रविवार, 19 जुलाई 2009

ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?

ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?
अपने देश कहावत है कि साठ की उम्र पार करने के बाद इन्सान सठिया जाता है, बिलकुल ऐसा ही समझ में आ रहा है, महानायक अमिताभ बच्चन के साथ हो रहा है,तभी तो वे सठियाने जैसी बात करने में लग गए है ,उनकी बातें ऐसी हो गयी है जिसे पड़ कर या सुन कर कोई उन्हे सठिया कहे बिना नहीं रह सकता है, आज के वैज्ञानिक युग में अगर कोई ऐसा दावा करता है, जो आम आदमी के गले नही उतरता तब दावे करने वाले शख्स को क्या कहा जाता है ,आप अच्छी तरह से जानते है ऐसे लोगों को सिरफिरा कहा जाता है,२० जुलाई को देश भर के समाचार पत्रों में इस खबर को सुर्खियों के वरीयता से प्रकाशित किया गया है कि महानायक अमिताभ बच्चन की "ईश्वर से बात हुयी है"अमिताभ ने अपने ब्लॉग में जो लिखा है वो वाकई हैरत में डालने वाला है,वो कहते है कि ईश्वर ने उन्हे एक ईमेल भेजा है,जिसमे ईश्वर ने उनके सवालों का जवाब दिया है,यह वाकई ईश्वर का ईमेल है फिर कथित ईश्वर का ईमेल,ईश्वर से बात करने का दावा करने वाले अमिताभ बच्चन की बात गले उतरते हुए नहीं दिख रही है,क्यूँ कि ऐसी बात कही गयी है जिसका भरोसा नहीं किया जा सकता है ,अभी तक ईश्वर से मिलने या फिर मुलाकात का दावा करने वालों को देश दुनिया में सिरफिरा ही कहा है इसलिए अमिताभ को अन्य की ही भांति सिरफिरा कहा जायेगा,इसमे कोई दो राय नही कि अमिताभ जिस ईमेल का जिक्र कर रहे है, उस ईमेल के बारे में उन्ही से जाना जाये वो ईमेल किसका है, जिसे अमिताभ ईश्वर का ईमेल होने कि बात कह रहे है.इस बात कि भी जाँच पड़ताल की जानी जरुरी है अब सवाल उठता है सिर्फ ईश्वर का कथित ईमेल अमिताभ के पास ही कैसे आया ?देश में करोडों की आबादी में अमिताभ में ऐसा क्या था कि ईश्वरी ईमेल अमिताभ के पास आया ,मै ईमेल को कथित इसलिए कह रहा हूँ कि ईश्वर क्या वाकई ईमेल पर काम कर रहे है तो वो ईमेल जरुर जाँच का विषय बन सकता है इस तरह के ईमेल कि जाँच के किये तमाम एजेंसिया काम कर रही है इन्हें जाँच कर यह पता करने कि जरुरत है कि अमिताभ जो कुछ कह रहे है वो कितना सच है या फिर वे सठिया गए है,जो देश वासियों को ईश्वर के नाम पर ग्रह करने में जुटे.

शनिवार, 18 जुलाई 2009

अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?

अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?
बीएसपी मुखिया उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और कांग्रेस के बीच जारी वाक् युद्घ बढता ही चला जा रहा है,कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांघी ने बीएसपी मुखिया मायावती को आडे हाथों लिया कि उत्तर प्रदेश के विकास के बजाय मूर्तियों का विकास करने में जुटी हुयी है मायावती,कांग्रेस प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी की मुरादाबाद में गिरफ्तारी के बाद राहुल ने यह बल कर कि मायावती को निशाने पर रखा है,अब जाहिर है कि कांग्रेस कि ओर से फेंकी गयी गेंद पर बीएसपी मुखिया को हिट करना ही था सो दो दिन बाद मायावती कि ओर से जो जबाब आया,उसी के इर्द गिर्द घूमती है कहानी ,मायावती के जबाब को यहाँ पर हु बहु उल्लेखित करना बेहद जरुरी है,मायावती ने बोलो कि बीएसपी सरकार कि उपलव्धियों कि किताब युवराज ओर कांग्रेस के विधायकों व सांसदों को भेजी जायेगी ,जिसे पड कर वह सच्चाई जान सकेगे कि स्मारकों व मूर्तियों पर पैसा बर्बाद का आरोप लगाने वाली कांग्रेस अपने राज में कितने ही स्थानों पर मूर्तियों तथा स्मरक बनबती रही है ,कांग्रेस के मुकाबले बीएसपी सरकार ने आटे में नमक के बराबर मूर्तियों लगाने का काम किया है तो विकास बाधित होने कि बात कही जाती है ,सच यह है कि उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थापित सारे स्मारक व मूर्तियों से ज्यादा कीमत तो अकेले दिल्ली में राजघाट में है ,पर इसमें कांग्रेस की दलित विरोधी मानसिकता उजागर हो जाती है,दिल्ली के राजघाट की तुलना लखनऊ के अम्बेडकर पार्क से करना कही भी न्यायोचित समझ नही आ रहा है,असल में राजघाट रास्ट्रपिता महात्मा गाँधी का समाधी स्थल है जब कि लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में मायावती ओर कांशीराम कि मूर्तियों को स्थापित कराया गया है,अब मायावती को कौन समझाए कि राजघाट ओर अम्बेडकर पार्क में क्या फर्क है ,जिसे आसानी से समझा जा सकता है,हो ना हो शायद मायावती ने अपने मन में यह वहम पाल रखा हो कि वे लखनऊ के अम्बेडकर पार्क को दिल्ली के राजघाट अपने लिए बना सकती है ,इस बात को खुद समझा जा सकता है कि राजघाट कि तुलना कर मायावती क्या बताना चाह रही है,यहाँ इस बात को भी साफ किया जा सकता कि मायावती ने अपने ये विचार जाहिर करके एक बात बता दी है की मायावती निकट भविष्य अम्बेडकर पार्क को राजघाट कब बनाएगी ?

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश

जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में दलित वोट को हथियाने को लेकर बीएसपी और कांग्रेस के बीच जारी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है,उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी का मुरादाबाद में दिया गया भाषण एक नए विवाद को जन्म दे गया है.इसी के चलते राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर दलित उत्तपीडन के तहत ना सिर्फ मुकदमा दर्ज करवाया बल्कि उन्हें जेल में भी डलवाने में कोई कसर नहीं छोडी,बात करते है दलित वोट के कब्जे कि शुरुआत की,तो इटावा के इकदिल इलाके के अमीनाबाद गाँव में १२ मार्च २००८ में चम्बल घाटी के डाकू नादिया और उसके साथियों ने दलित परिवार के पांच लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी,इस हत्या कांड के बाद कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गाधी ने इस प्रभावित गाँव का दौरा करने का मन बनाया वैसे ही एक दिन पहले १५ मार्च को मायावती आ धमकी इस गाँव में,देर शाम को आई मायावती पुलिस घेरे में रह कर पडितो के परिजनों से मिली और अँधेरा होने से पहले चली गयी लेकिन उसके बाद १६ मार्च को आये राहुल गाँधी ने कई घंटों तक पीडतों के परिजनों से बात कि और उसके बाद जाते जाते राहुल गाँधी गाँव के खेत में एक आलू खोदते बच्चे को कंधे पर उठा कर घुमा दिए,जिससे गाँव में तो राहुल के दलित प्रेम की चर्चा हुई, देश भर में जब इन तस्वीरों को न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया गया तो उन तस्वीरों की जमकर तारीफ हुयी और राहुल ने इस कांड के दौरे के बाद दलितों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए दलितों के दरबाजे दरबाजे दस्तक देना शुरु कर दी, बस इसी सब के बाद खिसहाट उजागर हो गयी, जब मायावती की और से कहा गया कि राहुल का दलित प्रेम नाटक है,और दलितों के घर जाने के बाद राहुल को नहलाया जाता है,यह विचार क्या उजागर करते है,आसानी से समझा जा सकता है,अगर कोई दलित बीएसपी के साथ है तो कांग्रेस को क्या आपत्ति लेकिन जैसा देखा जा रहा है लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी मुखिया खासे गुस्से में दिख रही है,इसी वजह से ऐसी शब्दावली आम आदमी को सुनने को मिल रही है,जिन्हें कभी राजनीत में कोड़ समझा जा रहा था,कुछ भी कहे दलित वोट को कब्जाने की कांग्रेस और बीएसपी की जुगत राजनीत की कौन से दिशा तय करेगी, यह समझ से परे है,यहाँ अब इस तरह के हालत बन गए है कि दलित वोट को कब्जाने के जुगत में उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा की ओर मुखातिब होता चला जा रहा है.बीएसपी जंहा दलित को अपना परम्परागत वोट बैंक समझता है वही कांग्रेस भी दलितों को अपनी और खीचने कि कोशिश में है,कुल मिला कर लड़ाई को रोका जाना जरुरी है .

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

सच का सामना है या फिर बबाले जान ?

सच का सामना है या फिर बबाले जान ?
क्या स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहे रियलिटी शो "सच का सामना" से घरों में विवाद छिड़ेगा?प्रोग्राम में पार्टिसिपेंट से उनकी पास्ट लाइफ के बारे बहुत निजी और कंट्रोवर्सियल सवाल पूछे जा रहे हैं जैसे एक लेडी से पूछा (१५जुलाइ ०९) अगर आपके हसबैंड को पता न चले तो क्या आप दुसरे मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना चाहेंगी?लेडी ने जवाब दिया "नहीं" जबकि पालीग्राफ मशीन के सामने लेडी का जवाब "हां" दर्ज है.एक आदमी से सवाल पूछा गया "क्या आपके दिल मैं कभी अपनी साली से जिस्मानी रिश्ते बनाने की ख्वाहिश होती है?उसने जवाब दिया "नहीं" मशीन कहती है "हां". गेम में पार्टिसिपेट करने के बाद घर वापसी में उनके रिश्तों में ज़बरदस्त तल्खी आना स्वाभाविक है और घरों में बवाल शुरू होगा. ऊपर से माडर्न दिखना एक बात है लेकिन निजी ज़िन्दगी में पराये मर्द या लेडीज़ से क्लोज़ रिलेशन बनाने की इजाज़त देना या इसे स्वीकार करना हमारे इंडियन कल्चर में नामुमकिन बात है. यह बात भले ही सच हो कि यह प्रोग्राम देश में आज प्रसारित किया जा रहा हो लेकिन विदेशों में पहले ही इस तरह के प्रोग्राम प्रसारित किये जा चके है,वहाँ पर भले ही इस तरह के प्रोगार्मों ने आम आदमी कि जिन्दगी पर कोई असर ना डाला हो लेकिन हिन्दुतान के लिए यह प्रोग्राम किसी बाबले जान से कम नहीं है.जिस तरह से कानूनी मान्यता पा चुके समलेंगगिगता को देशवाशी पचा नहीं पा रहे है ठीक उसी तरह से स्टार प्लस का यह प्रोग्राम है,जिससे कार्यक्रम में हिस्सा लेनेवाले के परिवार में सवालों को लेकर बबाल मचने की पूरी पूरी संभाबना तो है ही साथ ही हमारी आने वाली नश्लों पर भी गहरा असर पड़ने की पूरी उम्मीद है,ऐसे में इस तरह के प्रोग्राम पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए सरकार के साथ साथ सामजिक संगठ्नों को भी उठ खडा होना चाहिए,जिस तरह के सवालात सच का सामना में पूंछे जा रहे है वे जरुर ही भारतीय समाज में एक नया बबाल खडा करेगें

बुधवार, 8 जुलाई 2009

सरेआम लाशे बहाने के लिए जिम्मेदार कौन

सरेआम लाशे बहाने के लिए जिम्मेदार कौन
कभी यमुना नदी के जल को राज तिलक करने के काम में लिया जाता था, लेकिन आज हालत यह बन गए है कि यमुना नदी के जल में कोई भी नहाना भी पसंद नहीं करता है,वजह साफ़ है की यमुना नदी दिल्ली से लेकर इटावा तक एक तरह से गंदे नाले में तब्दील हो गयी है,कहने को तमाम योजनाये सफाई की चलाई जाती है लेकिन यमुना में अनजान शवों को फेकना रुक नहीं पा रहा है ,ट्रेन से कट कर मरे हो ,या किसी हादसे में मरे अनजान के शवों को बिना जलाये ही यमुना बहाया जाता है,जिस वजह से यमुना का रूप बदल रहा है,कहे कुछ भी यमुना को मैली करने के लिए है हम सब जिम्मेदार,इटावा में यमुना में अनजान शवों को यमुना नदी में फेका जा रहा है जिसे कैमरे के कैद कर पोल खोल दी गयी है , पुलिस की कलई को, जो वो कहती है की हम अनजान शवों का करते है अंतिमसंस्कार ,यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने के लिए जापान सरकार की मदद से दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में यमुना एक्शन प्लान नाम की योजना चलायी जा रही है.उससे भी यमुना का प्रदूषण दूर नहीं हो पा रहा है,यमुना नदी जिसे हम धार्मिक तौर पर महत्त्वपूर्ण समझते है लेकिन हम सब यमुना नदी के इस तरह के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है जिन आधिकारियों के कन्धों पर प्रदूषण दूर करने की जिम्मेदारी है वो नदी का प्रदूषण दूर करने के बजाये खुद का प्रदूषण दूर करने में लग जाते है,करोडों रूपये खर्चे के बाबजूद यमुना नदी को प्रदूषण को दूर करने के लिए अब गंगा की तरह देश भर में एक नयी अलख शुरु करने की जरुरत समझ में आ रही है,तभी यमुना में लाशों का डालना बंद हो पायेगा