सारस पक्षी पर आया संकट एक तरह से गिद्ध पर आये संकट से किसी मायने मे कम नही लग रहा है. इस बात को वन अधिकारियों के अलावा पर्यावरणीय संस्था से जुड़े हुए लोग भी मानने लगे है.सारस पक्षी की गणना को लेकर कई लोग सवाल उठाने लगे है कि जब सारस के संरक्षण की हकीकत मे जरूरत थी उस वक्त वन अमले ने कोई काम नही किया अब लकीर पीट कर दिखवा करने की कोशिश की जा रही है.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 20 जून से पूरे राज्य मे सारस पक्षी की गणना कर रही है. गणना में सारस पक्षी के लिये किस तरह के नतीजे निकालेगे यह तो गणना के बाद ही पता चलेगा लेकिन अभी सारस की गणना से ही पक्षी प्रेमी उत्साहित है. इस गणना मे राज्य के वन विभाग के अलावा पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्थाओ से भी मदद ली जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार ने सारस को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया है.
1999 में हुई गणना के मुताबिक वर्तमान में सारसों की संख्या महज दुनिया में सारसों की संख्या महज आठ हजार रह गई है. सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया जाना भी सारस को बचाने की एक पहल माना जाता रहा है. उत्तर प्रदेश का इटावा जिला सारस पक्षी के सबसे बड़े आशियाने के तौर पर देश दुनिया के मानचित्र पर काबिज है.इटावा मे करीब 3000 की तादात सारस की हमेशा देखी जा रही है लेकिन इस बार सारस पक्षी गिद्धों की माफिक गायब होता हुआ दिख रहा है तभी तो सारस की गणना करके उसे बचाने की दिशा तय की जा रही है. इंसानी करतूत के चलते माना जा रहा है कि सारस के वास स्थल को खासा नुकसान पहुंच रहा है,तालाब पोखर आदि सबके सब सूखते चले जा रहे है जिसको लेकर सारस पक्षी की संख्या घटती हुई दिख रही है. सारस पक्षी के लिये दुनिया का एक मात्र स्थल होने के बावजूद इटावा को पूरी तरह से सरकारी तौर पर उपेक्षित रखा गया है,जब कि सर्वोच्च न्यायालय के सारस संरक्शण के आदेषों को बलाये ताक रख कर आजतक ना तो केन्द्र सरकार और ना ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई ठोस कार्य योजना अमल में नहीं लाई गई है.जब कि सारस पक्षी को उत्तर प्रदेशश सरकार ने राज्य पक्षी का दर्जा देकर महज खाना पूरी कर रखी है.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में इटावा के सभी तालाबों,झाबरों को ऊसर सुघार योजना के तहत समाप्त किया जा रहा था तब इलाहबाद उच्च न्यायालय में बाइल्ड ट्रस्ट आफॅ इडिण्या ने एक याचिका दायर कर इस परियोजना से तालाबों को होने वाले नुकसानों को रोकने की पहल की. सैफई में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिये सारसों पर गोली तक से मारने के दृष्यों को कैमरों में कैद कर लिये जाने के बाद देश दुनिया के सारस विषेशज्ञों ने मुलायम सिंह यादव को आडे हाथों ले लिया था. बाद में मुलायम सिंह यादव ने विकास की बात कह कर खफा सारस विषेशज्ञों को मना लिया था.2005 साल में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में इटावा में सैफई हवाई पट्टी के विस्तारी करण के लिये सैफई के पास एक विषाल झाबर को समाप्त करने को लेकर सोसायटी फॉर कन्जरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान की शिकायत पर राज्य सरकार ने 10 करोड़ की राशि सारस संरक्षण के लिये जारी कर सारस संरक्षण समिति गठित तो जरूर कर दी गई लेकिन इस समिति ने सारस के संरक्षण के लिये क्या काम किया इसका कोई रिकार्ड नहीं है? इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में अपना हलफनामा दाखिल कर वादा किया कि तालाबों के संरक्षण किया जायेगा लेकिन आज तक किसी भी तालाब का संरक्षण नहीं किया गया,बताया गया है कि सारसों के संरक्षण के नाम पर प्रतिवर्ष लखनऊ में एक बैठक कर ली जाती है,वो भी सिर्फ कागजों में अमर प्रेम का प्रतीक सारस पक्षी ने दुनिया भर में इटावा जिले की पहचान करा रखी हैं. इटावा जिले के खेतों में घूमते देखे जाते सारस आम बात हैं. वर्ष 1999 में संपादित सारस गणना के मुताबिक पूरी दुनिया में सारस पक्षी के करीब 8 हजार सदस्यों के जीवित होने का अनुमान लगाया गया. इनमें 200 नेपाल, 4 पाकिस्तान तथा बंग्लादेश में देखे गये 2 सारस पक्षियों के अतिरिक्त शेष सभी भारत में ही रहते हैं. करीब 5 हजार अकेले उत्तर प्रदेश में स्वच्छंद रूप से ताल तलैयों के किनारे तथा घान के खेतों वास करते हुए देखे जाते रहे हैं लेकिन सूखे की वजह से ये अब ना तो पहले की तरह खेतो में देखे जा रहे हैं और तो और इनके अण्डे भी पहले की तरह नजर नहीं आ रहे हैं. दुनिया में सबसे उंचा सारस उडने वाला पक्षी किसानों का मित्र हैं. करीब 12 किलो वजन वाले सारस की लम्बाई 1.6 मीटर तथा जीवनकाल 35 से 80 वर्ष तक होता है. सारस वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनूसूची में दर्ज हैं. सारसों की 1999 से गणना काम इटावा और आसपास के इलाकों सोसायटी फॉर कंजरवेषन ऑफ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था की ओर किया जा रहा हैं. यह पहला मौका हैं जब सूखे की वजह से सारस पक्षी का प्रजनन प्रभावित होता नजर आ रहा है, कुल मिला कर कह सकते हैं कि सूखे ने जहां आम आदमी का जीना मुष्किल कर दिया हैं वहीं पक्षियों के लिये भी खतरा पैदा कर दिया हैं.
देश में सारस की 6 प्रजातियां है.इनमें से 3 प्रजातियां इंडियन सारस क्रेन,डिमोसिल क्रेन व कामन क्रेन है, दुनिया भर में सारस पक्षियों की अनुमानित संख्या 8 हजार है,इनमें अकेले इटावा में 2500 और मैनपुरी में करीब 1000 सारस है अनूकूल भौगोलिक परिस्थितियां सारसों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है,दोनों जिलो में अनकूल पानी के जल क्षेत्र,धान के खेत, दलदल, तालाब, झील व अन्य जल स्त्रोत पाये जाते है.दल-दली क्षेत्रों में पाई जाने वाली घास के टयूबर्स, कृषि खाद्यान्न, छोटी मछलियां, कीड़े-मकोड़े, छोटे सांप, घोघें, सीपी आदि भोजन के तौर पर सारसों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. उल्लेखनीय है कि अग्रेंज कलक्टर ए.ओ.हृयूम के समय में इस क्षेत्र में साइबेरियन क्रेन भी आता था,जिसको देखने के लिये अब भरतपुर पक्षी विहार जाना पडता था क्योंकि 2002 साल में आखिरी बार साईबेरियन क्रेन का एक जोडा देखा गया था.
सोसायटी फार कन्जरवेशन आफॅ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था के सचिव डा.राजीव चौहान ने सूखे की मार झेल रहे इटावा के कई इलाको सारसों की खोज के लिये का भ्रमण किया,लेकिन सारस है देखने को भी नहीं मिल रहा है,इलाकाई ग्रामीण भी इस बार सूखे के चलते चिंतत नजर आ रहे है उनका साफ कहना है इन दिनो सारसों के जोडे यदा कदा ही नजर आ रहे है जो पहले खासी तादात में दिखलाई दिया करते थे. इसके पीछे किसानों का कहना है कि इस बार सूखे की वजह से जहां किसानों की फसले चौपट हुई है, वहीं किसानो का मित्र कहे जाने वाला सारस पक्षी भी पानी कमी के चलते संकट में नजर आ रहा है.कभी सारसों की संख्या सैकडों में देखी जाती रही है आज ना के बराबर रह गई है. जब सारस खेतो में दिखलाई ही नहीं देगें तो लाजिमी है कि उन पर संकट आने का ही संकेत ही माना जायेगा. कहा कुछ भी जाये सूखे की मार ने किसानो को जहां मुसीबत में डाला है वही पर किसानो का मित्र समझा जाने वाले सारस को भी बख्सा नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि सारस के प्रजनन में सूखे की वजह से कुप्रभाव बडे पैमाने पर पड़ा है.
अब जब इन सारसों क बच्चें अण्डों से बाहर निकल आये है तो देखा जा रहा है कि इनका प्रजनन बडे पैमाने पर प्रभावित होने का अनुमान लगाया जाने लगा है क्यो कि पुराने दिनों की तरह इस बार सारसों के बच्चें खेत खलिहानों में नहीं दिख रहे है,इस बात की तस्दीक सारसों के इर्द गिर्द रहने वाले गांव वाले भी करते है,वही दूसरी ओर इस बार सारसों के प्रजनन को प्रभावित होने का अनुमान इटावा के प्रभागीय वन निदेषक सुर्दषन सिंह भी लगा रहे है उनका कहना है कि पानी की कमी ने सारसों के प्रजनन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है,तभी तो राज्य के वन विभाग ने सारस की गणना का काम षुरू किया है. सुदर्शन सिंह भी मानते है कि जिस तरह से गिद्ध पक्षी पर खतरा मडराया उसी तरह से सारस भी खतरे जद मे आ गया है.
मानसून समय से आने पर सारस पक्षी के प्रजनन पर बुरा असर पडा है. 20 फीसदी तक प्रजनन में गिरावट दर्ज की जा रही है. इससे पहले के सत्र में जुलाई से सिंतबर तक ही प्रजनन को देखा जाता था लेकिन पिछली बार अक्टूबर में देखा गया है. इस बार पानी की चलते धान की बुबाई कम क्षेत्रों में पहले के मुकाबले हुई है,जिससे इनके बच्चें को छुपाने के लिये बच्चों की सुरक्षित स्थान नहीं मिल पा रहा है. कुल मिला कर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि संकटग्रस्त सारस पर एक बार फिर एक नया संकट पानी की किल्लत के रूप में सामने आया है. अब सवाल यह उठता है कि सूखे की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई किस आधार पर हो पायेगी ?
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
एटीएम यूजर्स सावधान !
यदि आप एटीएम कार्ड के यूजर्स हैं तो एटीएम मशीन में घुसने से पहले सतर्क हो जाएं। अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि किसी की नजर आपके पासवर्ड पर हो और वह आपके पासवर्ड को चोरी कर रहा हो। एटीएम मशीन के गार्डों पर भी कतई ऐतबार न करें। इतना ही नहीं एटीएम कार्ड और अपना पासवर्ड किसी को न बताएं, चाहे वह आपका कितना ही करीबी क्यों न हो। आपके कार्ड का दुरुपयोग हो सकता है। जब कुछ ऐसा ही सेना में कार्यरत अजय कुमार सिंह के साथ हुआ तो चौंकना स्वाभाविक था। एटीएम के बारे में गहना से पारंगत होने के अभाव में उसने एटीएम मशीन के गार्ड की मदद ली मगर गार्ड ने अपने एक सहयोगी के माध्यम से किसी प्रकार उसका एटीएम कार्ड बदल लिया और तीन दिन में ही 51 हजार रुपये एटीएम के माध्यम से निकाल लिए। अब पुलिस बेशक मामले की जांच कर रही हो, परंतु बैंक प्रबंध तंत्र ने साफ तौर पर नसीहत दे डाली कि एटीएम यूजर्स को सतर्कता बरतनी चाहिए।इकदिल थाना क्षेत्र का रहने वाला अजय कुमार सिंह पंजाब नेशनल बैंक का एटीएम कार्ड धारक है। वह विगत 23 जून का जब शास्त्री चौराहा स्थित भारतीय स्टेट बैंक की एटीएम मशीन से रुपये निकालने गया तो कुछ असुविधा होने पर उसने एटीएम पर तैनात गार्ड सुनील कुमार से मदद मांगने की भूल कर दी। फिर क्या था सुनील ने अपने सहयोगी रामगोपाल के पुत्र राजेश कुमार से मदद कराने का भरोसा दिलाया और विश्ववास में लेकर अजय कुमार से उसका पासवर्ड हासिल कर लिया। इसके बाद चालाकी से अजय को पंजाब नेशनल बैंक का ही दूसरा एटीएम कार्ड पकड़ा दिया और उसकी अनुपस्थिति में उसके खाते से 51 हजार 520 रुपये कानपुर के नयागंज की बैंक शाखा के एटीएम कार्ड से निकाल लिए। इस मामले में अब पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच आरंभ कर दी है। अब पुलिस हिरासत में दोनों एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं।अजय कुमार सिंह के एटीएम से चोरी हुए रुपये में बैंक प्रबंध तंत्र अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। बकौल आरोपी गार्ड सुनील कुमार कहता है कि राजेश कुमार कानपुर से सिलैक्ट होकर आया था। उसने वह नियुक्ति पत्र उसे दिखाया और गार्ड ने तुरंत उसे एटीएम की सुरक्षा का भार सौंप दिया। उसने बताया कि यह विभिन्न प्रकार के कार्ड लेकर एटीएम का प्रयोग करता रहा। वहीं आरोपी राजेश कुमार का कहना था कि कानपुर की सिक्योरिटी कंपनी ने उसे नियुक्ति किया। कंपनी क ा फील्ड आॅफीसर आया और उसे पहले मंडी ब्रांच की जिम्मेदारी सौंपी, परंतु जब वहां तैनात गार्ड नौकरी जाने के भय से गिड़गिड़ाया तो उसे आठ दिन बाद ड्यूटी देने की बात कह फील्ड आफीसर चला गया। सवाल यहां खड़ा होता है कि बैंक के मुख्य द्वार पर लगे एटीएम की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक अजनबी के हाथ में तीन दिन तक रही और बैंक प्रबंध तंत्र सोता रहा। वह इससे भी अधिक फ्रॉड कर सकता था। वह लगातार एटीएम मशीन से छेड़छाड़ करता रहा, परंतु एटीएम मशीन में लगे खुफिया कैमरे की नजर भला उस पर कैसे नहीं पड़ी और यदि पड़ी तो बैंक प्रबंधन क्या कर रहा था। ऐसे में भला बैंक प्रबंध तंत्र तो कहीं न कहीं सवालों में है और उसे जबाब देना होगा कि आखिर इतनी बड़ी चूक हुई कैसे?पंजाब नेशनल बैंक के प्रबंधक चंद्रभान सिंह नसीहत देते हैं कि एटीएम का प्रयोग करने वाले उपभोक्ता एटीएम के प्रति सतर्कता बरतें। अन्यथा उनके रुपये चोरी हो सकते हैं, परंतु साथ ही यह भी कहते हैं कि यदि एटीएम कार्ड और पासवर्ड (पिन नंबर) दोनों आपके हाथ से नहीं जाएंगे तो आपके रुपये चोरी नहीं हो सकते हैं। वे कहते हैं कि उपभोक्ता को रुपये निकालते समय पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए। वे स्वीकारते हैं कि अक्सर इस प्रकार की घटनाएं कार्ड धारक का कोई अति नजदीकी ही करता है, परंतु ऐसे मामलों में कार्डधारक को किसी नजदीकी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए।
इटावा में बारिश में भीग रहा गरीबों का अनाज
भारतीय खाद्य निगम ने एक बार फिर गरीबों के निवाले को सड़ाने की तैयारी कर ली है। बीते चौबीस घंटे से गरीबी की रेखा में जीवन यापन करने वाले गरीबों के वितरण के लिए आया 28 हजार कुंतल गेंहू खुले आसमान में पड़ा हुआ है। रविवार की दोपहर के बाद से लगातार रुक-रुक कर हो रही बारिश से इस गेंहू के सड़ने की पूरी संभावनाएं हैं। बावजूद इसके भारतीय खाद्य निगम ने इस गेंहू को मालगोदान पर न तो ढंकवाने के ही कोई इंतजाम किए और न ही इसे गोदामों में पहुंचाया। मसलन यह गेंहू पूरी तरह से भीग चुका है और जानवर बोरों को फाड़ कर उस गेंहू को अपना निवाला बना रहे हैं। यह उस देश की दास्तां का एक हिस्सा है जहां बुंदेलखंड में भूख से मौतें होतीं हैं। मंहगाई आसमान पर है। बढ़ती मंहगाई का ही परिणाम है कि आज केंद्र सरकार में शामिल दलों के अतिरिक्त समूचा विपक्ष एकजुट होकर देशबंदी का ऐलान कर रहा है। गरीब दो वक्त की रोटी जुटाने में नाकाम रहता है। उसी देश में जिस प्रकार से भारतीय खाद्य निगम की लापरवाही उजागर होती है, वह शर्मसार करती है। अन्न को शास्त्रों में देवता का दर्जा दिया है। वहीं स्थानीय माल गोदाम पर गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बीपीएल, एपीएल एवं अंत्योदय योजना के कार्ड धारकों को वितरित करने के लिए पंजाब से आया 28 हजार कुंतल गेंहू स्थानीय माल गोदाम पर बारिश के पानी में भीग कर सड़ने को तैयार है। गौरतलब है कि बीते दिनों भी माल गोदाम पर इसी प्रकार से पंजाब से आया 33 हजार कुंतल गेंहू चार दिनों तक मालगोदाम पर खुले आसमां तले डला रहा था और जानवरों का निवाला बनता रहा था। इस खबर को जब डीएलए ने प्रमुखता से प्रकाशित किया तो प्रशासन की नींद टूटी और उसने उस गेंहू को गोदामों तक आनन-फानन में पहुंचाया था। शुक्र यह था कि तब बारिश नहीं हुई थी जबकि इस बार रविवार दोपहर से लगातार रुक-रुक कर बारिश हो रही है और मौसम विभाग भी लगातार बारिश की संभावनाएं जता रहा है।रेलवे को भी देना होगा वारफेसमालगोदाम पर गेंहू के खराब होने की तो संभावनाएं बनीं हुर्इं ही हैं। वहीं खाद्य निगम को अपनी लापरवाही के एवज में रेलवे को भी वारफेस की अदायगी करनी होगी। रेलवे मालगोदाम से गेंहू उतरने के नौ घंटे तक माल न उठाने की स्थिति में रेलवे भारतीय खाद्य निगम से सौ रुपये प्रति वैगन गेंहू के हिसाब से जुर्माना बसूलेगा। अब इस जुर्माना को या तो भारतीय खाद्य निगम अदा करेगा अथवा उसका ठेकेदार।कम से कम ढंक कर ही रखा होतामालगोदाम पर खुले आसमां तले पड़े इस गेंहू को यदि भारतीय खाद्य निगम ने तिरपाल अथवा किसी अन्य वस्तु से ढंक दिया होता तो शायद यह गेंहू यूं खराब नहीं होता। जबकि बीते दिनों भारतीय खाद्य निगम के प्रबंधक जय प्रकाश ने स्वीकार किया था कि हमारे पास गेंहू क ो ढंकने के पर्याप्त इंतजाम हैं तो फिर यह लापरवाही क्यों?समीपवर्ती जनपदों को भी वितरित होना थामालगोदाम पर उतरे इस गेंहू पर न सिर्फ इटावा जनपदवासियों बल्कि मैनपुरी, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज सहित आसपास के जनपदवासियों का भी हक था क्योंकि यहां से यह गेंहूं सार्वजनिक वितरण के लिए इन जनपदों को भी जाना था। अब यह अनाज यदि भारतीय खाद्य निगम उठवा भी लेता है तो इस गेंहू को सड़ने से बचाने के हर प्रयास नाकाफी होंगें।लीवर और आंत हो सकतीं हैं क्षतिग्रस्तमुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वी. पी. सिंह बताते हैं कि यदि खराब गेंहू का सेवन किया जाता है तो यह एक तरह से फूड प्वॉइजनिंग का काम करता है। इसके सेवन से पेट की बीमारियां तो होतीं ही हैं बल्कि लीवर व आंतें भी क्षतिग्रस्त हो सकतीं हैं। वह बताते हैं कि गेंहू को गोदामों में रखने से पहले पूरी प्रोसेसिंग अपनानी चाहिए क्योंकि नमी होने के कारण ऐसे गेंहू से गोदाम में रखा और अनाज भी खराब होने की संभावना रहती है।
गुरुवार, 25 मार्च 2010
खूंखार डकैतों के इलाके में दलित पुजारी का मंदिर
चंबल की घनघोर घाटियों को आम तौर पर लोग दस्यु दलों की षरणस्थली मानते हैं परंतु इसके साथ ही यह घाटी सामाजिक समरसता का एक ऐसा उदाहरण भी प्रस्तुत करती है जो समाज में व्याप्त छुआछूत जैसी बीमारियां फैलाने वालों पर तमाचा मारती है। लोगों को यह जानकर हैरत होगी कि देष में इटावा जिले के लखना कस्बा में स्थिति मां कालिका देवी मंदिर ऐसा एकमात्र मंदिर है जिसका पुजारी मंदिर निर्माण के समय से लेकर अब तक सिर्फ दलित ही होता है। दलित पुजारी के प्रति लोगों में सम्मान का भाव है और इस प्रथा से समाज के सवर्ण वर्ग अथवा ब्राहमणों को भी कोई गुरेज नहीं है। वह इसे आपसी सद्भाव की एक मिसाल है। इसके साथ ही इसी मंदिर से सटी मजार भी गंगा-जमुनी तहजीब की इबारत लिखती है। इस मंदिर के इतिहास को जानने वाले बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण वर्श 1820 में तत्कालीन जमींदार जसवंत राव ने कराया था। जानकार बताते हैं कि लखना से सटे दिलीप नगर के जमींदार जसवंत राव लोकप्रियता हासिल करने के साथ ही मां कालिका देवी में अनन्य श्रद्धा रखते थे। जमींदार बाद में अघोशित राजा भी बन कर उभरे लेकिन उन के हृदय में सभी धर्म और वर्ग के प्रति बेहद लगाव था। वह मां कालिका देवी के दर्षन करने के लिए यमुना नदी के पार स्थित कंचेसी धार स्थित मंदिर जाया करते थे परंतु एक दिन यमुना का बहाव इस कदर तीव्र हुआ कि नियमित रूप से माता के दर्षन करने जाने वाले राजा जब उस दिन नहीं पहुंच सके तो उन्हें बेहद अफसोस हुआ। वह मां के दर्षन न कर पाने की सोचते ही सोचते सो गए तो मां कालिका देवी ने उन्हें स्वप्न में दर्षन दिए। स्वप्न में मां कालिका के दर्षन करने के अगले ही दिन लखना में स्थित एक पीपल के पेड़ में आग लग गई। उसी पेड़ के नीचे माता कालिका देवी की मूर्ति निकली। जिस पर राजा ने उसी स्थान पर माता कालिका का भव्य व विषाल मंदिर की स्थापना करा दी। इसके साथ ही यहां आने वाले भक्तों को असुविधा न हो इसके लिए मंदिर के समीप ही एक विषाल तालाब बनवाया। जानकार बताते हैं कि इस तालाब में हिंदुस्तान की प्रत्येक नदी का जल मिलाया गया था लेकिन बदलते परिवेष में प्रषासनिक उपेक्षा के कारण यह तालाब गंदगी से पटा पड़ा हुआ है। राजा जसवंत राव को जब यह अहसास हुआ कि मंदिर के निर्माण से कहीं इस्लाम को मानने वाले मुस्लिमों को किसी प्रकार की ग्लानि न हो तो उन्होंने उनकी भी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए मंदिर से ही सटकर एक मजार की स्थापना कराई जिस पर मुस्लिम समुदाय अब अपनी आस्था जताता है। मंदिर निर्माण के साथ ही जब राजा जसवंत राव ने यह महसूस किया कि दलितों को समाज में सम्मान नहीं मिलता है और उन्हें हीन भावना का अहसास होता है, बस यही सोचकर उन्होंने एक नया इतिहास रचते हुए ऐलान कर दिया कि माता कालिका देवी के मंदिर का पुजारी दलित परिवार का ही होगा और छोटेलाल के पिताजी मंदिर के पहले दलित पुजारी बने। तब से लेकर आज तक इस मंदिर की पूजा-अर्चना का काम एक ही दलित परिवार की पांचवी पीढ़ी के अखिलेष एवं अषोक कर रहे हैं। इलाकाई लोग बताते हैं कि इस मंदिर के प्रति लोगों में इस कदर आस्था की देष के तमाम प्रांतों के लोग यहां माता के दर्षन को आते हैं और इन भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में जो कुछ भी देवी मां से मांगो उसकी आरजू देवी मां पूरी करती हैं। ताज्जुब यह है कि इस मंदिर में हर वर्ग के लोग पूजा-अर्चना करते हैं परंतु आज तक के इतिहास में किसी ने भी दलित पुजारी के मुद्दे को लेकर अपना विरोध तक दर्ज नहीं कराया है। एक साथ जहां मंदिर में घंटे बजते हैं वहीं मजार पर कुरान की आयतें भी पढ़ीं जातीं हैं जो गंगा-जमुनी सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल है। मंदिर का दलित पुजारी एवं उसका परिवार मंदिर की पूजा-अर्चना से खासे उत्साहित हैं। वह इसे अपने लिए जहां गर्व समझते हैं वहीं राजा जसवंत राव का इसे उपकार मानते हैं। षास्त्र और पुराणों को जानने वालों का मानना है कि राश्ट्र की मनीशा में दो षक्तियां उभरीं हैं। इनमें से एक श्रव्य षक्ति है वहीं दूसरी षाक्त षक्ति है। श्रव्य षक्ति में जहां भगवान षंकर की पूजा अर्चना सिर्फ ब्राहमण करता है वहीं षाक्त षक्ति में देवी मां की पूजा अर्चना का विधान है जिसका पुराणों में भी उल्लेख है। देवी की पूजा दलित भी कर सकता है। इस मंदिर पर क्षेत्र के अधिकाधिक लोग अपने बच्चों का मुंडन कराने के साथ ही विवाहोपरांन नई बहू को माता के दर्षन कराने के लिए लाते हैं। इस कार्य में बधाई गीत भी चकवा जाति के लोग गाते हैं। यह काम उनका वंषानुगत कार्य है और वह तमाम पीढ़ियों से यह काम करते आ रहे हैं।
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