इटावा। वन्य जीव प्रेमियों के लिए चंबल सेंचुरी क्षेत्र से एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। किसी अज्ञात बीमारी के चलते बड़ी संख्या में हुई डायनाशोर प्रजाति के विलुप्तप्राय घडि़यालों के कुनबे में सैकड़ों की संख्या में इजाफा हो गया। अपने प्रजनन काल में घडि़यालों के बच्चे जिस बड़ी संख्या में चंबल सेंचुरी क्षेत्र में नजर आ रहे हैं वहीं चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों की अनदेखी से घडि़यालों के इन नवजात बच्चों को बचा पानी काफी कठिन प्रतीत हो रहा है।दिसंबर]-2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों की संख्या में डायनाशोर प्रजाति के इन घडि़यालों की मौत ने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडि़याल किसी किताब का हिस्सा न बनकर रह जाएं। घडि़यालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस,अमेरिका सहित तमाम देश के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडि़यालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले।घडि़यालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर क्लोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण की बजह से घडि़यालों की मौत को कारण माना। वहीं दबी जुबां से घडि़यालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडि़यालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घडि़यालों की मौत की बजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घडि़यालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।घडि़यालों के अस्तित्व पर संकट के प्रति चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारी लगातार अनदेखी करते रहे हैं। घडि़यालों की मौत की खबर भी इन अधिकारियों को हरकत में नहीं ला सकी और अब जबकि घडि़यालों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इटावा जनपद से गुजरने वाली चंबल में बड़ी संख्या में घडि़यालों के बच्चों ने जन्म लिया है तो अभी तक इनकी सुरक्षा के लिए सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों ने कोई उपाय नहीं किए हैं।उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को जोड़ने वाली चंबल नदी में घडि़यालों के बच्चों को नदी के किनारे बालू पर रेंगते हुए और नदी में अठखेलियां करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में घडि़यालों के प्रजनन के बारे में जानकर अंतर्राष्ट्रीय वन्य जीव प्रेमियों में उत्साह है तो वहीं इनकी सुरक्षा को लेकर चिंता भी जताई जा रही है। वन्य जीव प्रेमियों को आशंका है कि आने वाले दिनों में मानसून में चंबल के बढ़ते वेग में कहीं यह बच्चे बह कर मर न जाएं परंतु इसके बावजूद भी चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों को इससे कोई सरोकार नहीं रह गया है।नेचर कंजर्वेसन सोसायटी फाWर नेचर के सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चौहान बताते हैं कि पंद्रह जून तक घडि़यालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ&दस दिन पूर्व तक रहता है। घडि़यालों के प्रजनन का यह दौर ही घडि़यालों के बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घडि़यालों के बच्चे नदी के वेग में बहकर मर जाते हैं। इन बच्चों को बचाने के बारे में वह उपाय बताते हैं कि यदि इन बच्चों को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में संरक्षित कर तीन साल तक बचा लिया जाए तो इन बच्चों को फिर खतरे से टाला जा सकता है। वे कहते हैं कि महज दस फीसदी ही बच्चे बच पाते हैं जबकि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।वहीं डा.चौहान यह जानकर चौंकते हैं कि घडि़यालों के बच्चों की संख्या हजारों में है। वह संभावना जताते हैं कि विगत दिनों इस प्रजाति को बचाने के लिए 840 बच्चों को नदी के ऊपरी हिस्से में छोड़ा गया था] कहीं ऐसा न हो कि यह वही बच्चे नीचे उतर आए हों परंतु नदी के तट पर जिस प्रकार से टूटे हुए अंडे नजर आते हैं उससे साफ है कि इन बच्चों ने अभी हाल ही में जन्म लिया है।देश मे दो घाटियां है,एक कश्मीर घाटी एवं एक चंबल घाटी। कश्मीर घाटी जहाW आतंकवादियों के आंतक से ग्रस्त है। वहीं चंबल घाटी को खूंखार डकैतों की शरण स्थली के रूप मे दुनिया भर मे ख्याति हासिल है। इसी चंबल घाटी मे खूबसूरत नदी बहती है चंबल। जिसमें मगर, घडि़याल, कछुये, डाल्फिन समेत तमाम प्रजातियों के वन्यजीव स्वच्छंद विचरण करते है। इतना ही नहीं चंबल की खूबसूरती में चार-चांद लगाने के लिये हजारों की संख्या मे प्रवासी पक्षी भी आते है] लेकिन पिछले दिनो से दुर्भल घडि़यालों की मौत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब डाल्फिन एवं मगर तक आ पहुंचा है। खूंखार डकैतों के खात्मे के बाद चंबल घाटी के वन्यजीवों पर जो संकट आया है। ऐसा लगता है कि खूंखार डकैतों के खात्मे के बाद सक्रिय अधिकारियों ने चंबल की खूबसूरती को दाग लगा दिया है।राजस्थान से प्रवाहित चंबल मध्य प्रदेश होते हुये उत्तर प्रदेश के इटावा के पंचनंदा तक इतनी खूबसूरत है जहां एक साथ मगर, डाल्फिन और घडि़याल रहते है और यहां हजारों की तादात मे घडि़याल मर रहे है तो कहीं ऐसा न हो कि चंबल की आने वाले दिनों मे खूबसूरती समाप्त हो जायें।चंबल की खूबसूरती इसलिये भी बढ़ जाती है क्योकि यहां की रीजनल डायवर्सिटी अपने आप में खूबसूरत है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुन्दरता के कारण हजारो विदेषी पक्षी आते है। जिनकी 200 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती है। जिस समय इस नदी को सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया था। पिछले साल जनवरी मे एक तेंदुआं भी करंट की चपेट में आकर मौत के मुंह में समा गया। इटावा मे पिछले साल दिसम्बर के पहले सप्ताह मे चंबल नदी मे घडि़यालों के मरने की खबरो ने सनसनी फैला दी। लेकिन वन अधिकारियों ने इससे साफ इंकार किया कि किसी घडि़याल की मौत नहीं हुई] लेकिन वन पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कन्जरवेशन आफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान ने इन मृत घडि़यालों को खोज ही नही निकाला बfल्क वन अधिकारियों की उस करतूत को भी उजागर कर दिया जो उन्होने बेजुबान घडि़याल की मौत के बाद किया था। पिछली गणना के मुताबिक चंबल मे 856 घडि़याल रिकार्ड किये गये थे लेकिन अब घडि़यालों की मौत के बाद इनकी संख्या को लेकर तरह&तरह की बाते उठने लगी है। उत्तर प्रदेश के वन्य मंत्री फतेहबहादुर सिंह ने घडि़यालों की मौत के बाद अधिकारियों को सतर्क किया और खुद भी चंबल का दौरा कर यह माना कि चंबल मे प्रदूषित पानी यमुना नदी के जरिए पहुंच रहा है। भरेह जिस स्थान से चंबल मे प्रदूषित पानी के पहुंचने की बात फतेहबहादुर सिंह की तरफ से कही जा रही है, यह समझ नहीं आ रहा है कि उनका यह कथन कितना सटीक और सही है। अगर दुर्लभ घडि़यालों, डाल्फिन एवं मगरों की मौत की बात करें तो कही न कही चंबल मे अधिकारियों का साम्राज्य हावी है और उन्हीं की यह करतूत है जो चंबल मे वन्यजीवो पर संकट आ खड़ा हुआ है। कुल मिलाकर कह सकते है कि चंबल के वन्य जीवों पर इन दिनों प्राकृतिक संकट आ खड़ा हुआ है जो कब दूर होगा कुछ कहा नहीं जा सकता।
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