रविवार, 15 नवंबर 2009

कौन है सच्चा कौन है झूठा

कहावत है कि क्रिया की प्रतिक्रिया जरूर होती है कुछ ऐसा ही हुआ है आज.सपा प्रमुचा मुलायम सिंह यादव की तल्ख बयानगी से आहत कल्याण सिंह ने आज मुलायम सिंह यादव को ले लिया हे आडे हाथों.अगर कल्याण सिंह की बात को सही माने तो यह कहने मे कोई गुरेज नहीं की मुलायम सिंह यादव उप चुनाव की हार के बाद मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गये है.मुलायम के बारे यह हम नहीं कह रहे है बल्कि मुलायम के पुराने दोस्त कल्याण सिंह की जुबानी है ,जिसे कल्याण ने पेष किया है मुलायम के जबाब स्वरूप.कल्याण के जबाब के बाद जहां समाजवादी पार्टी में हडकंप मच गया है वहीं राजनैतिक हलको में भी सनसनी फैली हुई. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने को कहा कि हाल के उपचुनावों में हुई पराजय से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है. कल्याण सिंह ने आज अपना गुस्सा कुछ इस तरह से बयान करते हुये कहा कि मुलायम सिंह बौखला गए हैं और हार के सही कारणों का पता लगाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं.बल्कि उनको निसाने पर रख रहे है.कल्याण सिंह के गुस्से का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बेटे राजबीर सिंह ने सपा महासचिव के पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया. राजवीर ने मुलायम सिंह द्धारा अपने पिता कल्याण सिंह को निषाने पर रखने को लेकर सपा महासचिव पद से इस्तीफा देकर मुलायम को कटघरे में खडा कर दिया.शनिवार को ही मुलायम ने कहा कि वह कभी कल्याण को पार्टी में नहीं लेंगे। इसी बयान से नाराज कल्याण सिंह ने बेटे राजबीर सिंह ने सपा से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. उत्तर प्रदेष की राजधानी लखनऊ में एक संबाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कल्याण सिंह कहा कि मुलायम धोखेबाज हैं और पार्टी की हालिया हार के कारण वे दिमागी संतुलन खो बैठे हैं और बौखला गए हैं. इतना ही नहीं कल्याण ने इस बात का खुलासा भी किया कि उन्हें भाजपा से इस्तीफा देने पर कहना और उनके बेटे राजबीर को सपा में शामिल होने का न्यौता खुद मुलायम और अमर सिंह ने उनके घर में आकर दिया था. उनके बेटे और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राजवीर सिंह ने समाजवादी पार्टी छोड़ने का एलान करते हुए कहा कि जिस पार्टी में बाबूजी का असम्मान हो उसमें बने रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। इसी के साथ कल्याण ने मुलायम पर परिवारवाद फैलाने का भी आरोप लगाया. नाराज कल्याण ने कहा कि यदि मुलायम हाथ जोड़कर भी उन्हें सपा में बुलाएंगे तो भी सपा पार्टी में नहीं जाएंगे.मुलायम पर अपनी भड़ास निकालते हुए कल्याण ने कहा कि मुलायम ने कई लोगों और पार्टियों को धोखा दिया है। इनमें आजम खान, लेट पार्टियां, बेनी प्रसाद वर्मा,राजबब्बर आदि शामिल हैं। इसी जगह से कल्याण ने मुसलमानों को सावधान रहने का आह्वान भी किया.उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह पर हमला बोलते हुए कहा है कि वह हार की वजह से अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं. कल्याण सिंह ने कहा कि मुलायम आज कह रहे हैं कि मुझे समाजवादी पार्टी में शामिल नहीं करेंगे. तथ्य यह है कि खुद मुलायम सिंह और अमर सिंह ने मुझे समाजवादी पार्टी में शामिल होने का आमंत्रण दिया था.मेरे घर आकर उन दोनों ने आग्रह किया था कि मैं उनकी पार्टी में शामिल हो जाऊं. जब मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ तब उन्होंने कहा कि ठीक है, हमें राजवीर दे दीजिए। फिर हम राजवीर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए. कल्याण सिंह ने कहा कि मुलायम आज भी हार के कारणों की समीक्षा नहीं कर रहे. वह हार का ठीकरा मेरे सिर पर फोड़ रहे हैं, यह कहते हुए कि कल्याण सिंह की वजह से मुस्लिम वोट उनसे टूट गए. अगर थोड़ी देर को यह मान भी लिया तो फिरोजाबाद में यादव वोट उनसे क्यों कटे? अपने गृह क्षेत्र इटावा में उन्हें क्यों हार का मुंह देखना पड़ा? भरथना में क्यों उनकी पार्टी जीत नहीं सकी ? इसका जबाब क्या है मुलायम के पास ?उन्होंने कहा,मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं मुलायम सिंह की अवसरवादी फितरत को समय रहते पहचान नहीं सका इसका नुकसान मुझे हुआ है. मेरे समर्थक भी इस वजह से बहुत परेशान हुए हैं.
18 जनवरी 2009 को मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह दिल्ली में राजूभईया उर्फ राजवीर के आवास में गए और मुझे फोन आया कि वहां मेरा इंतजार हो रहा है. मैं वहां गया और मैनें कारण पूछा तो दोनों व्यक्तियों ने कहा कि आप सपा में शामिल हो जाए.उस वक्त मैनें सपा में शामिल होने से इंकार कर दिया तब अमर मुलायम ने कहा कि जब आप नहीं शामिल होने चाहते तो राजबीर को सपा में शामिल करा दीजिए. हम नहीं होते तो मुलायम 14 सीटों पर सिमट रहें थे हमनें सपा को 23 सीटें दिलाई थी. हमनें सपा को 9 सीटों का फायदा कराया था। मुलायम सिंह के लिए तब कल्याण सिंह बहुत अच्छे थे लेकिन अब कल्याण सिंह मुलायम के लिए अच्चे नहीं है.गौरतलब है कि षनिवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि कल्याण सिंह कभी भी सपा के हिस्सा नहीं थे और मैं यह कहना चाहता हूं कि उन्हें कभी भी पार्टी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। और आज कल्याण ने कुछ इस तरह से मुलायम सिंह यादव को अपना दिया जवाब.मुलायम और अमर सिंह हाथ जोड़कर भी बुलाएगें तो भी सपा में शामिल नहीं होउंगा. मुलायम चुनावों में मिली हार के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है और हार का सहीं मुल्याकंन नहीं कर पा रहें है.सही कौन है और कौन बोल रहा है झूठ ? इसका आंकलन तो आदमी कर ही चुका है लेकिन यहां पर इस बात का जिक्र करना बेहद दिलचस्प होगा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कल्याण के लिये संसदीय चुनाव में एटा में उनके लिये अपना प्रत्याषी ना उतरते हुये उन्हें निर्दलीय सांसद बनवा दिया.अब आई बारी उप चुनाव की. जिसमें कल्याण सिंह हैलीकाप्टर से चुनाव मैदान में उतरे.आखिर कल्याण सिंह को चुनाव में प्रचार करने के लिये किसने कहा था ?इस सवाल का जबाब जाहिर है सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से बेहतर आखिर कौन दे सकता है. क्या ऐसा संभव है कि किसी दल के मुखिया की सहमति से कोई भी उनके दल के प्रत्याषी के लिये प्रचार करने के लिये आ जाये ? दूसरे आगरा में हुये सपा अधिवेषन की बात ऐसे में अधूरी क्यों रह जाये ? तो बात उसकी भी जरूरी है ताकि पता तो असल में चल ही जाये.कल्याण सिंह की बात को अगर माना जाये तो मुलायम के राज्यसभा सदस्य भाई डा.रामगोपाल यादव ने उन्हें बाकायदा लंबा चैडा खत भेज कर बुलावा भेजा था तब में आया था.जब कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कल्याण को बुलाया नहीं गया था,वो खुद ही आये थे ऐसे में जाहिर है कि आप समझा गये होगें कि सच कौन बोल रहा है और झूठ का लबादा कौन ओढे हुये है ?

शनिवार, 8 अगस्त 2009

आरएसएस वाले क्या सच से रूबरू हो गये ?

अगर ड्रेस कोड की बात करें तो किसी संगठन को बल या गति देने के लिए ड्रेस कोड लागु किया जाता है,अब उस ड्रेस कोड को बदलने की कबायत की जा रही है इसी ड्रेस कोड जरिये देश में लाखों की तादात में स्वंयसेवक बना लिए गए है,और अब उसे बदलने की क्या जरूरत आन पड़ी है .जी हां बिलकुल सही समझे हम उसी बात को कह रहे है जो आप समझ रहे है,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बदल रहा है और जल्द ही आप संघ नेताओं को पारंपरिक हाफ खाकी नेकर की बजाय पतलून में देखें तो चौंकियेगा मत। दरअसल संघ के भीतर नए जमाने के साथ खुद को बदलने को लेकर गहरा मंथन चल रहा है। इसी का नतीजा है कि लीक से हटकर संघ के ड्रेस कोड को बदलने की चर्चा जोरों पर है। खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि सबकी सहमति जिस दिन बन जाएगी उस दिन बदलने में हमको कोई दिक्कत नहीं है। गणवेश में हाफ पैंट भले हो लेकिन शाखा में तो स्वयंसेवक धोती, लुंगी, फुल पैंट, पजामा सबकुछ पहनकर आते हैं।दरअसल 1925 में हेडगेवार ने आरएसएस का गठन किया तब से ही संघ के स्वंयसेवक खाकी निकर में दिखते आये हैं। कई बार इसे लेकर बहस भी हुई लेकिन संघ की ड्रेस आज भी वही है। 21वीं सदी की हकीकत का सामना कर रहा संघ अब ज्यादा देर करना नहीं चाहता। उसकी ये चिंता इसलिये भी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में संघ की शाखाओं में कमी आयी है। नये जमाने से कदमताल कर रहा युवा संघ के निकर में शाखाओं में जाना नहीं चाहता।इतना ही नहीं, आरएसएस के अंदर अब ये सोच भी सामने आ रही है कि उनके प्रचारकों को दाम्पत्य जीवन में आने से नहीं रोका जाये। पहले इन मामलों में संघ बहुत कट्टर माना जाता था। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संकेत दिया कि प्रचारकों की शादी को लेकर संघ अपने नियमों में ढ़ील देने पर विचार कर रहा है।भागवत कहते हैं कि प्रचारक कम चाहिए संघ में व्यवस्थापन कार्य में समय देने वाले ज्यादा चाहिए इसलिए सारा विचार करके हम लोगों ने तय किया है कि जिसका ऐसा मन बनता है जब तक ऐसा मन बनता है तब तक प्रचार करे बाकि इच्छा है उसे तो जाकर करे हमको भी दिक्कत नहीं है।दरअसल आरएसएस धीरे-धीरे इस सच का सामना कर रहा है कि उसे अपने अंदर कुछ मूलभूत बदलाव करने होंगे। हिन्दुत्व के नाम पर उसकी छवि अभी तक एक ऐसे संगठन की बन कर रह गयी है जिसकी विचारधारा बहुत हद तक मुस्लिम विरोध पर टिकी है। इस चक्कर में एक उदारवादी हिन्दू आरएसएस से जुड़ने को तैयार नहीं है और मुस्लिम समुदाय के अंदर तो अब तक ये संगठन पैठ ही नहीं बना पाया है। इन्क्लूसिव पॉलिटिक्स के इस दौर में संघ का समय के साथ बदलना उसकी जरूरत भी है और मजबूरी भी। ऐसे में संघ खुद को ऐसे बदलना चाहता है कि जो लोगों खासतौर से युवाओं में उत्साह जगाए।एक समय था जब संघ के शिवरों में सेकडों की तादात में संघ प्रेमी जुड़ते रहे थे लेकिन लम्बे समय से भीड़ नहीं दिख रही है इससे भी संघ चिंतित है,असल में संघ के प्रमुख अगुयाकारों को यह लगने लगा है की संघ से बड़ी तादात में लोगो को जोड़ने के लिए कुछ ना कुछ वो सब करना पडेगा जिससे युवा संघ से जुड़े लेकिन देखने में आ रहा है संघ में काम करने वाले पहले अपने किसी स्वयंसेवक के घर पर रुकते थे और वही पर खाना खाया करते थे,इतना ही नहीं जब यह प्रचारक या अन्य लोग जब उस स्वयंसेवक के घर से बाहर यानी नए पड़ाव के लिए रवाना होते है,तो वो स्वयंसेवक उन महाशय को टिकट से लेकर अन्य बंदोवस्त भी कर देता है ऐसे में खर्चा ना होना तो आम बात हो गयी है,मुझे अच्छे से याद है हमारे एक मित्र है जो लम्बे समय तक संघ में प्रचारक रहे है,अभी हाल में है वे संघ से विदा लेकर शादी कर लिए है इनके जैसे ना जाने कितने प्रचारक है जो संघ की मूलधारा से वापस लौट कर परिवारिकमोह में जा चुके है ,वो बताते है की खुद का खर्चा के नाम पर कुछ भी जाया नहीं होता है,वे बताते रहे है उनके समय में ऐसे भी प्रचारक हुए है जीके पास १०० रूपये का नोट २ साल तक खर्च ही नहीं हुआ,असल में संघ जैसे संगठन के नियम बड़े ही सक्त है ऐसे में हर कोई संघ से जुदा नहीं रहा सकता ,अगर किसी का पिता संघ से जुदा हुआ रहा तो ये उम्मीद ना करे की उसका बेटा भी संघ से जुडेगा ही,ऐसे में तो यही समझ में आ रहा है की संघ जो कुछ बदलाव करने जा रहा है उसके पीछे संघ का घटता प्रभाव समझ में आ रहा है,करीब ५० वर्ष की उम्र में शादी करने वाले उस प्रचारक ने टीचर से शादी रचाई है,वो कहते है की संघ को उन्होने अपने जीवन के ५० साल दिए है लेकिन मिला क्या सिर्फ चंद रुपए अगर टीचर से शादी ना करते तो खाने के लाले पड जाते ,ऐसे में संघ में बदलने में तो बहुत कुछ है लेकिन कितना कुछ बदल कर एक बार फिर से संघ जोश में आ पायेगा इसमें संदेह लग रहा है.

रविवार, 2 अगस्त 2009

प्यार के पुजारी या प्यार के पापी है हम ?

दुनिया प्यार कि आज से दुश्मन नहीं है ये तो सदियों से जारी है कि प्यार करने वाले दुश्मनों कि वजह से प्यार को तरसते रहे है तो आज जब ये सब कुछ हो रहा है तो कोई नई बात नहीं लगती है,हर तरफ प्यार के दुश्मनों कि फौज ही फौज नजर आ रही है तभी तो प्यार करने वालों को अपने अपने तरीके से सजा दी जा रही है किसी को बाल काट कर सजा दी जा रही है ,तो किसी को पीट पीट कर अधमरा किया जा रहा है,इतना ही नहीं किसी को मौत के घाट उतर कर गुस्सा निकला जा रहा है लेकिन कोई ये जानना नहीं चाह रहा है कि प्यार करने वालों को क्या चाहिए ?बात करते है प्यार को लेकर मचे बबाल पर ,उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में एक जोड़े को प्यार करने की सजा दी गई। उसे दो दिन तक बंद करके यातनाएं दी गईं। दोनों एक ही गोत्र के हैं.इसलिए उनके खिलाफ पंचायत बैठी और फिर इलाके के लोगों ने दोनों के बाल काट दिए तथा पूरे मोहल्ले में जुलूस निकाला। किसी तरह लड़का इनके चंगुल से छूटा तो वो मुरादाबाद के एस पी सिटी से मिला और उन्हें पूरी घटना की जानकारी दी। पुलिस ने लड़के की निशानदेही पर छापा मारकर लड़की को बरामद कर लिया जाता है , फिलहाल सुरक्षा की दृष्टि से दोनों थाने में रखा गया है. पीतल का काम करने वाले युवक का गुनाह इतना है कि इसने सैनी होते हुए एक ही गौत्र की युवती से प्यार किया। पुलिस को देखकर बिरादरी के सरपंच बने लोग वहां से भाग निकले। युवती उस समय बेहद घबराई हुई थी। पुलिस सीधे बबीता को लेकर जिला चिकित्सालय पहुंची और पहले उसका मेडिकल परीक्षण कराया गया। दोनों को सुरक्षा की दृष्टि से फिलहाल पुलिस अभिरक्षा में रखा गया है। इनमें युवक का पिता बाबू राम, लड़की का पिता बनवारी और लड़के का दादा डालचंद शामिल है। बाबू राम ने ही बिरादरी की पंचायत बुलाई थी. उनकी बिरादरी के लोगों ने दोनों को भरोसा दिलाया कि उनकी शादी करा दी जाएगी लेकिन जैसे ही दोनों मौके पर पहुंचे तो लोग उन पर टूट पड़े और फिर लड़के को पूरी तरह से गंजा कर दिया गया। लड़की को भी नहीं बख्शा गया। उसके भी सिर को आधा गंजा कर दिया गया। ऐसा करने के बाद दोनों को एक घर के अलग-अलग कमरे में कैद कर दिया गया।ये तो सिर्फ मात्र उदहारण है,इससे कही अधिक तो प्यार के ऐसे मामले है, जिनमे प्रेमी जोडों ने सजा पाई और हम खुश होते है ये कह कर कि पाप करने वालों को सजा दी है लेकिन हम प्यार करने वालों पर अत्याचार करके क्या हम खुद पापी नहीं है.

रविवार, 19 जुलाई 2009

ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?

ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?
अपने देश कहावत है कि साठ की उम्र पार करने के बाद इन्सान सठिया जाता है, बिलकुल ऐसा ही समझ में आ रहा है, महानायक अमिताभ बच्चन के साथ हो रहा है,तभी तो वे सठियाने जैसी बात करने में लग गए है ,उनकी बातें ऐसी हो गयी है जिसे पड़ कर या सुन कर कोई उन्हे सठिया कहे बिना नहीं रह सकता है, आज के वैज्ञानिक युग में अगर कोई ऐसा दावा करता है, जो आम आदमी के गले नही उतरता तब दावे करने वाले शख्स को क्या कहा जाता है ,आप अच्छी तरह से जानते है ऐसे लोगों को सिरफिरा कहा जाता है,२० जुलाई को देश भर के समाचार पत्रों में इस खबर को सुर्खियों के वरीयता से प्रकाशित किया गया है कि महानायक अमिताभ बच्चन की "ईश्वर से बात हुयी है"अमिताभ ने अपने ब्लॉग में जो लिखा है वो वाकई हैरत में डालने वाला है,वो कहते है कि ईश्वर ने उन्हे एक ईमेल भेजा है,जिसमे ईश्वर ने उनके सवालों का जवाब दिया है,यह वाकई ईश्वर का ईमेल है फिर कथित ईश्वर का ईमेल,ईश्वर से बात करने का दावा करने वाले अमिताभ बच्चन की बात गले उतरते हुए नहीं दिख रही है,क्यूँ कि ऐसी बात कही गयी है जिसका भरोसा नहीं किया जा सकता है ,अभी तक ईश्वर से मिलने या फिर मुलाकात का दावा करने वालों को देश दुनिया में सिरफिरा ही कहा है इसलिए अमिताभ को अन्य की ही भांति सिरफिरा कहा जायेगा,इसमे कोई दो राय नही कि अमिताभ जिस ईमेल का जिक्र कर रहे है, उस ईमेल के बारे में उन्ही से जाना जाये वो ईमेल किसका है, जिसे अमिताभ ईश्वर का ईमेल होने कि बात कह रहे है.इस बात कि भी जाँच पड़ताल की जानी जरुरी है अब सवाल उठता है सिर्फ ईश्वर का कथित ईमेल अमिताभ के पास ही कैसे आया ?देश में करोडों की आबादी में अमिताभ में ऐसा क्या था कि ईश्वरी ईमेल अमिताभ के पास आया ,मै ईमेल को कथित इसलिए कह रहा हूँ कि ईश्वर क्या वाकई ईमेल पर काम कर रहे है तो वो ईमेल जरुर जाँच का विषय बन सकता है इस तरह के ईमेल कि जाँच के किये तमाम एजेंसिया काम कर रही है इन्हें जाँच कर यह पता करने कि जरुरत है कि अमिताभ जो कुछ कह रहे है वो कितना सच है या फिर वे सठिया गए है,जो देश वासियों को ईश्वर के नाम पर ग्रह करने में जुटे.

शनिवार, 18 जुलाई 2009

अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?

अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?
बीएसपी मुखिया उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और कांग्रेस के बीच जारी वाक् युद्घ बढता ही चला जा रहा है,कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांघी ने बीएसपी मुखिया मायावती को आडे हाथों लिया कि उत्तर प्रदेश के विकास के बजाय मूर्तियों का विकास करने में जुटी हुयी है मायावती,कांग्रेस प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी की मुरादाबाद में गिरफ्तारी के बाद राहुल ने यह बल कर कि मायावती को निशाने पर रखा है,अब जाहिर है कि कांग्रेस कि ओर से फेंकी गयी गेंद पर बीएसपी मुखिया को हिट करना ही था सो दो दिन बाद मायावती कि ओर से जो जबाब आया,उसी के इर्द गिर्द घूमती है कहानी ,मायावती के जबाब को यहाँ पर हु बहु उल्लेखित करना बेहद जरुरी है,मायावती ने बोलो कि बीएसपी सरकार कि उपलव्धियों कि किताब युवराज ओर कांग्रेस के विधायकों व सांसदों को भेजी जायेगी ,जिसे पड कर वह सच्चाई जान सकेगे कि स्मारकों व मूर्तियों पर पैसा बर्बाद का आरोप लगाने वाली कांग्रेस अपने राज में कितने ही स्थानों पर मूर्तियों तथा स्मरक बनबती रही है ,कांग्रेस के मुकाबले बीएसपी सरकार ने आटे में नमक के बराबर मूर्तियों लगाने का काम किया है तो विकास बाधित होने कि बात कही जाती है ,सच यह है कि उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थापित सारे स्मारक व मूर्तियों से ज्यादा कीमत तो अकेले दिल्ली में राजघाट में है ,पर इसमें कांग्रेस की दलित विरोधी मानसिकता उजागर हो जाती है,दिल्ली के राजघाट की तुलना लखनऊ के अम्बेडकर पार्क से करना कही भी न्यायोचित समझ नही आ रहा है,असल में राजघाट रास्ट्रपिता महात्मा गाँधी का समाधी स्थल है जब कि लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में मायावती ओर कांशीराम कि मूर्तियों को स्थापित कराया गया है,अब मायावती को कौन समझाए कि राजघाट ओर अम्बेडकर पार्क में क्या फर्क है ,जिसे आसानी से समझा जा सकता है,हो ना हो शायद मायावती ने अपने मन में यह वहम पाल रखा हो कि वे लखनऊ के अम्बेडकर पार्क को दिल्ली के राजघाट अपने लिए बना सकती है ,इस बात को खुद समझा जा सकता है कि राजघाट कि तुलना कर मायावती क्या बताना चाह रही है,यहाँ इस बात को भी साफ किया जा सकता कि मायावती ने अपने ये विचार जाहिर करके एक बात बता दी है की मायावती निकट भविष्य अम्बेडकर पार्क को राजघाट कब बनाएगी ?

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश

जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में दलित वोट को हथियाने को लेकर बीएसपी और कांग्रेस के बीच जारी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है,उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी का मुरादाबाद में दिया गया भाषण एक नए विवाद को जन्म दे गया है.इसी के चलते राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर दलित उत्तपीडन के तहत ना सिर्फ मुकदमा दर्ज करवाया बल्कि उन्हें जेल में भी डलवाने में कोई कसर नहीं छोडी,बात करते है दलित वोट के कब्जे कि शुरुआत की,तो इटावा के इकदिल इलाके के अमीनाबाद गाँव में १२ मार्च २००८ में चम्बल घाटी के डाकू नादिया और उसके साथियों ने दलित परिवार के पांच लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी,इस हत्या कांड के बाद कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गाधी ने इस प्रभावित गाँव का दौरा करने का मन बनाया वैसे ही एक दिन पहले १५ मार्च को मायावती आ धमकी इस गाँव में,देर शाम को आई मायावती पुलिस घेरे में रह कर पडितो के परिजनों से मिली और अँधेरा होने से पहले चली गयी लेकिन उसके बाद १६ मार्च को आये राहुल गाँधी ने कई घंटों तक पीडतों के परिजनों से बात कि और उसके बाद जाते जाते राहुल गाँधी गाँव के खेत में एक आलू खोदते बच्चे को कंधे पर उठा कर घुमा दिए,जिससे गाँव में तो राहुल के दलित प्रेम की चर्चा हुई, देश भर में जब इन तस्वीरों को न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया गया तो उन तस्वीरों की जमकर तारीफ हुयी और राहुल ने इस कांड के दौरे के बाद दलितों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए दलितों के दरबाजे दरबाजे दस्तक देना शुरु कर दी, बस इसी सब के बाद खिसहाट उजागर हो गयी, जब मायावती की और से कहा गया कि राहुल का दलित प्रेम नाटक है,और दलितों के घर जाने के बाद राहुल को नहलाया जाता है,यह विचार क्या उजागर करते है,आसानी से समझा जा सकता है,अगर कोई दलित बीएसपी के साथ है तो कांग्रेस को क्या आपत्ति लेकिन जैसा देखा जा रहा है लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी मुखिया खासे गुस्से में दिख रही है,इसी वजह से ऐसी शब्दावली आम आदमी को सुनने को मिल रही है,जिन्हें कभी राजनीत में कोड़ समझा जा रहा था,कुछ भी कहे दलित वोट को कब्जाने की कांग्रेस और बीएसपी की जुगत राजनीत की कौन से दिशा तय करेगी, यह समझ से परे है,यहाँ अब इस तरह के हालत बन गए है कि दलित वोट को कब्जाने के जुगत में उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा की ओर मुखातिब होता चला जा रहा है.बीएसपी जंहा दलित को अपना परम्परागत वोट बैंक समझता है वही कांग्रेस भी दलितों को अपनी और खीचने कि कोशिश में है,कुल मिला कर लड़ाई को रोका जाना जरुरी है .

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

सच का सामना है या फिर बबाले जान ?

सच का सामना है या फिर बबाले जान ?
क्या स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहे रियलिटी शो "सच का सामना" से घरों में विवाद छिड़ेगा?प्रोग्राम में पार्टिसिपेंट से उनकी पास्ट लाइफ के बारे बहुत निजी और कंट्रोवर्सियल सवाल पूछे जा रहे हैं जैसे एक लेडी से पूछा (१५जुलाइ ०९) अगर आपके हसबैंड को पता न चले तो क्या आप दुसरे मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना चाहेंगी?लेडी ने जवाब दिया "नहीं" जबकि पालीग्राफ मशीन के सामने लेडी का जवाब "हां" दर्ज है.एक आदमी से सवाल पूछा गया "क्या आपके दिल मैं कभी अपनी साली से जिस्मानी रिश्ते बनाने की ख्वाहिश होती है?उसने जवाब दिया "नहीं" मशीन कहती है "हां". गेम में पार्टिसिपेट करने के बाद घर वापसी में उनके रिश्तों में ज़बरदस्त तल्खी आना स्वाभाविक है और घरों में बवाल शुरू होगा. ऊपर से माडर्न दिखना एक बात है लेकिन निजी ज़िन्दगी में पराये मर्द या लेडीज़ से क्लोज़ रिलेशन बनाने की इजाज़त देना या इसे स्वीकार करना हमारे इंडियन कल्चर में नामुमकिन बात है. यह बात भले ही सच हो कि यह प्रोग्राम देश में आज प्रसारित किया जा रहा हो लेकिन विदेशों में पहले ही इस तरह के प्रोग्राम प्रसारित किये जा चके है,वहाँ पर भले ही इस तरह के प्रोगार्मों ने आम आदमी कि जिन्दगी पर कोई असर ना डाला हो लेकिन हिन्दुतान के लिए यह प्रोग्राम किसी बाबले जान से कम नहीं है.जिस तरह से कानूनी मान्यता पा चुके समलेंगगिगता को देशवाशी पचा नहीं पा रहे है ठीक उसी तरह से स्टार प्लस का यह प्रोग्राम है,जिससे कार्यक्रम में हिस्सा लेनेवाले के परिवार में सवालों को लेकर बबाल मचने की पूरी पूरी संभाबना तो है ही साथ ही हमारी आने वाली नश्लों पर भी गहरा असर पड़ने की पूरी उम्मीद है,ऐसे में इस तरह के प्रोग्राम पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए सरकार के साथ साथ सामजिक संगठ्नों को भी उठ खडा होना चाहिए,जिस तरह के सवालात सच का सामना में पूंछे जा रहे है वे जरुर ही भारतीय समाज में एक नया बबाल खडा करेगें

बुधवार, 8 जुलाई 2009

सरेआम लाशे बहाने के लिए जिम्मेदार कौन

सरेआम लाशे बहाने के लिए जिम्मेदार कौन
कभी यमुना नदी के जल को राज तिलक करने के काम में लिया जाता था, लेकिन आज हालत यह बन गए है कि यमुना नदी के जल में कोई भी नहाना भी पसंद नहीं करता है,वजह साफ़ है की यमुना नदी दिल्ली से लेकर इटावा तक एक तरह से गंदे नाले में तब्दील हो गयी है,कहने को तमाम योजनाये सफाई की चलाई जाती है लेकिन यमुना में अनजान शवों को फेकना रुक नहीं पा रहा है ,ट्रेन से कट कर मरे हो ,या किसी हादसे में मरे अनजान के शवों को बिना जलाये ही यमुना बहाया जाता है,जिस वजह से यमुना का रूप बदल रहा है,कहे कुछ भी यमुना को मैली करने के लिए है हम सब जिम्मेदार,इटावा में यमुना में अनजान शवों को यमुना नदी में फेका जा रहा है जिसे कैमरे के कैद कर पोल खोल दी गयी है , पुलिस की कलई को, जो वो कहती है की हम अनजान शवों का करते है अंतिमसंस्कार ,यमुना नदी के प्रदूषण को दूर करने के लिए जापान सरकार की मदद से दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में यमुना एक्शन प्लान नाम की योजना चलायी जा रही है.उससे भी यमुना का प्रदूषण दूर नहीं हो पा रहा है,यमुना नदी जिसे हम धार्मिक तौर पर महत्त्वपूर्ण समझते है लेकिन हम सब यमुना नदी के इस तरह के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है जिन आधिकारियों के कन्धों पर प्रदूषण दूर करने की जिम्मेदारी है वो नदी का प्रदूषण दूर करने के बजाये खुद का प्रदूषण दूर करने में लग जाते है,करोडों रूपये खर्चे के बाबजूद यमुना नदी को प्रदूषण को दूर करने के लिए अब गंगा की तरह देश भर में एक नयी अलख शुरु करने की जरुरत समझ में आ रही है,तभी यमुना में लाशों का डालना बंद हो पायेगा

मंगलवार, 30 जून 2009

सैफई में हवाई प्रशिक्षण का रोमांच


सैफई में हवाई प्रशिक्षण का रोमांच


सैफई में हवाई प्रशिक्षण का रोमांच

सैफई में हवाई प्रशिक्षण का रोमांच
सैफई। समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के गृहक्षेत्र सैफई में निर्मित हवाई पटटी जो पिछले एक दशक से सिर्फ राजनेताओं और फिल्मी कलाकारों को ही विमानों से लाने व ले जाने का काम आ रही थी वहीं अब इस हवाई पटटी पर जिसप्रकार से एक निजी कंपनी युवाओं को पायलट बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस हवाई पटटी को अब उददेश्य मिल गया जिससे आने वाले समय में युवाओं को उम्मीद की किरण नजर आने लगी है।करोड़ो रुपये की लागत से बनी सैफई हवाई पटटी का लाभ अभी तक आमजनों को नहीं मिल पा रहा था क्योंकि निर्माण के बाद से आज तक इस हवाई पटटी पर सिर्फ राजनेताओं और सैफई महोत्सव में शिरकत करने आने वाले फिल्मी कलाकारों को लाने व ले जाने वाले विमान ही इस हवाई पटटी पर उतरते थे परिणामस्वरूप इस महत्वाकांक्षी परियोजना के प्रति आमजनों का कोई रूझान नहीं था।इस हवाई पटटी के आधुनिकीकरण के लिए राज्य सरकार के नागरिक उडडयन विभाग ने इसका विस्तारीकरण करते हुए इस हवाई पटटी पर एअर बोइंग 337 जैसे विमानों के उतरने की व्यवस्था की गई थी परंतु आज तक इस हवाई पटटी का यात्रीविमानों के उतरने में प्रयोग नहीं हुआ है। अब इस हवाई पटटी को एक निजी संस्थान ने राज्य सरकार से लीज पर अपने प्रशिक्षुओं को पायलट बनाने का प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया है। पायलटों के इस प्रशिक्षण के प्रति क्षेत्रीय लोगों में भी उत्साह है और उनका मानना है कि यदि इसी प्रकार के यहां कार्यक्रम आयोजित होते हैं तो जनपद के भी युवाओं को भी पायलट बनने के अवसर मिल सकेंगें। फिलहाज यह निजी संस्था दो छोटे सेशन 152 एवं एक प्रशिक्षण विमान सेशन 172 से तकरीबन बीस युवाओं को प्रशिक्षण दे रही है।

चम्बल से शहर की तरफ हिरन


चम्बल से शहर की तरफ हिरन

चम्बल से शहर की तरफ़ हिरन
इटावा, चंबल अभ्यारण्य क्षेत्र में रहने वाला हिरन लगातार कट रहे जंगलों के कारण अब शहरी क्षेत्रों का रूख करने लगे हैं। हिरन पहला जीव नहीं है जो जंगलों से निकल कर शहरी क्षेत्र में आए हों। इससे पूर्व चंबल के घने जंगलों में रहने वाले अजगर, सियार, पेंगोलिन, तेंदुआ सहित तमाम जीव शहरी क्षेत्र में पाए गए हैं। हिरन चूंकि वन्य जीव संरक्षित जीव है इसलिए इसके शहरी क्षेत्र में पाए जाने से वन विभाग भी हतप्रभ हैं।जंगलों में लगातार हो रहे कटान के कारण जंगलों में स्वतंत्र विचरण करने वाले जानवरों को अब जंगलों में रहने में खासी असुविधा होने लगी है। जिस प्रकार से पिछले एक वर्ष में दर्जनों विभिन्न प्रजाति के संरक्षित जीव शहरी क्षेत्र में आए, उससे यह साफ हो जाता है कि कहीं न कहीं यह जीव जंगलों में खुद को असुरक्षित मान रहे हैं और वह भटकते हुए शहरी क्षेत्र में शरण पाते हैं।हिरन के शहर में शरण पाए जाने के बाद वन विभाग के आला अधिकारी भी सकते में आ गए। इस संबंध में वन विभाग के वन क्षेत्राधिकारी विवेकानंद दुबे का कहना है कि चंबल क्षेत्र में अभी तक हिरनों के बारे में कोई ठोस अध्ययन नहीं किया गया है। इसलिए इनकी संख्या में बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। यदा-कदा जब कोई जीव अपने समुदाय से भटक जाता है तो वह शहरी क्षेत्र में आ जाता है परंतु हिरन के मामले में यह पहला मौका है जब चंबल अभ्यारण्य क्षेत्र में वास करने वाले हिरन को शहरी क्षेत्र में देखा गया हो।

शनिवार, 27 जून 2009

चंबल में घडियालों का जन्म

इटावा। वन्य जीव प्रेमियों के लिए चंबल सेंचुरी क्षेत्र से एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। किसी अज्ञात बीमारी के चलते बड़ी संख्या में हुई डायनाशोर प्रजाति के विलुप्तप्राय घडि़यालों के कुनबे में सैकड़ों की संख्या में इजाफा हो गया। अपने प्रजनन काल में घडि़यालों के बच्चे जिस बड़ी संख्या में चंबल सेंचुरी क्षेत्र में नजर आ रहे हैं वहीं चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों की अनदेखी से घडि़यालों के इन नवजात बच्चों को बचा पानी काफी कठिन प्रतीत हो रहा है।दिसंबर]-2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों की संख्या में डायनाशोर प्रजाति के इन घडि़यालों की मौत ने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडि़याल किसी किताब का हिस्सा न बनकर रह जाएं। घडि़यालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस,अमेरिका सहित तमाम देश के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडि़यालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले।घडि़यालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर क्लोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण की बजह से घडि़यालों की मौत को कारण माना। वहीं दबी जुबां से घडि़यालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडि़यालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घडि़यालों की मौत की बजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घडि़यालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।घडि़यालों के अस्तित्व पर संकट के प्रति चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारी लगातार अनदेखी करते रहे हैं। घडि़यालों की मौत की खबर भी इन अधिकारियों को हरकत में नहीं ला सकी और अब जबकि घडि़यालों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इटावा जनपद से गुजरने वाली चंबल में बड़ी संख्या में घडि़यालों के बच्चों ने जन्म लिया है तो अभी तक इनकी सुरक्षा के लिए सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों ने कोई उपाय नहीं किए हैं।उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को जोड़ने वाली चंबल नदी में घडि़यालों के बच्चों को नदी के किनारे बालू पर रेंगते हुए और नदी में अठखेलियां करते हुए आसानी से देखा जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में घडि़यालों के प्रजनन के बारे में जानकर अंतर्राष्ट्रीय वन्य जीव प्रेमियों में उत्साह है तो वहीं इनकी सुरक्षा को लेकर चिंता भी जताई जा रही है। वन्य जीव प्रेमियों को आशंका है कि आने वाले दिनों में मानसून में चंबल के बढ़ते वेग में कहीं यह बच्चे बह कर मर न जाएं परंतु इसके बावजूद भी चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों को इससे कोई सरोकार नहीं रह गया है।नेचर कंजर्वेसन सोसायटी फाWर नेचर के सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चौहान बताते हैं कि पंद्रह जून तक घडि़यालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ&दस दिन पूर्व तक रहता है। घडि़यालों के प्रजनन का यह दौर ही घडि़यालों के बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप घडि़यालों के बच्चे नदी के वेग में बहकर मर जाते हैं। इन बच्चों को बचाने के बारे में वह उपाय बताते हैं कि यदि इन बच्चों को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में संरक्षित कर तीन साल तक बचा लिया जाए तो इन बच्चों को फिर खतरे से टाला जा सकता है। वे कहते हैं कि महज दस फीसदी ही बच्चे बच पाते हैं जबकि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।वहीं डा.चौहान यह जानकर चौंकते हैं कि घडि़यालों के बच्चों की संख्या हजारों में है। वह संभावना जताते हैं कि विगत दिनों इस प्रजाति को बचाने के लिए 840 बच्चों को नदी के ऊपरी हिस्से में छोड़ा गया था] कहीं ऐसा न हो कि यह वही बच्चे नीचे उतर आए हों परंतु नदी के तट पर जिस प्रकार से टूटे हुए अंडे नजर आते हैं उससे साफ है कि इन बच्चों ने अभी हाल ही में जन्म लिया है।देश मे दो घाटियां है,एक कश्मीर घाटी एवं एक चंबल घाटी। कश्मीर घाटी जहाW आतंकवादियों के आंतक से ग्रस्त है। वहीं चंबल घाटी को खूंखार डकैतों की शरण स्थली के रूप मे दुनिया भर मे ख्याति हासिल है। इसी चंबल घाटी मे खूबसूरत नदी बहती है चंबल। जिसमें मगर, घडि़याल, कछुये, डाल्फिन समेत तमाम प्रजातियों के वन्यजीव स्वच्छंद विचरण करते है। इतना ही नहीं चंबल की खूबसूरती में चार-चांद लगाने के लिये हजारों की संख्या मे प्रवासी पक्षी भी आते है] लेकिन पिछले दिनो से दुर्भल घडि़यालों की मौत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब डाल्फिन एवं मगर तक आ पहुंचा है। खूंखार डकैतों के खात्मे के बाद चंबल घाटी के वन्यजीवों पर जो संकट आया है। ऐसा लगता है कि खूंखार डकैतों के खात्मे के बाद सक्रिय अधिकारियों ने चंबल की खूबसूरती को दाग लगा दिया है।राजस्थान से प्रवाहित चंबल मध्य प्रदेश होते हुये उत्तर प्रदेश के इटावा के पंचनंदा तक इतनी खूबसूरत है जहां एक साथ मगर, डाल्फिन और घडि़याल रहते है और यहां हजारों की तादात मे घडि़याल मर रहे है तो कहीं ऐसा न हो कि चंबल की आने वाले दिनों मे खूबसूरती समाप्त हो जायें।चंबल की खूबसूरती इसलिये भी बढ़ जाती है क्योकि यहां की रीजनल डायवर्सिटी अपने आप में खूबसूरत है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुन्दरता के कारण हजारो विदेषी पक्षी आते है। जिनकी 200 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती है। जिस समय इस नदी को सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया था। पिछले साल जनवरी मे एक तेंदुआं भी करंट की चपेट में आकर मौत के मुंह में समा गया। इटावा मे पिछले साल दिसम्बर के पहले सप्ताह मे चंबल नदी मे घडि़यालों के मरने की खबरो ने सनसनी फैला दी। लेकिन वन अधिकारियों ने इससे साफ इंकार किया कि किसी घडि़याल की मौत नहीं हुई] लेकिन वन पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कन्जरवेशन आफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान ने इन मृत घडि़यालों को खोज ही नही निकाला बfल्क वन अधिकारियों की उस करतूत को भी उजागर कर दिया जो उन्होने बेजुबान घडि़याल की मौत के बाद किया था। पिछली गणना के मुताबिक चंबल मे 856 घडि़याल रिकार्ड किये गये थे लेकिन अब घडि़यालों की मौत के बाद इनकी संख्या को लेकर तरह&तरह की बाते उठने लगी है। उत्तर प्रदेश के वन्य मंत्री फतेहबहादुर सिंह ने घडि़यालों की मौत के बाद अधिकारियों को सतर्क किया और खुद भी चंबल का दौरा कर यह माना कि चंबल मे प्रदूषित पानी यमुना नदी के जरिए पहुंच रहा है। भरेह जिस स्थान से चंबल मे प्रदूषित पानी के पहुंचने की बात फतेहबहादुर सिंह की तरफ से कही जा रही है, यह समझ नहीं आ रहा है कि उनका यह कथन कितना सटीक और सही है। अगर दुर्लभ घडि़यालों, डाल्फिन एवं मगरों की मौत की बात करें तो कही न कही चंबल मे अधिकारियों का साम्राज्य हावी है और उन्हीं की यह करतूत है जो चंबल मे वन्यजीवो पर संकट आ खड़ा हुआ है। कुल मिलाकर कह सकते है कि चंबल के वन्य जीवों पर इन दिनों प्राकृतिक संकट आ खड़ा हुआ है जो कब दूर होगा कुछ कहा नहीं जा सकता।

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इटावा में बदहाल नर्सों की जिंदगी

इटावा। स्वास्थ्य सुविधाओं की रीढ़ समझी जाने वाली नर्स भला दूसरे मरीजों का उपचार क्या कर सकेंगीं जब प्रशिक्षण के दौरान ही उन्हें खुद के स्वास्थ्य पर संकट के बादल नजर आएं। असुरक्षित माहौल में रह कर सड़ा-गला भोजन खाने के बाद भी यदि उनका लगातार शोषण होता रहे तो भला प्रशिक्षणोपरांत इन नर्सों से क्या अपेक्षा की जाएगी। जनपद के एकमात्र एएनएम ट्रेनिंग सेंटर की बदहाली व असुरक्षित माहौल तथा सड़े-गले भोजन करने वाली यह प्रशिक्षु नर्सें लगातार अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंतित रहतीं हैं परंतु स्वास्थ्य सुविधाओं की रखवाले माने जाने वाले मुख्य चिकित्सा अधिकारी को शायद इनकी असुविधाओं से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है।पोस्टमार्टम गृह से सटे इस एएनएम प्रशिक्षण केंद्र की क्षमता जहां महज तीस प्रशिक्षार्थियों के प्रशिक्षण की है वहीं वर्तमान में यहां साठ प्रशिक्षु नर्सें रह रहीं हैं। इन प्रशिक्षु नर्सों की हिफाजत के प्रति स्वास्थ्य विभाग किस कदर गंभीर है इसकी बानगी इसी से समझी जा सकती है कि इन प्रशिक्षुओं की सुरक्षा के लिए यहां गार्ड तक मौजूद नहीं है। इतना ही नहीं यहां बिजली चले जाने पर कोई व्यवस्था नहीं है और शाम आठ बजे के बाद इन प्रशिक्षु नर्सों को वहीं बंधकों की भांति कैद कर दिया जाता है। यदि इसी मध्य किसी प्रशिक्षु को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या आती है तो उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।क्षमता से अधिक रहने वाली इन प्रशिक्षु नर्सों की समस्या तब और बढ़ जाती है जब विद्युत कटौती के शेड्यूल में विद्युतपूर्ति बाधित हो जाती है। भीषण गर्मी में एक-एक कमरे में पंद्रह प्रशिक्षु भला कैसे रह पातीं होगीं, सहज ही समझा जा सकता है। इसके अलावा इन प्रशिक्षु नर्सों को मिलने वाली खाद्य सामग्री में सामने दिख रहे कीड़ों के बावजूद भी उस दूषित भोजन को खाना मजबूरी है क्योंकि इनके पास इससे बचने का कोई विकल्प नहीं है। प्रशिक्षु नर्स बतातीं हैं कि चावल, आटा व सब्जियां सभी कुछ सड़ी हुई दी जातीं हैं। ऐसे में जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति खुद ही सचेत नहीं रह पाते हैं तो भला दूसरों को क्या स्वास्थ्य के प्रति सचेत कर सकेंगें।इन प्रशिक्षुओं को चिकित्सालय तक पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने किसी वाहन तक की व्यवस्था नहीं की गई है। परिणाम स्वरूप इस भीषण गर्मी के माहौल में इन्हें पैदल ही जिला चिकित्सालय तक जाना पड़ता है। इस संबंध में जब भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी से शिकायत करने की कोशिश की गई तो धमका कर चुप करा दिया जाता है। इतना ही नहीं इस प्रशिक्षण केंद्र में किसी वार्डन तक की व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं इस प्रशिक्षण केंद्र की बदहाली की दास्तां इसी से समझी जा सकती है कि बचा-खुचा खाद्य पदार्थ प्रशिक्षण केंद्र के पीछे ही फेंक दिया जाता है जिससे माहमारी फैलने की आशंका इन प्रशिक्षु नर्सों को लगातार सालती रहती है।प्रशिक्षु नर्सों के प्रति स्वास्थ्य विभाग का रवैया कितना संवेदनशील है यह इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि बाथरूम चाWक हो जाने के बाद इन प्रशिक्षु नर्सों को खुले में स्नानादि करने को मजबूर होना पड़ता है। बहरहाल इन प्रशिक्षु नर्सों मे स्वास्थ्य विभाग के रवैये के प्रति गहरा आक्रोश व्याप्त हैं परंतु उनकी समस्याओं के निवारण के प्रति स्वास्थ्य विभाग कतई गंभीर नहीं हैं।

इटावा की बैंकों में नकली नोट

इटावा। स्टेट बैंक भरथना से रिजर्व बैंक को नकली नोट भेजे जाने पर स्टेट बैंक के मैनेजर के खिलाफ घोखाधड़ी का मुकदमा भरथना थाने मे दर्ज किया गया। पुलिस के एक प्रवक्ता के मुताबिक रिजर्व बैंक के मैनेजर ने इटावा के भरथना थाने जो मामला दर्ज कराया है। उसके मुताबिक 28.11.08 को स्टेट बैंक भरथना के मैनेजर ने रिजर्व बैंक को 500 के 6 नकली नोट यानि 3000 रूपए भेज दिये जिनको पड़ताल के नकली पाये जाने पर पुलिस कार्यवाही के लिये मामला दर्ज कराया है, इस मामले के दर्ज होने से बैंक कर्मियों में हडकम्प मच गया है। पाकिस्तान से आईएसआई के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था पर हमला बोलने के उद्देश्य से भेजे जा रहे जाली नोट के कारोबारियों में इटावा की बैंकों के कर्मचारियों की संलिप्तता भी है। इटावा की भारतीय स्टेट बैंक एवं सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा रिजर्व बैंक को भेजे गए जाली नोटों ने रिजर्व बैंक प्रशासन की नींद उड़ा दी। अब रिजर्व बैंक के निर्देश पर दोनों बैंकों के कर्मचारियों के विरुद्व भरथना और इटावा कोतवाली में मुकदमा दर्ज करा दिया गया है।इटावा की बैंकों से मिले जाली नोटों की यह घटना नई नहीं है परंतु न जाने क्यों कि उन बैंक कर्मचारियों का अभी तक बैंक प्रशासन अथवा पुलिस प्रशासन खुलासा नहीं कर पा रहा है जो बैंक की शाख को तो बट्टा लगा ही रहे हैं साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। अभी तक पांच सौ एवं एक हजार के जाली नोटों के प्रचलन की ही बातें होती थी परंतु भारतीय स्टेट बैंक द्वारा रिजर्व बैंक को भेजे गए सौ-सौ के नोटों के बंडलों में 24 जाली नोट देख रिजर्व बैंक में हड़कंप मच गया। वहीं सेंट्रल बैंक द्वारा भेजे गए पचास-पचास के नोटों के बंडलों में भी चार नोट जाली पाए गए हैं। इस मामले में बैंकों के शाखा प्रबंधकों ने अपने ही कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा कायम करा दिया है।भारतीय स्टेट बैंक में पहले भी कई बार जाली नोट पाए गए। रिजर्व बैंक ने पहले भी उन कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा कायम कराया परंतु कानून के हाथ जाली नोटों के कारोबारियों तक नहीं पहुंच सके। पूर्व में स्टेट बैंक की मुख्य शाखा के अलावा भर्थना एवं जसवंतनगर की शाखा में भी जाली नोटों के मामले सामने आए और पुलिस तक मामला पहुंचा भी मगर आज तक न तो जाली नोटों के कारोबारियों को खोजा जा सका और न ही उन बैंक कर्मचारियों को चिन्हित किया जा सके जो देश की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।जाली नोटों के प्रति रिजर्व बैंक के गंभीर होने के बाद भी बैंक प्रशासन इसके प्रति गंभीर नहीं है। बैंक प्रशासन ने इसे आम औपचारिकता कहकर इस मामले को मामूली बनाने का प्रयास किया है। बैंक प्रबंधक का कहना है कि इतने नोटों में कुछ जाली नोट आ जाएं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि जाली नोटों की बैंकों से हो रही बरामदगी के बाद आम उपभोक्ता भला बैंक द्वारा जारी किए नोटों पर कैसे भरोसा कर सकेगा। जबकि इससे पूर्व भी तमाम बैंक उपभोक्ताओं ने काउंटर पर जाली नोट का दावा किया परंतु या तो बैंक कर्मियों ने उस नोट को बदल दिया अथवा उस नोट को काउंटर से न दिए जाने का दावा कर अपना पल्ला झाड़ दिया।

शुक्रवार, 26 जून 2009

शादी करने वाले सावधान

इटावा। जो लोग शादी करने जा रहे है या फिर शादी की तैयारी में जुटे हैं, वह लोग अब हो जाये सतर्क। अब शादी में मध्यस्थ की भूमिका अदा करने वाले ऐसे लोग सक्रिय हो गये हैं, जो शादी करने वालो और उनके परिवार के लोगों को बडी मुसीबत में इस आधार से फंसा सकते हैं कि किसी गैर बिरादरी में आपका रिश्ता करा दें।इटावा जिले के भरथना इलाके के भोली गांव में एक ऐसी शादी का रिश्ता गैर बिरादरी में बनने से पहले ही टूटा गया। इस टूट चुकी शादी के बाद जो कुछ वाक्या सामने आया। उससे स्पष्ट हो चुका हैं कि शादी में एक ऐसे करीबी ने बीचमानी की, जो भूमिका अदा की वह बेहद शातिराना थी जिससे साफ हैं कि अगर यह शादी हो जाती तो जीती जी मक्खी निगलने जैसी स्थिति बन जाता,वह तो भला हो किसी सज्जन का जिसने शादी होने से पहले वर पक्ष को सारी स्थिति से अवगत करा दिया। इस लिहाज से गैर जातीय एक विवाह होने से बच गया, लेकिन इस सबके बाद मौके पर पुलिस जा पहुंची जिसने दूल्हे के भाई और शादी में मध्यस्थ की भूमिका अदा कराने वाले को हिरासत में ले लिया, काफी पूछताछ के बाद में जो कुछ तथ्य सामने आया उससे स्पष्ट हो गया हैं। शादी में बीचमानी की भूमिका अदा करने वाले शख्स ने तीस हजार रूपए की रकम इस आधार पर वर पक्ष से ले लिया कि वधू पक्ष वाले आर्थिक तौर पर कमजोर हैं।ऐसे में उनकी मदद के बिना पर बारात कि खातिरी कायदे से नहीं हो पायेगी, इसी आधार पर वर पक्ष की ओर से तीस हजार रूपए की रकम अदा कर दी गयी लेकिन जब बारात गांव में पहुंची तो हकीकत सामने आने पर शादी होने से पहले ही टूटी गयी। शादी जीवन का एक ऐसा बंघन है, जिसके लिये किसी भी तरह की हीला हवाली नहीं करनी चाहिये, कोई शख्स अगर भरोसे में रह कर कोई शादी जैसे बंधन में बंधने की काम करता है, तो लाजिमी है आने वाले दिनों मे बडी मुसीबत में सामजिक तौर पर फंस सकते है इस लिये शादी जैसा बंधन में किसी भी तरह की हीलाहवाली ना करें और बीचमानी के बजाय खुद देख परख कर विवाह बंधन में बंधे।