मै उत्तर प्रदेश के इटावा का रहने वाला हूँ.१९८९ से मीडिया में हूँ,जिस उम्र में पढने लिखने की समझ नहीं होती है उस समय से में समाचार पत्रों में फीचर लिख रहा हूँ, १९८९ में पत्रिका हलचल से जुडा फिर साप्ताहिक चौथी दुनिया के बाद दिल्ली प्रेस प्रकाशन से जुडा,१९९६ से समाचार ए़जेसी वार्ता में २००३ मार्च तक इटावा में रिपोर्टर के रूप में काम किया,सहारा समय न्यूज़ चैनल में २००३ से फील्ड रिपोर्टर के रूप में काम कर रहा हूँ,इस अवधि में चम्बल घाटी के डाकू निर्भय गुज्जर,श्याम जाटव,रज्जन गुज्जर,चन्दन यादव ,अरविन्द गुज्जर.रामवीर गुज्जर,जगजीवन परिहार,रामासरे फक्कड़ से जहाँ सीधी बात करने में कामयाबी पाई वही महिला डाकू कुसमा नाइन,लवली पाण्डेय,सरला जाटव,रेनू यादव,नीलम गुप्ता,आदि से भी मुलाकात कर एक नया आयाम बनाया, सबसे बड़ी कामयाबी तब मुझे मिली जब मैंने चम्बल नदी में १०० से अधिक घडियालों के मरने के बाद उन्हें खोज ही नहीं निकाला बल्कि उस सच को उजागर कर दिया जिसे उत्तर प्रदेश का वन विभाग इंकार कर रहा था,इसके बाद सहारा समय ने इस खबर को बड़े स्तर पर प्रसारित कर बहस का एक अंतररास्ट्रीय मुद्दा बना दिया,इससे मुझे खासी लोकप्रियता हासिल हुयी,फिर देसी विदेशी घडियालों के एक्सपर्टों ने चम्बल में डेरा जमाया और आज भी यह कबायत जारी है.