मंगलवार, 6 जुलाई 2010

गिद्ध के बाद अब सारस पर संकट

सारस पक्षी पर आया संकट एक तरह से गिद्ध पर आये संकट से किसी मायने मे कम नही लग रहा है. इस बात को वन अधिकारियों के अलावा पर्यावरणीय संस्था से जुड़े हुए लोग भी मानने लगे है.सारस पक्षी की गणना को लेकर कई लोग सवाल उठाने लगे है कि जब सारस के संरक्षण की हकीकत मे जरूरत थी उस वक्त वन अमले ने कोई काम नही किया अब लकीर पीट कर दिखवा करने की कोशिश की जा रही है.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 20 जून से पूरे राज्य मे सारस पक्षी की गणना कर रही है. गणना में सारस पक्षी के लिये किस तरह के नतीजे निकालेगे यह तो गणना के बाद ही पता चलेगा लेकिन अभी सारस की गणना से ही पक्षी प्रेमी उत्साहित है. इस गणना मे राज्य के वन विभाग के अलावा पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्थाओ से भी मदद ली जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार ने सारस को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया है.
1999 में हुई गणना के मुताबिक वर्तमान में सारसों की संख्या महज दुनिया में सारसों की संख्या महज आठ हजार रह गई है. सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया जाना भी सारस को बचाने की एक पहल माना जाता रहा है. उत्तर प्रदेश का इटावा जिला सारस पक्षी के सबसे बड़े आशियाने के तौर पर देश दुनिया के मानचित्र पर काबिज है.इटावा मे करीब 3000 की तादात सारस की हमेशा देखी जा रही है लेकिन इस बार सारस पक्षी गिद्धों की माफिक गायब होता हुआ दिख रहा है तभी तो सारस की गणना करके उसे बचाने की दिशा तय की जा रही है. इंसानी करतूत के चलते माना जा रहा है कि सारस के वास स्थल को खासा नुकसान पहुंच रहा है,तालाब पोखर आदि सबके सब सूखते चले जा रहे है जिसको लेकर सारस पक्षी की संख्या घटती हुई दिख रही है. सारस पक्षी के लिये दुनिया का एक मात्र स्थल होने के बावजूद इटावा को पूरी तरह से सरकारी तौर पर उपेक्षित रखा गया है,जब कि सर्वोच्च न्यायालय के सारस संरक्शण के आदेषों को बलाये ताक रख कर आजतक ना तो केन्द्र सरकार और ना ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई ठोस कार्य योजना अमल में नहीं लाई गई है.जब कि सारस पक्षी को उत्तर प्रदेशश सरकार ने राज्य पक्षी का दर्जा देकर महज खाना पूरी कर रखी है.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में इटावा के सभी तालाबों,झाबरों को ऊसर सुघार योजना के तहत समाप्त किया जा रहा था तब इलाहबाद उच्च न्यायालय में बाइल्ड ट्रस्ट आफॅ इडिण्या ने एक याचिका दायर कर इस परियोजना से तालाबों को होने वाले नुकसानों को रोकने की पहल की. सैफई में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिये सारसों पर गोली तक से मारने के दृष्यों को कैमरों में कैद कर लिये जाने के बाद देश दुनिया के सारस विषेशज्ञों ने मुलायम सिंह यादव को आडे हाथों ले लिया था. बाद में मुलायम सिंह यादव ने विकास की बात कह कर खफा सारस विषेशज्ञों को मना लिया था.2005 साल में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में इटावा में सैफई हवाई पट्टी के विस्तारी करण के लिये सैफई के पास एक विषाल झाबर को समाप्त करने को लेकर सोसायटी फॉर कन्जरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान की शिकायत पर राज्य सरकार ने 10 करोड़ की राशि सारस संरक्षण के लिये जारी कर सारस संरक्षण समिति गठित तो जरूर कर दी गई लेकिन इस समिति ने सारस के संरक्षण के लिये क्या काम किया इसका कोई रिकार्ड नहीं है? इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में अपना हलफनामा दाखिल कर वादा किया कि तालाबों के संरक्षण किया जायेगा लेकिन आज तक किसी भी तालाब का संरक्षण नहीं किया गया,बताया गया है कि सारसों के संरक्षण के नाम पर प्रतिवर्ष लखनऊ में एक बैठक कर ली जाती है,वो भी सिर्फ कागजों में अमर प्रेम का प्रतीक सारस पक्षी ने दुनिया भर में इटावा जिले की पहचान करा रखी हैं. इटावा जिले के खेतों में घूमते देखे जाते सारस आम बात हैं. वर्ष 1999 में संपादित सारस गणना के मुताबिक पूरी दुनिया में सारस पक्षी के करीब 8 हजार सदस्यों के जीवित होने का अनुमान लगाया गया. इनमें 200 नेपाल, 4 पाकिस्तान तथा बंग्लादेश में देखे गये 2 सारस पक्षियों के अतिरिक्त शेष सभी भारत में ही रहते हैं. करीब 5 हजार अकेले उत्तर प्रदेश में स्वच्छंद रूप से ताल तलैयों के किनारे तथा घान के खेतों वास करते हुए देखे जाते रहे हैं लेकिन सूखे की वजह से ये अब ना तो पहले की तरह खेतो में देखे जा रहे हैं और तो और इनके अण्डे भी पहले की तरह नजर नहीं आ रहे हैं. दुनिया में सबसे उंचा सारस उडने वाला पक्षी किसानों का मित्र हैं. करीब 12 किलो वजन वाले सारस की लम्बाई 1.6 मीटर तथा जीवनकाल 35 से 80 वर्ष तक होता है. सारस वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनूसूची में दर्ज हैं. सारसों की 1999 से गणना काम इटावा और आसपास के इलाकों सोसायटी फॉर कंजरवेषन ऑफ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था की ओर किया जा रहा हैं. यह पहला मौका हैं जब सूखे की वजह से सारस पक्षी का प्रजनन प्रभावित होता नजर आ रहा है, कुल मिला कर कह सकते हैं कि सूखे ने जहां आम आदमी का जीना मुष्किल कर दिया हैं वहीं पक्षियों के लिये भी खतरा पैदा कर दिया हैं.
देश में सारस की 6 प्रजातियां है.इनमें से 3 प्रजातियां इंडियन सारस क्रेन,डिमोसिल क्रेन व कामन क्रेन है, दुनिया भर में सारस पक्षियों की अनुमानित संख्या 8 हजार है,इनमें अकेले इटावा में 2500 और मैनपुरी में करीब 1000 सारस है अनूकूल भौगोलिक परिस्थितियां सारसों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है,दोनों जिलो में अनकूल पानी के जल क्षेत्र,धान के खेत, दलदल, तालाब, झील व अन्य जल स्त्रोत पाये जाते है.दल-दली क्षेत्रों में पाई जाने वाली घास के टयूबर्स, कृषि खाद्यान्न, छोटी मछलियां, कीड़े-मकोड़े, छोटे सांप, घोघें, सीपी आदि भोजन के तौर पर सारसों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. उल्लेखनीय है कि अग्रेंज कलक्टर ए.ओ.हृयूम के समय में इस क्षेत्र में साइबेरियन क्रेन भी आता था,जिसको देखने के लिये अब भरतपुर पक्षी विहार जाना पडता था क्योंकि 2002 साल में आखिरी बार साईबेरियन क्रेन का एक जोडा देखा गया था.
सोसायटी फार कन्जरवेशन आफॅ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था के सचिव डा.राजीव चौहान ने सूखे की मार झेल रहे इटावा के कई इलाको सारसों की खोज के लिये का भ्रमण किया,लेकिन सारस है देखने को भी नहीं मिल रहा है,इलाकाई ग्रामीण भी इस बार सूखे के चलते चिंतत नजर आ रहे है उनका साफ कहना है इन दिनो सारसों के जोडे यदा कदा ही नजर आ रहे है जो पहले खासी तादात में दिखलाई दिया करते थे. इसके पीछे किसानों का कहना है कि इस बार सूखे की वजह से जहां किसानों की फसले चौपट हुई है, वहीं किसानो का मित्र कहे जाने वाला सारस पक्षी भी पानी कमी के चलते संकट में नजर आ रहा है.कभी सारसों की संख्या सैकडों में देखी जाती रही है आज ना के बराबर रह गई है. जब सारस खेतो में दिखलाई ही नहीं देगें तो लाजिमी है कि उन पर संकट आने का ही संकेत ही माना जायेगा. कहा कुछ भी जाये सूखे की मार ने किसानो को जहां मुसीबत में डाला है वही पर किसानो का मित्र समझा जाने वाले सारस को भी बख्सा नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि सारस के प्रजनन में सूखे की वजह से कुप्रभाव बडे पैमाने पर पड़ा है.
अब जब इन सारसों क बच्चें अण्डों से बाहर निकल आये है तो देखा जा रहा है कि इनका प्रजनन बडे पैमाने पर प्रभावित होने का अनुमान लगाया जाने लगा है क्यो कि पुराने दिनों की तरह इस बार सारसों के बच्चें खेत खलिहानों में नहीं दिख रहे है,इस बात की तस्दीक सारसों के इर्द गिर्द रहने वाले गांव वाले भी करते है,वही दूसरी ओर इस बार सारसों के प्रजनन को प्रभावित होने का अनुमान इटावा के प्रभागीय वन निदेषक सुर्दषन सिंह भी लगा रहे है उनका कहना है कि पानी की कमी ने सारसों के प्रजनन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है,तभी तो राज्य के वन विभाग ने सारस की गणना का काम षुरू किया है. सुदर्शन सिंह भी मानते है कि जिस तरह से गिद्ध पक्षी पर खतरा मडराया उसी तरह से सारस भी खतरे जद मे आ गया है.
मानसून समय से आने पर सारस पक्षी के प्रजनन पर बुरा असर पडा है. 20 फीसदी तक प्रजनन में गिरावट दर्ज की जा रही है. इससे पहले के सत्र में जुलाई से सिंतबर तक ही प्रजनन को देखा जाता था लेकिन पिछली बार अक्टूबर में देखा गया है. इस बार पानी की चलते धान की बुबाई कम क्षेत्रों में पहले के मुकाबले हुई है,जिससे इनके बच्चें को छुपाने के लिये बच्चों की सुरक्षित स्थान नहीं मिल पा रहा है. कुल मिला कर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि संकटग्रस्त सारस पर एक बार फिर एक नया संकट पानी की किल्लत के रूप में सामने आया है. अब सवाल यह उठता है कि सूखे की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई किस आधार पर हो पायेगी ?

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