क्योंकि 2002 साल में आखिरी बार साईबेरियन क्रेन का एक जोडा देखा गया था.
सोसायटी फार कन्जरवेशन आफॅ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था के सचिव डा.राजीव चौहान ने सूखे की मार झेल रहे इटावा के कई इलाको सारसों की खोज के लिये का भ्रमण किया,लेकिन सारस है देखने को भी नहीं मिल रहा है,इलाकाई ग्रामीण भी इस बार सूखे के चलते चिंतत नजर आ रहे है उनका साफ कहना है इन दिनो सारसों के जोडे यदा कदा ही नजर आ रहे है जो पहले खासी तादात में दिखलाई दिया करते थे. इसके पीछे किसानों का कहना है कि इस बार सूखे की वजह से जहां किसानों की फसले चौपट हुई है, वहीं किसानो का मित्र कहे जाने वाला सारस पक्षी भी पानी कमी के चलते संकट में नजर आ रहा है.कभी सारसों की संख्या सैकडों में देखी जाती रही है आज ना के बराबर रह गई है. जब सारस खेतो में दिखलाई ही नहीं देगें तो लाजिमी है कि उन पर संकट आने का ही संकेत ही माना जायेगा. कहा कुछ भी जाये सूखे की मार ने किसानो को जहां मुसीबत में डाला है वही पर किसानो का मित्र समझा जाने वाले सारस को भी बख्सा नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि सारस के प्रजनन में सूखे की वजह से कुप्रभाव बडे पैमाने पर पड़ा है.
अब जब इन सारसों क बच्चें अण्डों से बाहर निकल आये है तो देखा जा रहा है कि इनका प्रजनन बडे पैमाने पर प्रभावित होने का अनुमान लगाया जाने लगा है क्यो कि पुराने दिनों की तरह इस बार सारसों के बच्चें खेत खलिहानों में नहीं दिख रहे है,इस बात की तस्दीक सारसों के इर्द गिर्द रहने वाले गांव वाले भी करते है,वही दूसरी ओर इस बार सारसों के प्रजनन को प्रभावित होने का अनुमान इटावा के प्रभागीय वन निदेषक सुर्दषन सिंह भी लगा रहे है उनका कहना है कि पानी की कमी ने सारसों के प्रजनन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है,तभी तो राज्य के वन विभाग ने सारस की गणना का काम षुरू किया है. सुदर्शन सिंह भी मानते है कि जिस तरह से गिद्ध पक्षी पर खतरा मडराया उसी तरह से सारस भी खतरे जद मे आ गया है.
मानसून समय से आने पर सारस पक्षी के प्रजनन पर बुरा असर पडा है. 20 फीसदी तक प्रजनन में गिरावट दर्ज की जा रही है. इससे पहले के सत्र में जुलाई से सिंतबर तक ही प्रजनन को देखा जाता था लेकिन पिछली बार अक्टूबर में देखा गया है. इस बार पानी की चलते धान की बुबाई कम क्षेत्रों में पहले के मुकाबले हुई है,जिससे इनके बच्चें को छुपाने के लिये बच्चों की सुरक्षित स्थान नहीं मिल पा रहा है. कुल मिला कर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि संकटग्रस्त सारस पर एक बार फिर एक नया संकट पानी की किल्लत के रूप में सामने आया है. अब सवाल यह उठता है कि सूखे की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई किस आधार पर हो पायेगी ?

एटीएम यूजर्स सावधान !

यदि आप एटीएम कार्ड के यूजर्स हैं तो एटीएम मशीन में घुसने से पहले सतर्क हो जाएं। अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि किसी की नजर आपके पासवर्ड पर हो और वह आपके पासवर्ड को चोरी कर रहा हो। एटीएम मशीन के गार्डों पर भी कतई ऐतबार न करें। इतना ही नहीं एटीएम कार्ड और अपना पासवर्ड किसी को न बताएं, चाहे वह आपका कितना ही करीबी क्यों न हो। आपके कार्ड का दुरुपयोग हो सकता है। जब कुछ ऐसा ही सेना में कार्यरत अजय कुमार सिंह के साथ हुआ तो चौंकना स्वाभाविक था। एटीएम के बारे में गहना से पारंगत होने के अभाव में उसने एटीएम मशीन के गार्ड की मदद ली मगर गार्ड ने अपने एक सहयोगी के माध्यम से किसी प्रकार उसका एटीएम कार्ड बदल लिया और तीन दिन में ही 51 हजार रुपये एटीएम के माध्यम से निकाल लिए। अब पुलिस बेशक मामले की जांच कर रही हो, परंतु बैंक प्रबंध तंत्र ने साफ तौर पर नसीहत दे डाली कि एटीएम यूजर्स को सतर्कता बरतनी चाहिए।इकदिल थाना क्षेत्र का रहने वाला अजय कुमार सिंह पंजाब नेशनल बैंक का एटीएम कार्ड धारक है। वह विगत 23 जून का जब शास्त्री चौराहा स्थित भारतीय स्टेट बैंक की एटीएम मशीन से रुपये निकालने गया तो कुछ असुविधा होने पर उसने एटीएम पर तैनात गार्ड सुनील कुमार से मदद मांगने की भूल कर दी। फिर क्या था सुनील ने अपने सहयोगी रामगोपाल के पुत्र राजेश कुमार से मदद कराने का भरोसा दिलाया और विश्ववास में लेकर अजय कुमार से उसका पासवर्ड हासिल कर लिया। इसके बाद चालाकी से अजय को पंजाब नेशनल बैंक का ही दूसरा एटीएम कार्ड पकड़ा दिया और उसकी अनुपस्थिति में उसके खाते से 51 हजार 520 रुपये कानपुर के नयागंज की बैंक शाखा के एटीएम कार्ड से निकाल लिए। इस मामले में अब पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच आरंभ कर दी है। अब पुलिस हिरासत में दोनों एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं।अजय कुमार सिंह के एटीएम से चोरी हुए रुपये में बैंक प्रबंध तंत्र अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। बकौल आरोपी गार्ड सुनील कुमार कहता है कि राजेश कुमार कानपुर से सिलैक्ट होकर आया था। उसने वह नियुक्ति पत्र उसे दिखाया और गार्ड ने तुरंत उसे एटीएम की सुरक्षा का भार सौंप दिया। उसने बताया कि यह विभिन्न प्रकार के कार्ड लेकर एटीएम का प्रयोग करता रहा। वहीं आरोपी राजेश कुमार का कहना था कि कानपुर की सिक्योरिटी कंपनी ने उसे नियुक्ति किया। कंपनी क ा फील्ड आॅफीसर आया और उसे पहले मंडी ब्रांच की जिम्मेदारी सौंपी, परंतु जब वहां तैनात गार्ड नौकरी जाने के भय से गिड़गिड़ाया तो उसे आठ दिन बाद ड्यूटी देने की बात कह फील्ड आफीसर चला गया। सवाल यहां खड़ा होता है कि बैंक के मुख्य द्वार पर लगे एटीएम की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक अजनबी के हाथ में तीन दिन तक रही और बैंक प्रबंध तंत्र सोता रहा। वह इससे भी अधिक फ्रॉड कर सकता था। वह लगातार एटीएम मशीन से छेड़छाड़ करता रहा, परंतु एटीएम मशीन में लगे खुफिया कैमरे की नजर भला उस पर कैसे नहीं पड़ी और यदि पड़ी तो बैंक प्रबंधन क्या कर रहा था। ऐसे में भला बैंक प्रबंध तंत्र तो कहीं न कहीं सवालों में है और उसे जबाब देना होगा कि आखिर इतनी बड़ी चूक हुई कैसे?पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधक चंद्रभान सिंह नसीहत देते हैं कि एटीएम का प्रयोग करने वाले उपभोक्ता एटीएम के प्रति सतर्कता बरतें। अन्यथा उनके रुपये चोरी हो सकते हैं, परंतु साथ ही यह भी कहते हैं कि यदि एटीएम कार्ड और पासवर्ड (पिन नंबर) दोनों आपके हाथ से नहीं जाएंगे तो आपके रुपये चोरी नहीं हो सकते हैं। वे कहते हैं कि उपभोक्ता को रुपये निकालते समय पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए। वे स्वीकारते हैं कि अक्सर इस प्रकार की घटनाएं कार्ड धारक का कोई अति नजदीकी ही करता है, परंतु ऐसे मामलों में कार्डधारक को किसी नजदीकी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए।

इटावा में बारिश में भीग रहा गरीबों का अनाज

भारतीय खाद्य निगम ने एक बार फिर गरीबों के निवाले को सड़ाने की तैयारी कर ली है। बीते चौबीस घंटे से गरीबी की रेखा में जीवन यापन करने वाले गरीबों के वितरण के लिए आया 28 हजार कुंतल गेंहू खुले आसमान में पड़ा हुआ है। रविवार की दोपहर के बाद से लगातार रुक-रुक कर हो रही बारिश से इस गेंहू के सड़ने की पूरी संभावनाएं हैं। बावजूद इसके भारतीय खाद्य निगम ने इस गेंहू को मालगोदान पर न तो ढंकवाने के ही कोई इंतजाम किए और न ही इसे गोदामों में पहुंचाया। मसलन यह गेंहू पूरी तरह से भीग चुका है और जानवर बोरों को फाड़ कर उस गेंहू को अपना निवाला बना रहे हैं। यह उस देश की दास्तां का एक हिस्सा है जहां बुंदेलखंड में भूख से मौतें होतीं हैं। मंहगाई आसमान पर है। बढ़ती मंहगाई का ही परिणाम है कि आज केंद्र सरकार में शामिल दलों के अतिरिक्त समूचा विपक्ष एकजुट होकर देशबंदी का ऐलान कर रहा है। गरीब दो वक्त की रोटी जुटाने में नाकाम रहता है। उसी देश में जिस प्रकार से भारतीय खाद्य निगम की लापरवाही उजागर होती है, वह शर्मसार करती है। अन्न को शास्त्रों में देवता का दर्जा दिया है। वहीं स्थानीय माल गोदाम पर गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बीपीएल, एपीएल एवं अंत्योदय योजना के कार्ड धारकों को वितरित करने के लिए पंजाब से आया 28 हजार कुंतल गेंहू स्थानीय माल गोदाम पर बारिश के पानी में भीग कर सड़ने को तैयार है। गौरतलब है कि बीते दिनों भी माल गोदाम पर इसी प्रकार से पंजाब से आया 33 हजार कुंतल गेंहू चार दिनों तक मालगोदाम पर खुले आसमां तले डला रहा था और जानवरों का निवाला बनता रहा था। इस खबर को जब डीएलए ने प्रमुखता से प्रकाशित किया तो प्रशासन की नींद टूटी और उसने उस गेंहू को गोदामों तक आनन-फानन में पहुंचाया था। शुक्र यह था कि तब बारिश नहीं हुई थी जबकि इस बार रविवार दोपहर से लगातार रुक-रुक कर बारिश हो रही है और मौसम विभाग भी लगातार बारिश की संभावनाएं जता रहा है।रेलवे को भी देना होगा वारफेसमालगोदाम पर गेंहू के खराब होने की तो संभावनाएं बनीं हुर्इं ही हैं। वहीं खाद्य निगम को अपनी लापरवाही के एवज में रेलवे को भी वारफेस की अदायगी करनी होगी। रेलवे मालगोदाम से गेंहू उतरने के नौ घंटे तक माल न उठाने की स्थिति में रेलवे भारतीय खाद्य निगम से सौ रुपये प्रति वैगन गेंहू के हिसाब से जुर्माना बसूलेगा। अब इस जुर्माना को या तो भारतीय खाद्य निगम अदा करेगा अथवा उसका ठेकेदार।कम से कम ढंक कर ही रखा होतामालगोदाम पर खुले आसमां तले पड़े इस गेंहू को यदि भारतीय खाद्य निगम ने तिरपाल अथवा किसी अन्य वस्तु से ढंक दिया होता तो शायद यह गेंहू यूं खराब नहीं होता। जबकि बीते दिनों भारतीय खाद्य निगम के प्रबंधक जय प्रकाश ने स्वीकार किया था कि हमारे पास गेंहू क ो ढंकने के पर्याप्त इंतजाम हैं तो फिर यह लापरवाही क्यों?समीपवर्ती जनपदों को भी वितरित होना थामालगोदाम पर उतरे इस गेंहू पर न सिर्फ इटावा जनपदवासियों बल्कि मैनपुरी, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज सहित आसपास के जनपदवासियों का भी हक था क्योंकि यहां से यह गेंहूं सार्वजनिक वितरण के लिए इन जनपदों को भी जाना था। अब यह अनाज यदि भारतीय खाद्य निगम उठवा भी लेता है तो इस गेंहू को सड़ने से बचाने के हर प्रयास नाकाफी होंगें।लीवर और आंत हो सकतीं हैं क्षतिग्रस्तमुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वी. पी. सिंह बताते हैं कि यदि खराब गेंहू का सेवन किया जाता है तो यह एक तरह से फूड प्वॉइजनिंग का काम करता है। इसके सेवन से पेट की बीमारियां तो होतीं ही हैं बल्कि लीवर व आंतें भी क्षतिग्रस्त हो सकतीं हैं। वह बताते हैं कि गेंहू को गोदामों में रखने से पहले पूरी प्रोसेसिंग अपनानी चाहिए क्योंकि नमी होने के कारण ऐसे गेंहू से गोदाम में रखा और अनाज भी खराब होने की संभावना रहती है।

गुरुवार, 25 मार्च 2010

खूंखार डकैतों के इलाके में दलित पुजारी का मंदिर

चंबल की घनघोर घाटियों को आम तौर पर लोग दस्यु दलों की षरणस्थली मानते हैं परंतु इसके साथ ही यह घाटी सामाजिक समरसता का एक ऐसा उदाहरण भी प्रस्तुत करती है जो समाज में व्याप्त छुआछूत जैसी बीमारियां फैलाने वालों पर तमाचा मारती है। लोगों को यह जानकर हैरत होगी कि देष में इटावा जिले के लखना कस्बा में स्थिति मां कालिका देवी मंदिर ऐसा एकमात्र मंदिर है जिसका पुजारी मंदिर निर्माण के समय से लेकर अब तक सिर्फ दलित ही होता है। दलित पुजारी के प्रति लोगों में सम्मान का भाव है और इस प्रथा से समाज के सवर्ण वर्ग अथवा ब्राहमणों को भी कोई गुरेज नहीं है। वह इसे आपसी सद्भाव की एक मिसाल है। इसके साथ ही इसी मंदिर से सटी मजार भी गंगा-जमुनी तहजीब की इबारत लिखती है। इस मंदिर के इतिहास को जानने वाले बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण वर्श 1820 में तत्कालीन जमींदार जसवंत राव ने कराया था। जानकार बताते हैं कि लखना से सटे दिलीप नगर के जमींदार जसवंत राव लोकप्रियता हासिल करने के साथ ही मां कालिका देवी में अनन्य श्रद्धा रखते थे। जमींदार बाद में अघोशित राजा भी बन कर उभरे लेकिन उन के हृदय में सभी धर्म और वर्ग के प्रति बेहद लगाव था। वह मां कालिका देवी के दर्षन करने के लिए यमुना नदी के पार स्थित कंचेसी धार स्थित मंदिर जाया करते थे परंतु एक दिन यमुना का बहाव इस कदर तीव्र हुआ कि नियमित रूप से माता के दर्षन करने जाने वाले राजा जब उस दिन नहीं पहुंच सके तो उन्हें बेहद अफसोस हुआ। वह मां के दर्षन न कर पाने की सोचते ही सोचते सो गए तो मां कालिका देवी ने उन्हें स्वप्न में दर्षन दिए। स्वप्न में मां कालिका के दर्षन करने के अगले ही दिन लखना में स्थित एक पीपल के पेड़ में आग लग गई। उसी पेड़ के नीचे माता कालिका देवी की मूर्ति निकली। जिस पर राजा ने उसी स्थान पर माता कालिका का भव्य व विषाल मंदिर की स्थापना करा दी। इसके साथ ही यहां आने वाले भक्तों को असुविधा न हो इसके लिए मंदिर के समीप ही एक विषाल तालाब बनवाया। जानकार बताते हैं कि इस तालाब में हिंदुस्तान की प्रत्येक नदी का जल मिलाया गया था लेकिन बदलते परिवेष में प्रषासनिक उपेक्षा के कारण यह तालाब गंदगी से पटा पड़ा हुआ है। राजा जसवंत राव को जब यह अहसास हुआ कि मंदिर के निर्माण से कहीं इस्लाम को मानने वाले मुस्लिमों को किसी प्रकार की ग्लानि न हो तो उन्होंने उनकी भी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए मंदिर से ही सटकर एक मजार की स्थापना कराई जिस पर मुस्लिम समुदाय अब अपनी आस्था जताता है। मंदिर निर्माण के साथ ही जब राजा जसवंत राव ने यह महसूस किया कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं मिलता है और उन्हें हीन भावना का अहसास होता है, बस यही सोचकर उन्होंने एक नया इतिहास रचते हुए ऐलान कर दिया कि माता कालिका देवी के मंदिर का पुजारी दलित परिवार का ही होगा और छोटेलाल के पिताजी मंदिर के पहले दलित पुजारी बने। तब से लेकर आज तक इस मंदिर की पूजा-अर्चना का काम एक ही दलित परिवार की पांचवी पीढ़ी के अखिलेष एवं अषोक कर रहे हैं। इलाकाई लोग बताते हैं कि इस मंदिर के प्रति लोगों में इस कदर आस्था की देष के तमाम प्रांतों के लोग यहां माता के दर्षन को आते हैं और इन भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में जो कुछ भी देवी मां से मांगो उसकी आरजू देवी मां पूरी करती हैं। ताज्जुब यह है कि इस मंदिर में हर वर्ग के लोग पूजा-अर्चना करते हैं परंतु आज तक के इतिहास में किसी ने भी दलित पुजारी के मुद्दे को लेकर अपना विरोध तक दर्ज नहीं कराया है। एक साथ जहां मंदिर में घंटे बजते हैं वहीं मजार पर कुरान की आयतें भी पढ़ीं जातीं हैं जो गंगा-जमुनी सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल है। मंदिर का दलित पुजारी एवं उसका परिवार मंदिर की पूजा-अर्चना से खासे उत्साहित हैं। वह इसे अपने लिए जहां गर्व समझते हैं वहीं राजा जसवंत राव का इसे उपकार मानते हैं। षास्त्र और पुराणों को जानने वालों का मानना है कि राश्ट्र की मनीशा में दो षक्तियां उभरीं हैं। इनमें से एक श्रव्य षक्ति है वहीं दूसरी षाक्त षक्ति है। श्रव्य षक्ति में जहां भगवान षंकर की पूजा अर्चना सिर्फ ब्राहमण करता है वहीं षाक्त षक्ति में देवी मां की पूजा अर्चना का विधान है जिसका पुराणों में भी उल्लेख है। देवी की पूजा दलित भी कर सकता है। इस मंदिर पर क्षेत्र के अधिकाधिक लोग अपने बच्चों का मुंडन कराने के साथ ही विवाहोपरांन नई बहू को माता के दर्षन कराने के लिए लाते हैं। इस कार्य में बधाई गीत भी चकवा जाति के लोग गाते हैं। यह काम उनका वंषानुगत कार्य है और वह तमाम पीढ़ियों से यह काम करते आ रहे हैं।

रविवार, 15 नवंबर 2009

कौन है सच्चा कौन है झूठा

कहावत है कि क्रिया की प्रतिक्रिया जरूर होती है कुछ ऐसा ही हुआ है आज.सपा प्रमुचा मुलायम सिंह यादव की तल्ख बयानगी से आहत कल्याण सिंह ने आज मुलायम सिंह यादव को ले लिया हे आडे हाथों.अगर कल्याण सिंह की बात को सही माने तो यह कहने मे कोई गुरेज नहीं की मुलायम सिंह यादव उप चुनाव की हार के बाद मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गये है.मुलायम के बारे यह हम नहीं कह रहे है बल्कि मुलायम के पुराने दोस्त कल्याण सिंह की जुबानी है ,जिसे कल्याण ने पेष किया है मुलायम के जबाब स्वरूप.कल्याण के जबाब के बाद जहां समाजवादी पार्टी में हडकंप मच गया है वहीं राजनैतिक हलको में भी सनसनी फैली हुई. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने को कहा कि हाल के उपचुनावों में हुई पराजय से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है. कल्याण सिंह ने आज अपना गुस्सा कुछ इस तरह से बयान करते हुये कहा कि मुलायम सिंह बौखला गए हैं और हार के सही कारणों का पता लगाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं.बल्कि उनको निसाने पर रख रहे है.कल्याण सिंह के गुस्से का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बेटे राजबीर सिंह ने सपा महासचिव के पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया. राजवीर ने मुलायम सिंह द्धारा अपने पिता कल्याण सिंह को निषाने पर रखने को लेकर सपा महासचिव पद से इस्तीफा देकर मुलायम को कटघरे में खडा कर दिया.शनिवार को ही मुलायम ने कहा कि वह कभी कल्याण को पार्टी में नहीं लेंगे। इसी बयान से नाराज कल्याण सिंह ने बेटे राजबीर सिंह ने सपा से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनऊ में एक संबाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कल्याण सिंह कहा कि मुलायम धोखेबाज हैं और पार्टी की हालिया हार के कारण वे दिमागी संतुलन खो बैठे हैं और बौखला गए हैं. इतना ही नहीं कल्याण ने इस बात का खुलासा भी किया कि उन्हें भाजपा से इस्तीफा देने पर कहना और उनके बेटे राजबीर को सपा में शामिल होने का न्यौता खुद मुलायम और अमर सिंह ने उनके घर में आकर दिया था. उनके बेटे और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राजवीर सिंह ने समाजवादी पार्टी छोड़ने का एलान करते हुए कहा कि जिस पार्टी में बाबूजी का असम्मान हो उसमें बने रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। इसी के साथ कल्याण ने मुलायम पर परिवारवाद फैलाने का भी आरोप लगाया. नाराज कल्याण ने कहा कि यदि मुलायम हाथ जोड़कर भी उन्हें सपा में बुलाएंगे तो भी सपा पार्टी में नहीं जाएंगे.मुलायम पर अपनी भड़ास निकालते हुए कल्याण ने कहा कि मुलायम ने कई लोगों और पार्टियों को धोखा दिया है। इनमें आजम खान, लेट पार्टियां, बेनी प्रसाद वर्मा,राजबब्बर आदि शामिल हैं। इसी जगह से कल्याण ने मुसलमानों को सावधान रहने का आह्वान भी किया.उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह पर हमला बोलते हुए कहा है कि वह हार की वजह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं. कल्याण सिंह ने कहा कि मुलायम आज कह रहे हैं कि मुझे समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं करेंगे. तथ्य यह है कि खुद मुलायम सिंह और अमर सिंह ने मुझे समाजवादी पार्टी में शामिल होने का आमंत्रण दिया था.मेरे घर आकर उन दोनों ने आग्रह किया था कि मैं उनकी पार्टी में शामिल हो जाऊं. जब मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ तब उन्होंने कहा कि ठीक है, हमें राजवीर दे दीजिए। फिर हम राजवीर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए. कल्याण सिंह ने कहा कि मुलायम आज भी हार के कारणों की समीक्षा नहीं कर रहे. वह हार का ठीकरा मेरे सिर पर फोड़ रहे हैं, यह कहते हुए कि कल्याण सिंह की वजह से मुस्लिम वोट उनसे टूट गए. अगर थोड़ी देर को यह मान भी लिया तो फिरोजाबाद में यादव वोट उनसे क्यों कटे? अपने गृह क्षेत्र इटावा में उन्हें क्यों हार का मुंह देखना पड़ा? भरथना में क्यों उनकी पार्टी जीत नहीं सकी ? इसका जबाब क्या है मुलायम के पास ?उन्होंने कहा,मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं मुलायम सिंह की अवसरवादी फितरत को समय रहते पहचान नहीं सका इसका नुकसान मुझे हुआ है. मेरे समर्थक भी इस वजह से बहुत परेशान हुए हैं.
18 जनवरी 2009 को मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह दिल्ली में राजूभईया उर्फ राजवीर के आवास में गए और मुझे फोन आया कि वहां मेरा इंतजार हो रहा है. मैं वहां गया और मैनें कारण पूछा तो दोनों व्यक्तियों ने कहा कि आप सपा में शामिल हो जाए.उस वक्त मैनें सपा में शामिल होने से इंकार कर दिया तब अमर मुलायम ने कहा कि जब आप नहीं शामिल होने चाहते तो राजबीर को सपा में शामिल करा दीजिए. हम नहीं होते तो मुलायम 14 सीटों पर सिमट रहें थे हमनें सपा को 23 सीटें दिलाई थी. हमनें सपा को 9 सीटों का फायदा कराया था। मुलायम सिंह के लिए तब कल्याण सिंह बहुत अच्छे थे लेकिन अब कल्याण सिंह मुलायम के लिए अच्चे नहीं है.गौरतलब है कि षनिवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि कल्याण सिंह कभी भी सपा के हिस्सा नहीं थे और मैं यह कहना चाहता हूं कि उन्हें कभी भी पार्टी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। और आज कल्याण ने कुछ इस तरह से मुलायम सिंह यादव को अपना दिया जवाब.मुलायम और अमर सिंह हाथ जोड़कर भी बुलाएगें तो भी सपा में शामिल नहीं होउंगा. मुलायम चुनावों में मिली हार के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है और हार का सहीं मुल्याकंन नहीं कर पा रहें है.सही कौन है और कौन बोल रहा है झूठ ? इसका आंकलन तो आदमी कर ही चुका है लेकिन यहां पर इस बात का जिक्र करना बेहद दिलचस्प होगा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कल्याण के लिये संसदीय चुनाव में एटा में उनके लिये अपना प्रत्याषी ना उतरते हुये उन्हें निर्दलीय सांसद बनवा दिया.अब आई बारी उप चुनाव की. जिसमें कल्याण सिंह हैलीकाप्टर से चुनाव मैदान में उतरे.आखिर कल्याण सिंह को चुनाव में प्रचार करने के लिये किसने कहा था ?इस सवाल का जबाब जाहिर है सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से बेहतर आखिर कौन दे सकता है. क्या ऐसा संभव है कि किसी दल के मुखिया की सहमति से कोई भी उनके दल के प्रत्याषी के लिये प्रचार करने के लिये आ जाये ? दूसरे आगरा में हुये सपा अधिवेषन की बात ऐसे में अधूरी क्यों रह जाये ? तो बात उसकी भी जरूरी है ताकि पता तो असल में चल ही जाये.कल्याण सिंह की बात को अगर माना जाये तो मुलायम के राज्यसभा सदस्य भाई डा.रामगोपाल यादव ने उन्हें बाकायदा लंबा चैडा खत भेज कर बुलावा भेजा था तब में आया था.जब कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कल्याण को बुलाया नहीं गया था,वो खुद ही आये थे ऐसे में जाहिर है कि आप समझा गये होगें कि सच कौन बोल रहा है और झूठ का लबादा कौन ओढे हुये है ?

शनिवार, 8 अगस्त 2009

आरएसएस वाले क्या सच से रूबरू हो गये ?

अगर ड्रेस कोड की बात करें तो किसी संगठन को बल या गति देने के लिए ड्रेस कोड लागु किया जाता है,अब उस ड्रेस कोड को बदलने की कबायत की जा रही है इसी ड्रेस कोड जरिये देश में लाखों की तादात में स्वंयसेवक बना लिए गए है,और अब उसे बदलने की क्या जरूरत आन पड़ी है .जी हां बिलकुल सही समझे हम उसी बात को कह रहे है जो आप समझ रहे है,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बदल रहा है और जल्द ही आप संघ नेताओं को पारंपरिक हाफ खाकी नेकर की बजाय पतलून में देखें तो चौंकियेगा मत। दरअसल संघ के भीतर नए जमाने के साथ खुद को बदलने को लेकर गहरा मंथन चल रहा है। इसी का नतीजा है कि लीक से हटकर संघ के ड्रेस कोड को बदलने की चर्चा जोरों पर है। खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि सबकी सहमति जिस दिन बन जाएगी उस दिन बदलने में हमको कोई दिक्कत नहीं है। गणवेश में हाफ पैंट भले हो लेकिन शाखा में तो स्वयंसेवक धोती, लुंगी, फुल पैंट, पजामा सबकुछ पहनकर आते हैं।दरअसल 1925 में हेडगेवार ने आरएसएस का गठन किया तब से ही संघ के स्वंयसेवक खाकी निकर में दिखते आये हैं। कई बार इसे लेकर बहस भी हुई लेकिन संघ की ड्रेस आज भी वही है। 21वीं सदी की हकीकत का सामना कर रहा संघ अब ज्यादा देर करना नहीं चाहता। उसकी ये चिंता इसलिये भी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में संघ की शाखाओं में कमी आयी है। नये जमाने से कदमताल कर रहा युवा संघ के निकर में शाखाओं में जाना नहीं चाहता।इतना ही नहीं, आरएसएस के अंदर अब ये सोच भी सामने आ रही है कि उनके प्रचारकों को दाम्पत्य जीवन में आने से नहीं रोका जाये। पहले इन मामलों में संघ बहुत कट्टर माना जाता था। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संकेत दिया कि प्रचारकों की शादी को लेकर संघ अपने नियमों में ढ़ील देने पर विचार कर रहा है।भागवत कहते हैं कि प्रचारक कम चाहिए संघ में व्यवस्थापन कार्य में समय देने वाले ज्यादा चाहिए इसलिए सारा विचार करके हम लोगों ने तय किया है कि जिसका ऐसा मन बनता है जब तक ऐसा मन बनता है तब तक प्रचार करे बाकि इच्छा है उसे तो जाकर करे हमको भी दिक्कत नहीं है।दरअसल आरएसएस धीरे-धीरे इस सच का सामना कर रहा है कि उसे अपने अंदर कुछ मूलभूत बदलाव करने होंगे। हिन्दुत्व के नाम पर उसकी छवि अभी तक एक ऐसे संगठन की बन कर रह गयी है जिसकी विचारधारा बहुत हद तक मुस्लिम विरोध पर टिकी है। इस चक्कर में एक उदारवादी हिन्दू आरएसएस से जुड़ने को तैयार नहीं है और मुस्लिम समुदाय के अंदर तो अब तक ये संगठन पैठ ही नहीं बना पाया है। इन्क्लूसिव पॉलिटिक्स के इस दौर में संघ का समय के साथ बदलना उसकी जरूरत भी है और मजबूरी भी। ऐसे में संघ खुद को ऐसे बदलना चाहता है कि जो लोगों खासतौर से युवाओं में उत्साह जगाए।एक समय था जब संघ के शिवरों में सेकडों की तादात में संघ प्रेमी जुड़ते रहे थे लेकिन लम्बे समय से भीड़ नहीं दिख रही है इससे भी संघ चिंतित है,असल में संघ के प्रमुख अगुयाकारों को यह लगने लगा है की संघ से बड़ी तादात में लोगो को जोड़ने के लिए कुछ ना कुछ वो सब करना पडेगा जिससे युवा संघ से जुड़े लेकिन देखने में आ रहा है संघ में काम करने वाले पहले अपने किसी स्वयंसेवक के घर पर रुकते थे और वही पर खाना खाया करते थे,इतना ही नहीं जब यह प्रचारक या अन्य लोग जब उस स्वयंसेवक के घर से बाहर यानी नए पड़ाव के लिए रवाना होते है,तो वो स्वयंसेवक उन महाशय को टिकट से लेकर अन्य बंदोवस्त भी कर देता है ऐसे में खर्चा ना होना तो आम बात हो गयी है,मुझे अच्छे से याद है हमारे एक मित्र है जो लम्बे समय तक संघ में प्रचारक रहे है,अभी हाल में है वे संघ से विदा लेकर शादी कर लिए है इनके जैसे ना जाने कितने प्रचारक है जो संघ की मूलधारा से वापस लौट कर परिवारिकमोह में जा चुके है ,वो बताते है की खुद का खर्चा के नाम पर कुछ भी जाया नहीं होता है,वे बताते रहे है उनके समय में ऐसे भी प्रचारक हुए है जीके पास १०० रूपये का नोट २ साल तक खर्च ही नहीं हुआ,असल में संघ जैसे संगठन के नियम बड़े ही सक्त है ऐसे में हर कोई संघ से जुदा नहीं रहा सकता ,अगर किसी का पिता संघ से जुदा हुआ रहा तो ये उम्मीद ना करे की उसका बेटा भी संघ से जुडेगा ही,ऐसे में तो यही समझ में आ रहा है की संघ जो कुछ बदलाव करने जा रहा है उसके पीछे संघ का घटता प्रभाव समझ में आ रहा है,करीब ५० वर्ष की उम्र में शादी करने वाले उस प्रचारक ने टीचर से शादी रचाई है,वो कहते है की संघ को उन्होने अपने जीवन के ५० साल दिए है लेकिन मिला क्या सिर्फ चंद रुपए अगर टीचर से शादी ना करते तो खाने के लाले पड जाते ,ऐसे में संघ में बदलने में तो बहुत कुछ है लेकिन कितना कुछ बदल कर एक बार फिर से संघ जोश में आ पायेगा इसमें संदेह लग रहा है.

रविवार, 2 अगस्त 2009

प्यार के पुजारी या प्यार के पापी है हम ?

दुनिया प्यार कि आज से दुश्मन नहीं है ये तो सदियों से जारी है कि प्यार करने वाले दुश्मनों कि वजह से प्यार को तरसते रहे है तो आज जब ये सब कुछ हो रहा है तो कोई नई बात नहीं लगती है,हर तरफ प्यार के दुश्मनों कि फौज ही फौज नजर आ रही है तभी तो प्यार करने वालों को अपने अपने तरीके से सजा दी जा रही है किसी को बाल काट कर सजा दी जा रही है ,तो किसी को पीट पीट कर अधमरा किया जा रहा है,इतना ही नहीं किसी को मौत के घाट उतर कर गुस्सा निकला जा रहा है लेकिन कोई ये जानना नहीं चाह रहा है कि प्यार करने वालों को क्या चाहिए ?बात करते है प्यार को लेकर मचे बबाल पर ,उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में एक जोड़े को प्यार करने की सजा दी गई। उसे दो दिन तक बंद करके यातनाएं दी गईं। दोनों एक ही गोत्र के हैं.इसलिए उनके खिलाफ पंचायत बैठी और फिर इलाके के लोगों ने दोनों के बाल काट दिए तथा पूरे मोहल्ले में जुलूस निकाला। किसी तरह लड़का इनके चंगुल से छूटा तो वो मुरादाबाद के एस पी सिटी से मिला और उन्हें पूरी घटना की जानकारी दी। पुलिस ने लड़के की निशानदेही पर छापा मारकर लड़की को बरामद कर लिया जाता है , फिलहाल सुरक्षा की दृष्टि से दोनों थाने में रखा गया है. पीतल का काम करने वाले युवक का गुनाह इतना है कि इसने सैनी होते हुए एक ही गौत्र की युवती से प्यार किया। पुलिस को देखकर बिरादरी के सरपंच बने लोग वहां से भाग निकले। युवती उस समय बेहद घबराई हुई थी। पुलिस सीधे बबीता को लेकर जिला चिकित्सालय पहुंची और पहले उसका मेडिकल परीक्षण कराया गया। दोनों को सुरक्षा की दृष्टि से फिलहाल पुलिस अभिरक्षा में रखा गया है। इनमें युवक का पिता बाबू राम, लड़की का पिता बनवारी और लड़के का दादा डालचंद शामिल है। बाबू राम ने ही बिरादरी की पंचायत बुलाई थी. उनकी बिरादरी के लोगों ने दोनों को भरोसा दिलाया कि उनकी शादी करा दी जाएगी लेकिन जैसे ही दोनों मौके पर पहुंचे तो लोग उन पर टूट पड़े और फिर लड़के को पूरी तरह से गंजा कर दिया गया। लड़की को भी नहीं बख्शा गया। उसके भी सिर को आधा गंजा कर दिया गया। ऐसा करने के बाद दोनों को एक घर के अलग-अलग कमरे में कैद कर दिया गया।ये तो सिर्फ मात्र उदहारण है,इससे कही अधिक तो प्यार के ऐसे मामले है, जिनमे प्रेमी जोडों ने सजा पाई और हम खुश होते है ये कह कर कि पाप करने वालों को सजा दी है लेकिन हम प्यार करने वालों पर अत्याचार करके क्या हम खुद पापी नहीं है.

रविवार, 19 जुलाई 2009

ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?

ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?
अपने देश कहावत है कि साठ की उम्र पार करने के बाद इन्सान सठिया जाता है, बिलकुल ऐसा ही समझ में आ रहा है, महानायक अमिताभ बच्चन के साथ हो रहा है,तभी तो वे सठियाने जैसी बात करने में लग गए है ,उनकी बातें ऐसी हो गयी है जिसे पड़ कर या सुन कर कोई उन्हे सठिया कहे बिना नहीं रह सकता है, आज के वैज्ञानिक युग में अगर कोई ऐसा दावा करता है, जो आम आदमी के गले नही उतरता तब दावे करने वाले शख्स को क्या कहा जाता है ,आप अच्छी तरह से जानते है ऐसे लोगों को सिरफिरा कहा जाता है,२० जुलाई को देश भर के समाचार पत्रों में इस खबर को सुर्खियों के वरीयता से प्रकाशित किया गया है कि महानायक अमिताभ बच्चन की "ईश्वर से बात हुयी है"अमिताभ ने अपने ब्लॉग में जो लिखा है वो वाकई हैरत में डालने वाला है,वो कहते है कि ईश्वर ने उन्हे एक ईमेल भेजा है,जिसमे ईश्वर ने उनके सवालों का जवाब दिया है,यह वाकई ईश्वर का ईमेल है फिर कथित ईश्वर का ईमेल,ईश्वर से बात करने का दावा करने वाले अमिताभ बच्चन की बात गले उतरते हुए नहीं दिख रही है,क्यूँ कि ऐसी बात कही गयी है जिसका भरोसा नहीं किया जा सकता है ,अभी तक ईश्वर से मिलने या फिर मुलाकात का दावा करने वालों को देश दुनिया में सिरफिरा ही कहा है इसलिए अमिताभ को अन्य की ही भांति सिरफिरा कहा जायेगा,इसमे कोई दो राय नही कि अमिताभ जिस ईमेल का जिक्र कर रहे है, उस ईमेल के बारे में उन्ही से जाना जाये वो ईमेल किसका है, जिसे अमिताभ ईश्वर का ईमेल होने कि बात कह रहे है.इस बात कि भी जाँच पड़ताल की जानी जरुरी है अब सवाल उठता है सिर्फ ईश्वर का कथित ईमेल अमिताभ के पास ही कैसे आया ?देश में करोडों की आबादी में अमिताभ में ऐसा क्या था कि ईश्वरी ईमेल अमिताभ के पास आया ,मै ईमेल को कथित इसलिए कह रहा हूँ कि ईश्वर क्या वाकई ईमेल पर काम कर रहे है तो वो ईमेल जरुर जाँच का विषय बन सकता है इस तरह के ईमेल कि जाँच के किये तमाम एजेंसिया काम कर रही है इन्हें जाँच कर यह पता करने कि जरुरत है कि अमिताभ जो कुछ कह रहे है वो कितना सच है या फिर वे सठिया गए है,जो देश वासियों को ईश्वर के नाम पर ग्रह करने में जुटे.

शनिवार, 18 जुलाई 2009

अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?

अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?
बीएसपी मुखिया उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और कांग्रेस के बीच जारी वाक् युद्घ बढता ही चला जा रहा है,कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांघी ने बीएसपी मुखिया मायावती को आडे हाथों लिया कि उत्तर प्रदेश के विकास के बजाय मूर्तियों का विकास करने में जुटी हुयी है मायावती,कांग्रेस प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी की मुरादाबाद में गिरफ्तारी के बाद राहुल ने यह बल कर कि मायावती को निशाने पर रखा है,अब जाहिर है कि कांग्रेस कि ओर से फेंकी गयी गेंद पर बीएसपी मुखिया को हिट करना ही था सो दो दिन बाद मायावती कि ओर से जो जबाब आया,उसी के इर्द गिर्द घूमती है कहानी ,मायावती के जबाब को यहाँ पर हु बहु उल्लेखित करना बेहद जरुरी है,मायावती ने बोलो कि बीएसपी सरकार कि उपलव्धियों कि किताब युवराज ओर कांग्रेस के विधायकों व सांसदों को भेजी जायेगी ,जिसे पड कर वह सच्चाई जान सकेगे कि स्मारकों व मूर्तियों पर पैसा बर्बाद का आरोप लगाने वाली कांग्रेस अपने राज में कितने ही स्थानों पर मूर्तियों तथा स्मरक बनबती रही है ,कांग्रेस के मुकाबले बीएसपी सरकार ने आटे में नमक के बराबर मूर्तियों लगाने का काम किया है तो विकास बाधित होने कि बात कही जाती है ,सच यह है कि उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थापित सारे स्मारक व मूर्तियों से ज्यादा कीमत तो अकेले दिल्ली में राजघाट में है ,पर इसमें कांग्रेस की दलित विरोधी मानसिकता उजागर हो जाती है,दिल्ली के राजघाट की तुलना लखनऊ के अम्बेडकर पार्क से करना कही भी न्यायोचित समझ नही आ रहा है,असल में राजघाट रास्ट्रपिता महात्मा गाँधी का समाधी स्थल है जब कि लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में मायावती ओर कांशीराम कि मूर्तियों को स्थापित कराया गया है,अब मायावती को कौन समझाए कि राजघाट ओर अम्बेडकर पार्क में क्या फर्क है ,जिसे आसानी से समझा जा सकता है,हो ना हो शायद मायावती ने अपने मन में यह वहम पाल रखा हो कि वे लखनऊ के अम्बेडकर पार्क को दिल्ली के राजघाट अपने लिए बना सकती है ,इस बात को खुद समझा जा सकता है कि राजघाट कि तुलना कर मायावती क्या बताना चाह रही है,यहाँ इस बात को भी साफ किया जा सकता कि मायावती ने अपने ये विचार जाहिर करके एक बात बता दी है की मायावती निकट भविष्य अम्बेडकर पार्क को राजघाट कब बनाएगी ?

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश

जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में दलित वोट को हथियाने को लेकर बीएसपी और कांग्रेस के बीच जारी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है,उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी का मुरादाबाद में दिया गया भाषण एक नए विवाद को जन्म दे गया है.इसी के चलते राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर दलित उत्तपीडन के तहत ना सिर्फ मुकदमा दर्ज करवाया बल्कि उन्हें जेल में भी डलवाने में कोई कसर नहीं छोडी,बात करते है दलित वोट के कब्जे कि शुरुआत की,तो इटावा के इकदिल इलाके के अमीनाबाद गाँव में १२ मार्च २००८ में चम्बल घाटी के डाकू नादिया और उसके साथियों ने दलित परिवार के पांच लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी,इस हत्या कांड के बाद कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गाधी ने इस प्रभावित गाँव का दौरा करने का मन बनाया वैसे ही एक दिन पहले १५ मार्च को मायावती आ धमकी इस गाँव में,देर शाम को आई मायावती पुलिस घेरे में रह कर पडितो के परिजनों से मिली और अँधेरा होने से पहले चली गयी लेकिन उसके बाद १६ मार्च को आये राहुल गाँधी ने कई घंटों तक पीडतों के परिजनों से बात कि और उसके बाद जाते जाते राहुल गाँधी गाँव के खेत में एक आलू खोदते बच्चे को कंधे पर उठा कर घुमा दिए,जिससे गाँव में तो राहुल के दलित प्रेम की चर्चा हुई, देश भर में जब इन तस्वीरों को न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया गया तो उन तस्वीरों की जमकर तारीफ हुयी और राहुल ने इस कांड के दौरे के बाद दलितों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए दलितों के दरबाजे दरबाजे दस्तक देना शुरु कर दी, बस इसी सब के बाद खिसहाट उजागर हो गयी, जब मायावती की और से कहा गया कि राहुल का दलित प्रेम नाटक है,और दलितों के घर जाने के बाद राहुल को नहलाया जाता है,यह विचार क्या उजागर करते है,आसानी से समझा जा सकता है,अगर कोई दलित बीएसपी के साथ है तो कांग्रेस को क्या आपत्ति लेकिन जैसा देखा जा रहा है लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी मुखिया खासे गुस्से में दिख रही है,इसी वजह से ऐसी शब्दावली आम आदमी को सुनने को मिल रही है,जिन्हें कभी राजनीत में कोड़ समझा जा रहा था,कुछ भी कहे दलित वोट को कब्जाने की कांग्रेस और बीएसपी की जुगत राजनीत की कौन से दिशा तय करेगी, यह समझ से परे है,यहाँ अब इस तरह के हालत बन गए है कि दलित वोट को कब्जाने के जुगत में उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा की ओर मुखातिब होता चला जा रहा है.बीएसपी जंहा दलित को अपना परम्परागत वोट बैंक समझता है वही कांग्रेस भी दलितों को अपनी और खीचने कि कोशिश में है,कुल मिला कर लड़ाई को रोका जाना जरुरी है .