मंगलवार, 6 जुलाई 2010
गिद्ध के बाद अब सारस पर संकट
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 20 जून से पूरे राज्य मे सारस पक्षी की गणना कर रही है. गणना में सारस पक्षी के लिये किस तरह के नतीजे निकालेगे यह तो गणना के बाद ही पता चलेगा लेकिन अभी सारस की गणना से ही पक्षी प्रेमी उत्साहित है. इस गणना मे राज्य के वन विभाग के अलावा पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्थाओ से भी मदद ली जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार ने सारस को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया है.
1999 में हुई गणना के मुताबिक वर्तमान में सारसों की संख्या महज दुनिया में सारसों की संख्या महज आठ हजार रह गई है. सारस को राज्य पक्षी का दर्जा दिया जाना भी सारस को बचाने की एक पहल माना जाता रहा है. उत्तर प्रदेश का इटावा जिला सारस पक्षी के सबसे बड़े आशियाने के तौर पर देश दुनिया के मानचित्र पर काबिज है.इटावा मे करीब 3000 की तादात सारस की हमेशा देखी जा रही है लेकिन इस बार सारस पक्षी गिद्धों की माफिक गायब होता हुआ दिख रहा है तभी तो सारस की गणना करके उसे बचाने की दिशा तय की जा रही है. इंसानी करतूत के चलते माना जा रहा है कि सारस के वास स्थल को खासा नुकसान पहुंच रहा है,तालाब पोखर आदि सबके सब सूखते चले जा रहे है जिसको लेकर सारस पक्षी की संख्या घटती हुई दिख रही है. सारस पक्षी के लिये दुनिया का एक मात्र स्थल होने के बावजूद इटावा को पूरी तरह से सरकारी तौर पर उपेक्षित रखा गया है,जब कि सर्वोच्च न्यायालय के सारस संरक्शण के आदेषों को बलाये ताक रख कर आजतक ना तो केन्द्र सरकार और ना ही उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई ठोस कार्य योजना अमल में नहीं लाई गई है.जब कि सारस पक्षी को उत्तर प्रदेशश सरकार ने राज्य पक्षी का दर्जा देकर महज खाना पूरी कर रखी है.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में इटावा के सभी तालाबों,झाबरों को ऊसर सुघार योजना के तहत समाप्त किया जा रहा था तब इलाहबाद उच्च न्यायालय में बाइल्ड ट्रस्ट आफॅ इडिण्या ने एक याचिका दायर कर इस परियोजना से तालाबों को होने वाले नुकसानों को रोकने की पहल की. सैफई में हवाई पट्टी के विस्तारीकरण के लिये सारसों पर गोली तक से मारने के दृष्यों को कैमरों में कैद कर लिये जाने के बाद देश दुनिया के सारस विषेशज्ञों ने मुलायम सिंह यादव को आडे हाथों ले लिया था. बाद में मुलायम सिंह यादव ने विकास की बात कह कर खफा सारस विषेशज्ञों को मना लिया था.2005 साल में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में इटावा में सैफई हवाई पट्टी के विस्तारी करण के लिये सैफई के पास एक विषाल झाबर को समाप्त करने को लेकर सोसायटी फॉर कन्जरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान की शिकायत पर राज्य सरकार ने 10 करोड़ की राशि सारस संरक्षण के लिये जारी कर सारस संरक्षण समिति गठित तो जरूर कर दी गई लेकिन इस समिति ने सारस के संरक्षण के लिये क्या काम किया इसका कोई रिकार्ड नहीं है? इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में अपना हलफनामा दाखिल कर वादा किया कि तालाबों के संरक्षण किया जायेगा लेकिन आज तक किसी भी तालाब का संरक्षण नहीं किया गया,बताया गया है कि सारसों के संरक्षण के नाम पर प्रतिवर्ष लखनऊ में एक बैठक कर ली जाती है,वो भी सिर्फ कागजों में अमर प्रेम का प्रतीक सारस पक्षी ने दुनिया भर में इटावा जिले की पहचान करा रखी हैं. इटावा जिले के खेतों में घूमते देखे जाते सारस आम बात हैं. वर्ष 1999 में संपादित सारस गणना के मुताबिक पूरी दुनिया में सारस पक्षी के करीब 8 हजार सदस्यों के जीवित होने का अनुमान लगाया गया. इनमें 200 नेपाल, 4 पाकिस्तान तथा बंग्लादेश में देखे गये 2 सारस पक्षियों के अतिरिक्त शेष सभी भारत में ही रहते हैं. करीब 5 हजार अकेले उत्तर प्रदेश में स्वच्छंद रूप से ताल तलैयों के किनारे तथा घान के खेतों वास करते हुए देखे जाते रहे हैं लेकिन सूखे की वजह से ये अब ना तो पहले की तरह खेतो में देखे जा रहे हैं और तो और इनके अण्डे भी पहले की तरह नजर नहीं आ रहे हैं. दुनिया में सबसे उंचा सारस उडने वाला पक्षी किसानों का मित्र हैं. करीब 12 किलो वजन वाले सारस की लम्बाई 1.6 मीटर तथा जीवनकाल 35 से 80 वर्ष तक होता है. सारस वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनूसूची में दर्ज हैं. सारसों की 1999 से गणना काम इटावा और आसपास के इलाकों सोसायटी फॉर कंजरवेषन ऑफ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था की ओर किया जा रहा हैं. यह पहला मौका हैं जब सूखे की वजह से सारस पक्षी का प्रजनन प्रभावित होता नजर आ रहा है, कुल मिला कर कह सकते हैं कि सूखे ने जहां आम आदमी का जीना मुष्किल कर दिया हैं वहीं पक्षियों के लिये भी खतरा पैदा कर दिया हैं.
देश में सारस की 6 प्रजातियां है.इनमें से 3 प्रजातियां इंडियन सारस क्रेन,डिमोसिल क्रेन व कामन क्रेन है, दुनिया भर में सारस पक्षियों की अनुमानित संख्या 8 हजार है,इनमें अकेले इटावा में 2500 और मैनपुरी में करीब 1000 सारस है अनूकूल भौगोलिक परिस्थितियां सारसों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती है,दोनों जिलो में अनकूल पानी के जल क्षेत्र,धान के खेत, दलदल, तालाब, झील व अन्य जल स्त्रोत पाये जाते है.दल-दली क्षेत्रों में पाई जाने वाली घास के टयूबर्स, कृषि खाद्यान्न, छोटी मछलियां, कीड़े-मकोड़े, छोटे सांप, घोघें, सीपी आदि भोजन के तौर पर सारसों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहती है. उल्लेखनीय है कि अग्रेंज कलक्टर ए.ओ.हृयूम के समय में इस क्षेत्र में साइबेरियन क्रेन भी आता था,जिसको देखने के लिये अब भरतपुर पक्षी विहार जाना पडता था क्योंकि 2002 साल में आखिरी बार साईबेरियन क्रेन का एक जोडा देखा गया था.
सोसायटी फार कन्जरवेशन आफॅ नेचर नामक पर्यावरणीय संस्था के सचिव डा.राजीव चौहान ने सूखे की मार झेल रहे इटावा के कई इलाको सारसों की खोज के लिये का भ्रमण किया,लेकिन सारस है देखने को भी नहीं मिल रहा है,इलाकाई ग्रामीण भी इस बार सूखे के चलते चिंतत नजर आ रहे है उनका साफ कहना है इन दिनो सारसों के जोडे यदा कदा ही नजर आ रहे है जो पहले खासी तादात में दिखलाई दिया करते थे. इसके पीछे किसानों का कहना है कि इस बार सूखे की वजह से जहां किसानों की फसले चौपट हुई है, वहीं किसानो का मित्र कहे जाने वाला सारस पक्षी भी पानी कमी के चलते संकट में नजर आ रहा है.कभी सारसों की संख्या सैकडों में देखी जाती रही है आज ना के बराबर रह गई है. जब सारस खेतो में दिखलाई ही नहीं देगें तो लाजिमी है कि उन पर संकट आने का ही संकेत ही माना जायेगा. कहा कुछ भी जाये सूखे की मार ने किसानो को जहां मुसीबत में डाला है वही पर किसानो का मित्र समझा जाने वाले सारस को भी बख्सा नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि सारस के प्रजनन में सूखे की वजह से कुप्रभाव बडे पैमाने पर पड़ा है.
अब जब इन सारसों क बच्चें अण्डों से बाहर निकल आये है तो देखा जा रहा है कि इनका प्रजनन बडे पैमाने पर प्रभावित होने का अनुमान लगाया जाने लगा है क्यो कि पुराने दिनों की तरह इस बार सारसों के बच्चें खेत खलिहानों में नहीं दिख रहे है,इस बात की तस्दीक सारसों के इर्द गिर्द रहने वाले गांव वाले भी करते है,वही दूसरी ओर इस बार सारसों के प्रजनन को प्रभावित होने का अनुमान इटावा के प्रभागीय वन निदेषक सुर्दषन सिंह भी लगा रहे है उनका कहना है कि पानी की कमी ने सारसों के प्रजनन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है,तभी तो राज्य के वन विभाग ने सारस की गणना का काम षुरू किया है. सुदर्शन सिंह भी मानते है कि जिस तरह से गिद्ध पक्षी पर खतरा मडराया उसी तरह से सारस भी खतरे जद मे आ गया है.
मानसून समय से आने पर सारस पक्षी के प्रजनन पर बुरा असर पडा है. 20 फीसदी तक प्रजनन में गिरावट दर्ज की जा रही है. इससे पहले के सत्र में जुलाई से सिंतबर तक ही प्रजनन को देखा जाता था लेकिन पिछली बार अक्टूबर में देखा गया है. इस बार पानी की चलते धान की बुबाई कम क्षेत्रों में पहले के मुकाबले हुई है,जिससे इनके बच्चें को छुपाने के लिये बच्चों की सुरक्षित स्थान नहीं मिल पा रहा है. कुल मिला कर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि संकटग्रस्त सारस पर एक बार फिर एक नया संकट पानी की किल्लत के रूप में सामने आया है. अब सवाल यह उठता है कि सूखे की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई किस आधार पर हो पायेगी ?
एटीएम यूजर्स सावधान !
इटावा में बारिश में भीग रहा गरीबों का अनाज
गुरुवार, 25 मार्च 2010
खूंखार डकैतों के इलाके में दलित पुजारी का मंदिर
रविवार, 15 नवंबर 2009
कौन है सच्चा कौन है झूठा
18 जनवरी 2009 को मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह दिल्ली में राजूभईया उर्फ राजवीर के आवास में गए और मुझे फोन आया कि वहां मेरा इंतजार हो रहा है. मैं वहां गया और मैनें कारण पूछा तो दोनों व्यक्तियों ने कहा कि आप सपा में शामिल हो जाए.उस वक्त मैनें सपा में शामिल होने से इंकार कर दिया तब अमर मुलायम ने कहा कि जब आप नहीं शामिल होने चाहते तो राजबीर को सपा में शामिल करा दीजिए. हम नहीं होते तो मुलायम 14 सीटों पर सिमट रहें थे हमनें सपा को 23 सीटें दिलाई थी. हमनें सपा को 9 सीटों का फायदा कराया था। मुलायम सिंह के लिए तब कल्याण सिंह बहुत अच्छे थे लेकिन अब कल्याण सिंह मुलायम के लिए अच्चे नहीं है.गौरतलब है कि षनिवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि कल्याण सिंह कभी भी सपा के हिस्सा नहीं थे और मैं यह कहना चाहता हूं कि उन्हें कभी भी पार्टी में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी। और आज कल्याण ने कुछ इस तरह से मुलायम सिंह यादव को अपना दिया जवाब.मुलायम और अमर सिंह हाथ जोड़कर भी बुलाएगें तो भी सपा में शामिल नहीं होउंगा. मुलायम चुनावों में मिली हार के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है और हार का सहीं मुल्याकंन नहीं कर पा रहें है.सही कौन है और कौन बोल रहा है झूठ ? इसका आंकलन तो आदमी कर ही चुका है लेकिन यहां पर इस बात का जिक्र करना बेहद दिलचस्प होगा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कल्याण के लिये संसदीय चुनाव में एटा में उनके लिये अपना प्रत्याषी ना उतरते हुये उन्हें निर्दलीय सांसद बनवा दिया.अब आई बारी उप चुनाव की. जिसमें कल्याण सिंह हैलीकाप्टर से चुनाव मैदान में उतरे.आखिर कल्याण सिंह को चुनाव में प्रचार करने के लिये किसने कहा था ?इस सवाल का जबाब जाहिर है सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से बेहतर आखिर कौन दे सकता है. क्या ऐसा संभव है कि किसी दल के मुखिया की सहमति से कोई भी उनके दल के प्रत्याषी के लिये प्रचार करने के लिये आ जाये ? दूसरे आगरा में हुये सपा अधिवेषन की बात ऐसे में अधूरी क्यों रह जाये ? तो बात उसकी भी जरूरी है ताकि पता तो असल में चल ही जाये.कल्याण सिंह की बात को अगर माना जाये तो मुलायम के राज्यसभा सदस्य भाई डा.रामगोपाल यादव ने उन्हें बाकायदा लंबा चैडा खत भेज कर बुलावा भेजा था तब में आया था.जब कि मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कल्याण को बुलाया नहीं गया था,वो खुद ही आये थे ऐसे में जाहिर है कि आप समझा गये होगें कि सच कौन बोल रहा है और झूठ का लबादा कौन ओढे हुये है ?
शनिवार, 8 अगस्त 2009
आरएसएस वाले क्या सच से रूबरू हो गये ?
अगर ड्रेस कोड की बात करें तो किसी संगठन को बल या गति देने के लिए ड्रेस कोड लागु किया जाता है,अब उस ड्रेस कोड को बदलने की कबायत की जा रही है इसी ड्रेस कोड जरिये देश में लाखों की तादात में स्वंयसेवक बना लिए गए है,और अब उसे बदलने की क्या जरूरत आन पड़ी है .जी हां बिलकुल सही समझे हम उसी बात को कह रहे है जो आप समझ रहे है,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बदल रहा है और जल्द ही आप संघ नेताओं को पारंपरिक हाफ खाकी नेकर की बजाय पतलून में देखें तो चौंकियेगा मत। दरअसल संघ के भीतर नए जमाने के साथ खुद को बदलने को लेकर गहरा मंथन चल रहा है। इसी का नतीजा है कि लीक से हटकर संघ के ड्रेस कोड को बदलने की चर्चा जोरों पर है। खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि सबकी सहमति जिस दिन बन जाएगी उस दिन बदलने में हमको कोई दिक्कत नहीं है। गणवेश में हाफ पैंट भले हो लेकिन शाखा में तो स्वयंसेवक धोती, लुंगी, फुल पैंट, पजामा सबकुछ पहनकर आते हैं।दरअसल 1925 में हेडगेवार ने आरएसएस का गठन किया तब से ही संघ के स्वंयसेवक खाकी निकर में दिखते आये हैं। कई बार इसे लेकर बहस भी हुई लेकिन संघ की ड्रेस आज भी वही है। 21वीं सदी की हकीकत का सामना कर रहा संघ अब ज्यादा देर करना नहीं चाहता। उसकी ये चिंता इसलिये भी है क्योंकि पिछले कुछ सालों में संघ की शाखाओं में कमी आयी है। नये जमाने से कदमताल कर रहा युवा संघ के निकर में शाखाओं में जाना नहीं चाहता।इतना ही नहीं, आरएसएस के अंदर अब ये सोच भी सामने आ रही है कि उनके प्रचारकों को दाम्पत्य जीवन में आने से नहीं रोका जाये। पहले इन मामलों में संघ बहुत कट्टर माना जाता था। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संकेत दिया कि प्रचारकों की शादी को लेकर संघ अपने नियमों में ढ़ील देने पर विचार कर रहा है।भागवत कहते हैं कि प्रचारक कम चाहिए संघ में व्यवस्थापन कार्य में समय देने वाले ज्यादा चाहिए इसलिए सारा विचार करके हम लोगों ने तय किया है कि जिसका ऐसा मन बनता है जब तक ऐसा मन बनता है तब तक प्रचार करे बाकि इच्छा है उसे तो जाकर करे हमको भी दिक्कत नहीं है।दरअसल आरएसएस धीरे-धीरे इस सच का सामना कर रहा है कि उसे अपने अंदर कुछ मूलभूत बदलाव करने होंगे। हिन्दुत्व के नाम पर उसकी छवि अभी तक एक ऐसे संगठन की बन कर रह गयी है जिसकी विचारधारा बहुत हद तक मुस्लिम विरोध पर टिकी है। इस चक्कर में एक उदारवादी हिन्दू आरएसएस से जुड़ने को तैयार नहीं है और मुस्लिम समुदाय के अंदर तो अब तक ये संगठन पैठ ही नहीं बना पाया है। इन्क्लूसिव पॉलिटिक्स के इस दौर में संघ का समय के साथ बदलना उसकी जरूरत भी है और मजबूरी भी। ऐसे में संघ खुद को ऐसे बदलना चाहता है कि जो लोगों खासतौर से युवाओं में उत्साह जगाए।एक समय था जब संघ के शिवरों में सेकडों की तादात में संघ प्रेमी जुड़ते रहे थे लेकिन लम्बे समय से भीड़ नहीं दिख रही है इससे भी संघ चिंतित है,असल में संघ के प्रमुख अगुयाकारों को यह लगने लगा है की संघ से बड़ी तादात में लोगो को जोड़ने के लिए कुछ ना कुछ वो सब करना पडेगा जिससे युवा संघ से जुड़े लेकिन देखने में आ रहा है संघ में काम करने वाले पहले अपने किसी स्वयंसेवक के घर पर रुकते थे और वही पर खाना खाया करते थे,इतना ही नहीं जब यह प्रचारक या अन्य लोग जब उस स्वयंसेवक के घर से बाहर यानी नए पड़ाव के लिए रवाना होते है,तो वो स्वयंसेवक उन महाशय को टिकट से लेकर अन्य बंदोवस्त भी कर देता है ऐसे में खर्चा ना होना तो आम बात हो गयी है,मुझे अच्छे से याद है हमारे एक मित्र है जो लम्बे समय तक संघ में प्रचारक रहे है,अभी हाल में है वे संघ से विदा लेकर शादी कर लिए है इनके जैसे ना जाने कितने प्रचारक है जो संघ की मूलधारा से वापस लौट कर परिवारिकमोह में जा चुके है ,वो बताते है की खुद का खर्चा के नाम पर कुछ भी जाया नहीं होता है,वे बताते रहे है उनके समय में ऐसे भी प्रचारक हुए है जीके पास १०० रूपये का नोट २ साल तक खर्च ही नहीं हुआ,असल में संघ जैसे संगठन के नियम बड़े ही सक्त है ऐसे में हर कोई संघ से जुदा नहीं रहा सकता ,अगर किसी का पिता संघ से जुदा हुआ रहा तो ये उम्मीद ना करे की उसका बेटा भी संघ से जुडेगा ही,ऐसे में तो यही समझ में आ रहा है की संघ जो कुछ बदलाव करने जा रहा है उसके पीछे संघ का घटता प्रभाव समझ में आ रहा है,करीब ५० वर्ष की उम्र में शादी करने वाले उस प्रचारक ने टीचर से शादी रचाई है,वो कहते है की संघ को उन्होने अपने जीवन के ५० साल दिए है लेकिन मिला क्या सिर्फ चंद रुपए अगर टीचर से शादी ना करते तो खाने के लाले पड जाते ,ऐसे में संघ में बदलने में तो बहुत कुछ है लेकिन कितना कुछ बदल कर एक बार फिर से संघ जोश में आ पायेगा इसमें संदेह लग रहा है.
रविवार, 2 अगस्त 2009
प्यार के पुजारी या प्यार के पापी है हम ?
रविवार, 19 जुलाई 2009
ईश्वर से बात या अमिताभ का सठियापन ?
शनिवार, 18 जुलाई 2009
अम्बेडकर पार्क या भविष्य का राजघाट ?
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
जातीय हिंसा की ओर उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में दलित वोट को हथियाने को लेकर बीएसपी और कांग्रेस के बीच जारी लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है,उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी का मुरादाबाद में दिया गया भाषण एक नए विवाद को जन्म दे गया है.इसी के चलते राज्य की मुख्यमंत्री मायावती ने उन पर दलित उत्तपीडन के तहत ना सिर्फ मुकदमा दर्ज करवाया बल्कि उन्हें जेल में भी डलवाने में कोई कसर नहीं छोडी,बात करते है दलित वोट के कब्जे कि शुरुआत की,तो इटावा के इकदिल इलाके के अमीनाबाद गाँव में १२ मार्च २००८ में चम्बल घाटी के डाकू नादिया और उसके साथियों ने दलित परिवार के पांच लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी,इस हत्या कांड के बाद कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गाधी ने इस प्रभावित गाँव का दौरा करने का मन बनाया वैसे ही एक दिन पहले १५ मार्च को मायावती आ धमकी इस गाँव में,देर शाम को आई मायावती पुलिस घेरे में रह कर पडितो के परिजनों से मिली और अँधेरा होने से पहले चली गयी लेकिन उसके बाद १६ मार्च को आये राहुल गाँधी ने कई घंटों तक पीडतों के परिजनों से बात कि और उसके बाद जाते जाते राहुल गाँधी गाँव के खेत में एक आलू खोदते बच्चे को कंधे पर उठा कर घुमा दिए,जिससे गाँव में तो राहुल के दलित प्रेम की चर्चा हुई, देश भर में जब इन तस्वीरों को न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित किया गया तो उन तस्वीरों की जमकर तारीफ हुयी और राहुल ने इस कांड के दौरे के बाद दलितों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए दलितों के दरबाजे दरबाजे दस्तक देना शुरु कर दी, बस इसी सब के बाद खिसहाट उजागर हो गयी, जब मायावती की और से कहा गया कि राहुल का दलित प्रेम नाटक है,और दलितों के घर जाने के बाद राहुल को नहलाया जाता है,यह विचार क्या उजागर करते है,आसानी से समझा जा सकता है,अगर कोई दलित बीएसपी के साथ है तो कांग्रेस को क्या आपत्ति लेकिन जैसा देखा जा रहा है लोकसभा चुनाव के बाद बीएसपी मुखिया खासे गुस्से में दिख रही है,इसी वजह से ऐसी शब्दावली आम आदमी को सुनने को मिल रही है,जिन्हें कभी राजनीत में कोड़ समझा जा रहा था,कुछ भी कहे दलित वोट को कब्जाने की कांग्रेस और बीएसपी की जुगत राजनीत की कौन से दिशा तय करेगी, यह समझ से परे है,यहाँ अब इस तरह के हालत बन गए है कि दलित वोट को कब्जाने के जुगत में उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा की ओर मुखातिब होता चला जा रहा है.बीएसपी जंहा दलित को अपना परम्परागत वोट बैंक समझता है वही कांग्रेस भी दलितों को अपनी और खीचने कि कोशिश में है,कुल मिला कर लड़ाई को रोका जाना जरुरी है .